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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


प्रधान–आपकी शहादत तो अवश्य ही होगी!

चंदूमल–होगी, तो मैं भी साफ-साफ कह दूँगा, चाहे बने या बिगड़े, पुलिस की सख्ती अब नहीं देखी जाती। मैं भी भ्रम में पड़ा था।

मंत्री–पुलिस वाले आपको दबाएँगे बहुत।

चंदूमल–एक नहीं, सौ दबाव पड़ें, मैं झूठ कभी न बोलूँगा। सरकार उस दरबार में साथ न जायगी।

मंत्री–अब तो हमारी लाज आपके हाथ है।

चंदूमल–मुझे आप देश का द्रोही न पाएँगे।

यहाँ के प्रधान और मंत्री तथा अन्य पदाधिकारी चले, तो मंत्रीजी ने कहा–आदमी सच्चा जान पड़ता है।

प्रधान–(संदिग्ध भाव से) कल तक आप ही सिद्ध हो जायगा।

शाम को इंस्पेक्टर पुलिस ने लाला चंदूमल को थाने में बुलाया और कहा–आपको शहादत देनी होगी। हम आपकी तरफ से बेफिक्र हैं।

चंदूमल बोले–हाजिर हूँ।

इंस्पेक्टर–वालंटियरों ने कांस्टेबिलों को गालियाँ दीं?

चंदूमल–मैंने नहीं सुनीं।

इंस्पेक्टर–सुनीं या नहीं सुनीं, यह बहस नहीं। आपको यह कहना होगा। वे खरीदारों को धक्के देकर हटाते थे, हाथापाई करते थे, मारने की धमकी देते थे, यह सभी बातें कहनी होंगी। दारोगाजी, वह बयान लाइए, जो मैंने सेठजी के लिए लिखवाया है।

चंदूमल–मुझसे भरी अदालत में झूठ न बोला जायगा। अपने हजारों जानने वाले अदालत में होंगे। किस-किससे मुँह छिपाऊँगा? कहीं निकलने की जगह भी चाहिए।

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