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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


विष्णु था तो इन्द्रनारायण से दुर्बल, परन्तु क्रोध में वह यह बात भूल गया। उसने एक चपत भानजे के मुख पर दे मारी।

इन्द्रनारायण ने हाथ उठाया, परन्तु वह उठा ही रह गया। विष्णु के मुख की आकृति उसकी माँ से मिलती थी। उसको कुछ ऐसा समझ आया कि वह अपनी माँ को पीटने जा रहा है।

विष्णुस्वरूप ने चपत लगा तो दी, परन्तु उसी क्षण उसको समझ आ गया कि यह ठीक नहीं किया। यदि इन्द्र ने बदले में चपत लगा दी तो उसके दाँत निकल जायेंगे। इस समय जब इन्द्रनारायण का हाथ ऊपर ही रुक गया तो उसकी जान में जान आई। वह आँखों में आँसू और मुख पर मुस्कराहट लाते हुए बोला, ‘‘मारो न, मारते क्यों नहीं?’’

‘‘नही, मारूँगा नहीं। तुम मेरे माँ के भाई हो। तुम्हारी पदवी माँ के बराबर ही है।’’

विष्णु माँ का भाई कहा जाने पर प्रसन्न नहीं हुआ, परन्तु पिटने से बच गया यही गनीमत थी। वह चुप कर रहा।

दोनों घर पहुँचे तो शिवदत्त् दूबे ताँगे से उतर घर में जा रहा था। वह दफ्तर से लौटा था। लड़कों को आते देख वह ठहर गया। वह जानना चाहता था कि वे आज इतनी देर से क्यों आ रहे हैं? परन्तु इन्द्र के गाल लाल देखकर और उसके उँगलियों के चिह्न लगे देख वह पहला प्रश्न करना भूल गया और पूछने लगा, ‘‘इन्द्र! क्या हुआ है?’’

‘‘कहाँ, नानाजी?’’

‘‘यह तुम्हारे मुख पर।’’

‘‘एक सहपाठी से झगड़ा हो गया था। उसने चपत लगाई है। क्या बहुत लाल हो रहा है मेरा गाल?’’

‘‘तुमने उसको पीटा है अथवा नहीं?’’

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