उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
घर पहुँचते ही वह रजनी की बात भूल गया। उसको उसी सायंकाल अपने गाँव के लिये विदा होना था। उसकी नानी ने उसके कपड़े और अपनी लड़की के लिये कुछ मिठाई, फल इत्यादि बाँध रखे थे। कुछ पुस्तकें रमाकान्त और राधा के लिये कपड़ों के ट्रंक में रख दी थीं।
जल्दी-जल्दी इन्द्रनारायण ने चाय पी, एक पराँठा खाया और अपना बिस्तर कंधे पर रख तथा नानी से दिये पदार्थों की एक डोली हाथ में लटकाये हुए घर से निकल गया।
जाने से पूर्व उसने नानी से कहा, ‘‘मेरा परीक्षा-फल घोषित होते ही मुझको लिखियेगा।’’ उसने नाना को चरण-वंदना की और सामने खड़े विष्णु तथा उसके बड़े भाई और बहन को नमस्ते कह दी।
विष्णु उसको इस प्रकार सबको नमस्ते इत्यादि करके देख मुस्करा रहा था। ‘‘इन्द्र ने जब विष्णु से कहा, ‘‘दादा! याद रखना।’’ तो वह खिलखिलाकर हँस पड़ा।’’
सब विस्मय से उसकी ओर देखने लगे तो उसने कह दिया, ‘‘इन्द्र तो ऐसे मिल रहा है, जैसे वह एक नवविवाहिता की भाँति जन्म-भर के लिये ससुराल जा रहा हो।’’
इस पर इन्द्र की मौसी ने कहा, ‘‘विष्णु, इस शिष्टाचार को भी तुम खराब समझते हो क्या?’’
बात आगे नहीं चल सकी। इन्द्र सामान उठाकर घर से निकल गया और स्टेशन की ओर चल पड़ा।
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