सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
इर्फान अली की जिरह शुरू हुई।
‘आपने कौन सा इम्तहान पास किया है?’
‘मैं लाहौर का एल० एम० एस० और कलकत्ते का एम० बी० हूँ।
‘आपकी उम्र क्या है?’
‘चालीस वर्ष।’
‘आपका मकान कहाँ है?’
‘दिल्ली।’
‘आपकी शादी हुई है? अगर हुई है तो औलाद है या नहीं?’
‘मेरी शादी हो गयी है और कई औलादें हैं।’
‘उनकी परवरिश पर आपका कितना खर्च होता है?’
इर्फान अली यह प्रश्न ऐसे पांडित्यपूर्ण स्वाभिमान से पूछ रहे थे, मानों इन्हीं पर मुकदमें का दारोमदार है। प्रत्येक प्रश्न पर ज्वालासिंह की ओर गर्व के साथ देखते। मानों उनसे अपनी प्रखर नैयायिकता की प्रशंसा चाहते हैं। लेकिन इस अन्तिम प्रश्न पर मैजिस्ट्रेट ने एतराज किया, इस प्रश्न से आपका क्या अभिप्राय है।
इर्फान अली ने गर्व से कहा– अभी मेरा मन्शा जाहिर हुआ जाता है।
यह कहकर उन्होंने प्रियनाथ से जिरह शुरू की। बेचारे प्रियनाथ मन में सहमें जाते थे। मालूम नहीं यह महाशय मुझे किस जाल में फाँस रहे हैं।
इर्फान अली– आप मेरे आखिरी सवाल का जवाब दीजिए?
‘मेरे पास उसका कोई हिसाब नहीं है।’
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