कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
उपयुक्त वृत्तांत लिखकर मैंने एक पत्रिका में भेज दिया। मेरा उद्देश्य केवल यह था कि जनता के सामने कपट-व्यवहार के कुपरिणाम का एक दृश्य रखूँ। मुझे स्वप्न में भी आशा न थी कि इसका कोई प्रत्यक्ष फल निकलेगा। इसी से जब चौथे दिन अनायास मेरे पास ७५ रु. का मनीआर्डर पहुँचा, तो मेरे आनंद की सीमा न रही। प्रेषक वही महाशय थे–उमापति। कूपन पर केवल ‘क्षमा’ लिखा हुआ था। मैंने रुपये ले जाककर पत्नी के हाथों में रख दिए और कूपन दिखाया।
उसने अनमने भाव से कहा–इन्हें ले जाकर यत्न से अपने संदूक में रखो तुम ऐसे लोभी प्रकृति के मनुष्य हो यह मुझे आज ज्ञात हुआ। थोड़े से रुपयों के लिए किसी के पीछे पंजे झाड़कर पड़ जाना सज्जनता नहीं। जब कोई शिक्षित और विचारशील मनुष्य अपने वचन का पालन न करे तो यही समझना चाहिए कि वह विवश है। विवश मनुष्य को बार-बार तकाजों से लज्जित करना भलमनसी नहीं है। कोई मनुष्य, जिसका सर्वथा नैतिक पतन नहीं हो गया है, यथाशक्ति किसी को धोखा नहीं देता। इन रुपयों को तब तक अपने पास नहीं रखूँगी, जब तक उमापति का कोई पत्र न आयगा कि रुपये भेजने में इतना विलम्ब क्यों हुआ।
पर इस समय मैं ऐसी उदार बातें सुनने को तैयार न था; डूबा हुआ धन मिल गया, इसकी खुशी से फूला न समाता था।
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