उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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उसी दिन सायंकाल अनवर नवाब करामत हुसैन की कोठी पर जा पहुँचा। नवाब साहब कोठी पर मौजूद नहीं थे। चपरासी ने पूछा, ‘‘आपका इस्म शरीफ क्या है?’’
‘‘अनवर हुसैन, नवाबजादा बाराबंकी।’’
‘‘आप तशरीफ रखिये, वे आते ही होंगे।’’
‘‘कहाँ गये हैं?’’
‘‘यह तो पता नहीं।’’
‘‘तो कैसे जानते हो कि आते ही होंगे?’’
‘‘हुक्म है। हम सबको ऐसा ही कहते हैं।’’
‘‘अच्छा, बेगम साहिबा से पूछ आओ। शायद उनको मालूम हो कि नवाब साहब कहाँ गये हैं और कितनी देर तक लौटेंगे।’’
चपरासी ने कोठी के पिछवाड़े जा, एक नौकरानी के हाथ पुछवा भेजा।
अन्दर से सन्देश आया कि उनको बिठाओ।
चपरासी आया। अनवर अभी अपनी मोटर गाड़ी में ही बैठा था। चपरासी ने गाड़ी के पास खड़े होकर कहा, ‘‘हुजूर! आप तशरीफ रखिये। बेगम साहिबा ने फरमाया है कि नवाब साहब आने ही वाले हैं।’’
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