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उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556
आईएसबीएन :978-1-61301-175

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


साधु-अवश्य, अभ्यास से सब कुछ हो सकता है। हां, योग्य गुरु चाहिए। योग से बड़ी-बड़ी सिद्वियां प्राप्त हो सकती हैं। जितना धन चाहो, पल-मात्र में मंगा सकते हो। कैसी ही बीमारी हो, उसकी औषधि बता सकते हो।

सियाराम–आपका स्थान कहां है?

साधु–बच्चा, मेरे को स्थान कहीं नहीं है। देश-देशान्तरों से रमता फिरता हूं। अच्छा, बच्चा अब तुम जाओ, मै। जरा स्नान-ध्यान करने जाऊंगा।

सियाराम–चलिए मैं भी उसी तरफ चलता हूं। आपके दर्शन से जी नहीं भरा।

साधु-नहीं बच्चा, तुम्हें पाठशाला जाने की देरी हो रही है।

सियाराम–फिर आपके दर्शन कब होंगे?

साधु-कभी आ जाऊंगा बच्चा, तुम्हारा घर कहां है?

सियाराम प्रसन्न होकर बोला–चलिएगा मेरे घर? बहुत नजदीक है। आपकी बड़ी कृपा होगी।

सियाराम कदम बढ़ाकर आगे-आगे चलने लगा। इतना प्रसन्न था, मानो सोने की गठरी लिए जाता हो। घर के सामने पहुंचकर बोला–आइए, बैठिए कुछ देर।

साधु–नहीं बच्चा, बैठूंगा नहीं। फिर कल-परसों किसी समय आ जाऊंगा। यही तुम्हारा घर है?

सियाराम–कल किस वक्त आइयेगा?

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