उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इस प्रकार हँसी-ठट्ठे में घूँघट की बात टल गई। उसी दिन मध्याह्नोत्तर विदाई हो गयी। विदा करने से पूर्व शारदा के घर वालों ने अभ्यागतों को खूब खिलाया-पिलाया। शारदा के पिता ने अपनी सामर्थ्यानुसार लड़की, लड़के और उसके सम्बन्धियों को भेंट दी।
सायंकाल वे सब दुरैया में जा पहुँचे। वहाँ बाजे-गाजे के साथ बहू का द्वितीय बार ग्रह-प्रवेश किया गया और उसी सायंकाल सम्बन्धी विदा माँगने लगे।
इन्द्रनारायण की बहू और सब स्त्रियाँ अन्तःपुर में थी और बहू का घूँघट उठवाने में सफल हो गयी थीं। रजनी ने पूछ लिया, ‘‘तो अब वर्षा ऋतु नहीं रही न?’’
‘‘तनिक बादल छट गये हैं।’’ लड़की ने आँखें नीचे किये हुए कह दिया।
रजनी बहू का सुन्दर सुख देख चकित रह गयी। उसके सौन्दर्य से भी अधिक चकित करने वाले उसके भावपूर्ण उत्तर थे। वह बहुत प्रसन्न थी।
इस समय राधा भी वहाँ आ बैठी। आस-पड़ोस की स्त्रियाँ बहू का मुँह दिखावा करने आयी हुई थीं। सब मंगल-गीत गाने को विचार कर रही थीं कि बाहर ऊँचे-ऊँचे किसी के बोलने का शब्द सुनाई दिया। सब चुप कर गयीं।
बाहर जब रामाधार पुरुषों की बधाइयाँ ले रहा था और उनको इन्द्र की ससुराल से मिली मिठाई दोनों में भर-भरकर दे रहा था, विष्णु वहाँ आ पहुँचा।
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