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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


एक दिन वह इसी उलझन में नदी के तट पर बैठे हुए थे। जलधारा तट के दृश्यों और वायु के प्रतिकूल झोंकों की परवा न करते हुए बड़े वेग के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ी चलीं जाती थी। पर लाला गोपीनाथ का ध्यान इस तरफ न था, वह अपने स्मृति-भंडार से किसी ऐसे तत्त्वज्ञानी पुरुष को खोज निकालना चाहते थे, जिसने जाति सेवा के साथ विज्ञान सागर में गोते लगाए हों। सहसा उनके कालेज के एक अध्यापक पंडित अमरनाथ अग्निहोत्री आकर उनके समीप बैठ गए और बोले–कहिए लाला गोपीनाथ, क्या खबरें हैं?

गोपीनाथ ने रुखाई से उत्तर दिया–कोई नई बात तो नहीं हुई। पृथ्वी अपनी गति से चली जा रही है।

अमरनाथ–म्युनिसिपल बोर्ड नंबर २१ की जगह खाली है,

उसके लिए किसे चुनना निश्चित किया है?

गोपीनाथ–देखिए,कौन होता है। आप भी खड़े हुए हैं।

अमरनाथ–अजी, मुझे तो लोगों ने जबरदस्ती घसीट लिया, नहीं तो मुझे इतनी फुर्सत कहाँ?

गोपीनाथ–मेरा भी यही विचार है। अध्यापकों का क्रियात्मक राजनीति में फँसना बहुत अच्छी बात नहीं।

अमरनाथ इस व्यंग्य से बहुत लज्जित हुए। एक क्षण के बाद प्रतिकार के भाव से बोले–तुम आजकल दर्शन का अध्ययन करते हो या नहीं?

गोपीनाथ–बहुत कम। इसी दुविधा में पड़ा हूँ कि राष्ट्रीय सेवा का मार्ग ग्रहण करूँ या सत्य की खोज में जीवन व्यतीत करूँ?

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