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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘यह विवादास्पद बात है, पिताजी! आपका यहाँ क्या है, इसका निर्णय तो कोर्ट ही कर सकता है।’’

‘‘तो तुम कोर्ट में जाते, अगर मैं ताला न खोलता?’’

‘‘ताला तो खुल गया है और खुल जाता। कोर्ट में आप जाना चाहें, तो जा सकते हैं। हम तो नहीं जायेंगे।’’

शिवदत्त और महावीर भीतर गये तो पद्मावती को खाना बनाते देख शिवदत्त ने पूछ लिया–‘‘यह क्या हो रहा है, महावीर की माँ?’’

‘‘खाना बन रहा है, पिताजी!’’ उत्तर साधना ने दिया।

‘‘किसके लिये?’’

‘‘अपने लिये और आपके लिये।’’

‘‘बन्द करो। खाने की आवश्यकता नहीं है।’’

‘‘परन्तु भूख तो लगी है।’’

‘‘भूख लगी है तो मैं क्या करूँ? कुम्हारा मुझसे कोई वास्ता नहीं। मैंने कह दिया था कि इस घर में तुम्हारे आने की आवश्यकता नहीं है।’’

‘‘देखिये,’’ महावीर की माँ ने बात समाप्त करने के लिये कह दिया–‘‘मुझे इस घर में रहने का पूरा अधिकार है और मैं यहाँ रहूँगी। जिसको यहाँ नहीं रहना, वह चला जाए।’’

विवश शिवदत्त शान्त हो अपने कमरे में चला गया।

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