उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘हाँ।’’
‘‘क्या बातें होती हैं? कुछ पढ़ाई के विषय में क्या?’’
विष्णुस्वरूप हँस पड़ा। इन्द्रनारायण इस हँसी का अर्थ नहीं समझ सका। इस कारण वह प्रश्न-भरी दृष्टि से उसकी ओर देखता रहा।
विष्णु ने बात टालने के लिये कह दिया, ‘‘यह तुम अपने विवाह के बाद समझ सकोगे।’’
‘‘तो तुम्हारा विवाह हो चुका है?’’
विष्णु खिलखिलाकर हँसने लगा। इन्द्रनारायण अब सत्रह वर्ष का युवक था और समझता था कि पति-पत्नी परस्पर प्रेम करते हैं।
यद्यपि वह इस प्रेम का कोई क्रियात्मक रूप नहीं जानता था, परन्तु अपने बड़ों से कभी इस विषय पर बात न करने की शिक्षा पाने के कारण वह चुप कर गया। वह इस बात पर लज्जा अनुभव करने लगा था।
इन्द्रनारायण के मुख पर लाली आती देखकर तो विष्णु और भी अधिक जोर से हँसने लगा। इन्द्रनारायण ने निश्चय-सा कर लिया कि वह फिर इस विषय में विष्णु से बात नहीं करेगा।
इन्द्रनारायण की माँ ने उसके विवाह का प्रबन्ध कर लिया था और उसी की ओर ही विष्णुस्वरूप ने संकेत किया था।
इस पर भी, विवाह होने के पश्चात् भी इन्द्र को समझ नहीं आया कि उसका मामा अविवाहित होने पर भी ऐसी कौन-सी बातें करता है, जो विवाह होने के पश्चात् ही कोई लड़का जान सकता है।
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