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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


उसके जाने के बाद वह बहुत देर बैठी सोचती रही–मैं कैसी अभागिन हूँ। जिस प्रेम को न पाकर वह बेचारी जीवन को त्याग रही है, उसी प्रेम को मैंने पाँव से ठुकरा दिया। इसे जेवर की क्या कमी थी? क्या ये सारे जड़ाऊँ जेवर इसे सुखी रख सके? इसने उन्हें पाँव से ठुकरा दिया। इन्हीं आभूषणों के लिए मैंने अपना सर्वस्त्र खो दिया। हा! न जाने वह (विमलसिंह) कहाँ हैं, किस दिशा में हैं?

अपनी लालसा को, तृष्णा को, वह कितनी ही बार धिक्कार चुकी थी। मंगला की दशा देखकर आज उसे आभूषणों से घृणा हो गई।

विमल को घर छोड़े दो साल हो गए। शीतला को अब उनके बारे में भाँति-भाँति की शंकाएँ होने लगीं। आठो पहर उसके चित्त में ग्लानि और क्षोभ की आग सुलगती रहती!

देहात के छोटे-मोटे जमींदारों का काम डाँट-डपट, छीन-झपट ही से चला करता है। विमल की खेती बेगार में होती थी। उसके जाने के बाद सारे खेत परती रह गए। कोई जोतने वाला न मिला। इस खयाल से साझे पर भी किसी ने न जोता कि बीच में कहीं विमल सिंह आ गए, तो साझेदार को अंगूठा दिखा देंगे। असामियों ने लगान न दिया। शीलता ने महाजन से रुपये उधार लेकर काम चलाया। दूसरे वर्ष भी यही कैफियत रही। अबकी महाजन ने भी रुपये न दिये। शीतला के गहनों के सिर गई। दूसरा साल समाप्त होते-होते घर की सब लेई-पूँजी निकल गई। फाके होने लगे। बूढ़ी सास, छोटा देवर, ननद और आप, चार प्राणियों का खर्च था। नात-हित भी आते रहते थे। उस पर यह और मुसीबत हुई कि मायके में एक फौजादारी हो गई। पिता और बड़े भाई उसमें फँस गए। दो छोटे भाई, एक बहन और माता, चार प्राणी और सिर पर आ डटे। गाड़ी पहले ही मुश्किल से चलती थी, अब जमीन में धँस गई।

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