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प्रगतिशील
प्रगतिशील
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 8573
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आईएसबीएन :9781613011096 |
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
उसने उसके बदन की मिट्टी धोई। फिर एक सूखे वस्त्र से उसका शरीर पोंछकर, उसको कुरता तथा पायजामा, जिनको घर पर धोये हुए दो सप्ताह से भी अधिक हो गये होंगे, पहना दिये और उसको रसोईघर में ले गई। एक रोटी और बैंगन का साग उसके हाथ में रख दिया। मदन खाने लगा। इस समय उस कमरे से पुनः कराहने की आवाज आई। यह आवाज पहले से भी ज्यादा जोर से आई थी।
‘‘अम्मा! यह क्या हो रहा है?’’
‘‘वह जो मोटर में आई थीं न! उसको पीड़ा हो रही है।’’
‘‘क्यों हो रही है?’’
‘‘बेटा! कल बताऊंगी। अब तुम चुपचाप खाना खा लो। ‘‘यह कौन है मां!’’
‘‘बहुत बड़े आदमी हैं।’’
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