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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


ऐना, पूर्व इसके कि अनवर उसके पास पहुँचे, ड्राइंग-रूम से बाहर हो, अपने सोने के कमरे में जाकर अन्दर से दरवाजा बन्द कर, बैठ गयी।

अनवर वहीं सोफा पर बैठकर नादिरा के विषय में विचार करने लगा कि किस प्रकार उसको पा सकेगा। उसके पाने के मार्ग में ऐना सबसे बड़ी बाधा थी। उसने उससे स्पेशल मैरेज एक्ट के अनुसार शादी की थी।

सोने का समय हो गया था। अनवर, जब से उसका ऐना के साथ विवाह हुआ था, नित्य ऐना के कमरे में सोता रहा था। आज उसका कमरा भीतर से बन्द था। उसके मन में हुआ कि दरवाजा खटखटाए, परन्तु नादिरा की सूरत उसके सामने खड़ी हो मानो कह रही थी, ‘अजी हजरत! किस गन्दी नाली में गोता लगाने जा रहे हैं?’

वह रुक गया और मेहमानों के लिये बनाये बेडरूम में जाकर सो रहा।

ऐना आशा करती थी कि क्रोध शान्त होने पर उसका पति उसके बेडरूम का दरवाजा खटखटायेगा, परन्तु रात के एक बजे तक प्रतीक्षा करने पर भी दरवाजा खटखटाने कोई नहीं आया। अब उसको चिन्ता होने लगी। वह अनुभव कर रही थी कि नित्य से आज कुछ विलक्षण बात हो गयी है। लगभग डेढ़ बजे वह अपने बेडरूम से पति को ढूँढने निकली। मेहमानों के कमरे में अपने पति को एक पलंग पर लेटे, खर्राटे भरते देख, वह खड़ी रह गयी।

उसने दरवाजा भीतर से बन्द किया और कपड़े बदल पति के साथ लेट गयी।

सुबह दोनों सोने के कमरे से इकट्ठे निकले। प्रत्यक्ष में तो दोनों में सुलह हो गयी प्रतीत होती थी। गुसल आदि के बाद, प्रातः का नाश्ता लेने के लिये दोनों डाइनिंग हॉल में जा बैठे। टोस्ट, मक्खन, आमलेट और चाय आदि सामने आयीं तो दोनों ने नाश्ता लेना आरम्भ कर दिया। ऐना खूब खाने वाली स्त्री थी। आज उसने जब दूसरी बार आमलेट मँगवाया तो अनवर ने हँसी में कह दिया, ‘‘कुछ विष्णु बाबू के लिये भी तो रहने दो।’’

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