उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इन्द्रनारायण हँस पड़ा। इस पर रामाधार को कुछ क्रोध चढ़ आया। वह समझा था कि उसने स्मृति के कथन की हँसी उड़ाई है। इससे उसने एक उदाहरण से अपनी बात को पुष्ट कर दिया। उसने कहा, ‘‘हमारे शास्त्रों में पति-पत्नी का सम्बन्ध अटूट समझा जाता है। स्मृतिकार कहता है–
एष धर्मः समासेन ज्ञेयः स्त्री पुंसयोः परः।’
‘‘स्त्री-पुरुष का वियोग मृत्यु-पर्यन्त न हो, यह सबके सम्मुख विवाह करने का अर्थ हैं। यही धर्म है।’’
‘‘परन्तु कुछ समाजों में यह सम्बन्ध टूट सकता है। वह समाज वेद-स्मृति से अनभिज्ञ मनुष्यों का है। इस कारण उनका ऐसा नियम बनाना अधर्म है।’’
‘‘पिताजी!’’ इन्द्र को एक अन्य संशय उत्पन्न हो गया। उसने पूछा, ‘‘यदि पति अथवा पत्नी दुराचारी हों, तब भी सम्बन्ध नहीं टूटेगा?’’
‘‘विवाह-सम्बन्ध तो नहीं टूट सकता। स्त्री अथवा पुरुष दुराचारी होने से अपने साथी से न भी मिलें, तो भी विवाह नहीं टूट सकता। यह शास्त्र का कथन है।’’
इन्द्र को न तो यह बात पसन्द थी, न ही उसको इसमें कुछ लाभ प्रतीत हुआ। पिता ने उसके मुख पर संदेह की मुद्रा देखी, तो कह दिया, ‘‘मेरी आज की बात स्मरण रखना कि जीवन में कोई ऐसी दुर्घटना हो तो ध्यान रखना कि उस अवस्था में भी विवाह तोड़ने से कुछ लाभ नहीं होगा। शास्त्र का मत है कि विवाह नहीं टूटना चाहिये।’’
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