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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

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पुराने रिवाज सुगमता से नहीं छूटते। कभी-कभी तो रिवाज मस्तिष्क के अणु-अणु में रम जाते हैं और उनको निकालने का यत्न मस्तिष्क को ही खराब करने वाला सिद्ध होता है। इरीन ने सोचा था कि वह अपने पति पर इतना प्रभाव रखती है कि यदि चाहे तो उसको सिर के बल खड़ा होने को कह सकती है।

यूँ तो उसने उसको ऐसे खड़ा कर भी रखा था। एक मुसलमान ताल्लुकेदार के परिवार में शादी कर वह अपने ऐंग्लो-इंडियन रीति-रिवाज वहाँ ले गयी थी।

विवाह के पश्चात् नवाब साहब के महल में पहुँचते ही हरम के उस भाग को जो उसको रहने के लिये मिला था, उसने अंग्रेजी ढंग के फर्नीचर से सजाना आरम्भ कर दिया। बैठने को मेजे-कुर्सी, खाने को डाइनिंग टेबल, खुली हवा के लिये खिड़कियाँ, पर्दे, जो हवा में फड़फड़ाते रहें–सब-कुछ नया कर दिया। इरीन के बाल बहुत घने और बारीक थे, परन्तु कटे हुए थे। उसके कान और नाक छिदे हुए नहीं थे। उनमें कोई भूषण नहीं था। हाथ में चूड़ियाँ नहीं थीं, यद्यपि सोने की घड़ी बँधी थी। इनके अतिरिक्त वह ऊँची ‘स्कर्ट’ पहनती थी, जिससे टाँगें घुटनों तक नंगी रहती थीं। उन पर जुराबें तो पहनती थी, परन्तु टाँगों के साथ चिपटी रहने से टाँगों की गोलाई तो दृष्टिगोचर होती ही थी।

जब बड़े नवाब साहब ने अपने लड़के से इन सब बातों के लिये शिकायत की तो वह कहने लगा, ‘‘अब्बाजान! मैं अभी-अभी विलायत से लौट रहा हूँ। वहाँ भी यही पोशाक पहनी जाती है। इसको इंगलैंड की मलिका से लेकर एक अदना मजदूर की बीवी तक सब पहनती हैं।’’

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