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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस प्रकार रामाधार परिवार सहित दुरैया लौट आया। इन्द्र अपने वस्त्र और अन्य सामान लेने के लिये और रामाधार के साथ घर पहुँच घर के खर्च को कम करने के उपायों पर विचार करने के लिये साथ चला गया।

साधना अपने पिता के घर चली आयी। वहाँ उसकी माता प्रतीक्षा में बैठी थी।

महादेव, शिवदत्त का बड़ा लड़का तथा शिवदत्त तो अपने-अपने कार्यालय में चले गये थे। विष्णु, माँ को कह कि उसको एक स्थान पर काम का पता करना है, घर से चला गया था। घर पर केवल साधना की माँ और साधना की भाभी उर्मिला ही थीं।

जब साधना तीन घंटे की अनुपस्थिति के पश्चात् घर पहुँची तो उसे अकेली आयी देखकर माँ ने पूछ लिया, ‘‘सौभाग्यवती नहीं आयी क्या?’’

‘‘वे सब गाँव लौट गये हैं।’’

‘‘इतनी देर कहाँ रही हो?’’

‘‘मैं उनको ज्ञानेन्द्रदत्त का लड़का दिखाने के लिये ले गयी थी।’’

‘‘तो दिखाया है?’’

‘‘हाँ। परन्तु जीजाजी को पसन्द नहीं आया।’’

‘‘जीजाजी का कहना है कि महेन्द्र बुद्धि से अभी बालक है। उसको चरित्र की शिक्षा ग्रहण करनी होगी।’’

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