उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘परन्तु ऐसा क्या हुआ, जो आत्महत्या का विचार हो आया?’’
‘‘हुआ यह कि आप गयीं तो वे आ गये। मैंने उठकर चरण-स्पर्श किये तो वे बोले, ‘बैठो।’
‘‘मैं खड़ी रही। इस पर उन्होंने मुझको घुमाकर रोशनी की ओर मुख करके ध्यान से मेरा मुख देखा। पश्चात् मेरे हाथों को देखने लगे। तदन्नतप मुझको यह कहा था कि ‘सो जाओ’ और स्वयं अपने पलंग पर मुख मोड़कर लेट गये।
‘‘मैं कुछ देर तक खड़ी रही। फिर अपने पलंग पर बैठकर विचार करने लगी कि उन्होंने क्या देखा है और क्यों लेट गये हैं?’’
‘‘कुछ प्रतीक्षा के पश्चात् मैंने धीरे से पूछा, ‘नाथ!’
‘‘इस पर वे उठकर बैठ गये और बोले, ‘हल्ला मत करो। मुझको लेटने दो।’
‘‘परन्तु मैं तो आपसे बातें करने की चार वर्ष से प्रतीक्षा कर रही हूँ।’ मैंने कहा।
‘‘इस पर वे बोले, ‘मेरा चित्त नहीं करता।’
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