उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
अनवर चपरासी के साथ कोठी की बैठक में जा बैठा। इतने में नौकरानी, एक तश्तरी में शर्बत का गिलास रखे हुए, वहाँ आ गयी।
चपरासी बाहर चला गया। अनवर ने गिलास उठा लिया और दो घूँट में ही शर्बत पीकर, गिलास तश्तरी पर रख कह दिया, ‘‘शुक्रिया।’’
नौकरानी गयी तो एक स्त्री बुर्का ओढ़े हुए आयी और सलामालेकुम कह पास की कुर्सी पर बैठ गयी। अनवर ने समझा, बेगम साहिबा होगी। इससे तस्लीमात कहकर पूछने लगा, ‘‘इधर से गुजरा था। खयाल आया कि लड़की के मुताल्लिक पूछता जाऊँ। अब कैसी है?’’
‘‘ठीक है।’’ बुर्के से उत्तर आया, ‘‘आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। कल आपको हमने बहुत तकलीफ दी और भी आप तकलीफ कर खबर लेने के लिये आये हैं। नवाब साहब आते ही होंगे। आप तशरीफ रखिये। तब तक मैं ही आपको मशगूल रखने को हाजिर हूँ।’’
अनवर इस बात पर स्वयं ही संकोच अनुभव करने लगा था। यदि यह औरत पर्दा से बाहर होती तो वह उससे बीसियों विषयों पर बातचीत कर लेता। और नहीं तो और किसी सिनेमा-पिक्चर पर ही बात करता। मगर एक औरत से, जो पर्दा में बैठी हो, जिसके विषय में यह भी नहीं जानता कि कितनी बड़ी है और कभी भी वह सिनेमा देखने जाती भी है अथवा नहीं, वह क्या बात करे? अनवर अभी विचार कर ही रहा था कि क्या बात करे कि उस स्त्री ने पूछ लिया, ‘‘आपकी अंग्रेज बीवी कैसी है?’’
अनवर इस प्रश्न से चौंक उठा। मगर और कोई ‘टॉपिक’ (विषय) उसको नजर ही नहीं आ रहा था। इससे उत्तर देने लगा, ‘‘ठीक है। खुशी-खुर्रम है। खाती-पीती और मौज उड़ाती है। मगर आप उसको कैसे जानती हैं।
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