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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘वह मिस सिन्हा मुझको और आपको अपने पिता की कोठी में चाय का निमंत्रण देती थी।’’

‘‘ तो तुम मान आयी हो?’’

‘‘मैंने कहा था कि आपसे पूछकर बताऊँगी। कल तो हम बाराबंकी जा ही रहे हैं। अगली बार लौटेंगे तो बात करेंगे।’’

‘‘उस लड़की के साथ यह उसका नौकर था क्या?’’

‘‘जी नहीं। वह भी मेडिकल कॉलेज का विद्यार्थी है।’’

‘‘बहुत थर्ड क्लास कपड़े पहने हुए था। यह डॉक्टरी करेगा क्या?’’

‘‘वह प्रान्त में तीसरे नम्बर पर रहा है। बहुत ही योग्य विद्यार्थी है।’’

‘‘इसकी डॉक्टरी चलेगी नहीं।’’

रहमत बहुत ही फूहड़ विचार की लड़की थी, परन्तु उसको अपना पति तो बिलकुल ही फिजूल मालूम हुआ। उसने रजनी को अच्छी खूबसूरत औरत कहा था और इन्द्रनारायण के खद्दर के कपड़े देखकर कह दिया था कि उसकी डॉक्टरी नहीं चलेगी। इस पर भी वह स्वयं बहुत प्रसन्न थी।

बैंक में उसका चालीस हजार रुपया अपने नाम जमा हो गया था। इसके अतिरिक्त तीस सलवार-कुर्ते आदि सूट थे। इतनी ही साड़ियाँ-जम्पर थे। दस सेट भूषणों के थे और खाने-पीने की कमी नहीं थी। बढ़िया-से-बढ़िया शराब उनकी अलमारी में मौजूद रहती थी।

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