लोगों की राय

नई पुस्तकें >> रंगभूमि (उपन्यास)

रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

138 पाठक हैं

नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


बजरंगी–ताड़ी बेचता होगा। पैसे का लोभ बुरा होता है। घर में एक मेहरिया है, और एक बुढ़िया मां। मुदा रात-दिन हाय-हाय पड़ी रहती है। काम करने को तो दिन है ही, भला रात को तो भगवान का भजन हो जाए।

जगधर–सूरे का दम उखड़ जाता है, उसका दम नहीं उखड़ता।

बजरंगी–तुम अपना खोंचा बेचों, तुम्हें क्या मालूम, दम किसे कहते हैं। सूरदास जितना दम बांधते हैं, उतना दूसरा बांधे, तो कलेजा फट जाए। हंसी-खेल नहीं है।

जगधर–अच्छा भैया, सूरदास के बराबर दुनिया में कोई दम नहीं बांध सकता। अब खुश हुए।

सूरदास–भैया, इसमें झगड़ा काहे का? मैं कब कहता हूं कि मुझे गाना आता है। तुमलोगों का हुक्म पाकर, जैसा भला-बुरा बनता है, सुना देता हूं।

इतने में भैरों भी आकर बैठ गया। बजरंगी ने व्यंग करके कहा–क्या अब कोई ताड़ी पीनेवाला नहीं था? इतनी जल्दी क्यों दुकान बढ़ा दी?

ठाकुरदीन–मालूम नहीं, हाथ-पैर भी धोए हैं या वहां से सीधे ठाकुरजी के मंदिर में चले आए। अब सफाई तो कहीं रह ही नहीं गई।

भैरों–क्या मेरी देह में ताड़ी पुती हुई है?

ठाकुरदीन–भगवान के दरबार में इस तरह न आना चाहिए। जात चाहे ऊंची हो या नीची, पर सफाई चाहिए जरूर।

भैरों–तुम यहां नित्य नहाकर आते हो?

ठाकुरदीन–पान बेचना कोई नीच काम नहीं है।

भैरों–जैसे पान, वैसे ताड़ी। पान बेचना कोई ऊंचा काम नहीं है।

ठाकुरदीन–पान भगवान के भोग के साथ रखा जाता है। बड़े-बड़े जनेऊधारी, मेरे हाथ का पान खाते हैं। तुम्हारे हाथ का तो कोई पानी नहीं पीता।

नायकराम–ठाकुरदीन, यह बात तो तुमने बड़ी खरी कही। सच तो है, पासी से कोई घड़ा तक नहीं छुआता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book