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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘वहाँ आने पर आपको विदित हो जायेगा। ऐण्ड यूँ, मिस इरीन एण्ड स्मिथ, आर ऑलसो कॉर्डियली इन्वाइटेड।’’

‘‘बट वट इज दि मैटर, मिस्टर नारायण?’’ इरीन ने पूछ लिया।

‘‘इट इज फॉर सम वेरी हैप्पी ऑकेजन। यू शैल नो इट देयर।’’

जब तीनों ने आना स्वीकार कर लिया तो इन्द्रनारायण लौट गया।

विष्णु दूर खड़ा इन्द्र के उन लड़कियों से भद्दे रूप में बात करने का आनन्द ले रहा था। उसके साथ दो साथी भी खड़े थे। जब इन्द्रनारायण उनके समीप पहुँचा तो वे खिलखिलाकर हँसने लगे। उनको हँसते हुए तीनों लड़कियों ने देख लिया। इससे उनके मन में संदेह हो गया कि वे किसी प्रकार की हँसी उनसे करने जा रहे हैं। मिस इरीन ने कह दिया, ‘‘दावत में मुझे विष्णु की कोई शरारत समझ आ रही है।’’

स्मिथ का कहना था, ‘‘तो तुमको प्रसन्न होना चाहिये। वह तुम्हारा ही तो मित्र है।’’

इरीन की आँखों में शरारत स्पष्ट दिखाई देती थी। उसने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘तो आज मजा रहेगा।’’

‘‘हाँ।’’ मिस स्मिथ ने कह दिया, ‘‘परन्तु उसकी हँसी का रुख कहीं मेरी ओर हुआ तो मैं अपने सैण्डल से उसकी मरम्मत किये बिना नहीं रहूँगी।’’

रजनी ने शान्त भाव से कहा, ‘‘कुछ नहीं होगा। इन्द्र से हमको किसी भी शरारत की आशा नहीं करनी चाहिये।’’

‘‘वह तो बुद्धू भी बनाया जा सकता है।’’

‘‘वह मूर्ख नहीं है। श्रेणी में सबसे योग्य विद्यार्थी है।’’

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