उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
मनीराम ने तुरंत पंखा बन्द करते हुए कहा–‘आपने क्यों कष्ट किया बाबूजी? मुझे बुला देते। डॉक्टर साहब ने चलने-फिरने को मना किया था।’
लाला धनीराम ने पूछा–‘क्या आज लाला समरकान्त की बहू आयी थी?’
मनीराम कुछ डर गया–‘जी हाँ, अभी-अभी चली गयीं।’
धनीराम ने आँखें निकालकर कहा–‘तो तुमने अभी से मुझे मरा समझ लिया? मुझे ख़बर तक न दी।’
‘मैं तो रोक रहा था; पर वह झल्लायी हुई चली गयीं।’
‘तुमने अपनी बातचीत से उसे अप्रसन्न कर दिया होगा, नहीं वह मुझसे मिले बिना न जाती।’
‘मैंने तो केवल यही कहा था कि उनकी तबीयत अच्छी नहीं है।’
‘तो तुम समझते हो, जिसकी तबीयत अच्छी न हो, उसे एकान्त में मरने देना चाहिए? आदमी एकान्त में मरना भी नहीं चाहता। उसकी हार्दिक इच्छा होती है कि कोई संकट पड़ने पर उसके सगे-संबंधी आकर उसे घेर लें।’
लाला धनीराम को खाँसी आ गयी। ज़रा देर के बाद वह फिर बोले–‘मैं कहता हूँ, तुम कुछ सिड़ी तो नहीं हो गये हो? व्यवसाय में सफलता पा जाने से ही किसी का जीवन सफल नहीं हो जाता। समझ गये? सफल मनुष्य वह है, जो दूसरों से अपना काम भी निकाले और उन पर एहसान भी रखे। शेखी मारना सफलता की दलील नहीं, ओछेपन की दलील है। वह मेरे पास आती, तो यहाँ से प्रसन्न होकर जाती और उसकी सहायता बड़े काम की वस्तु है। नगर में उसका कितना सम्मान है, शायद तुम्हें इसकी ख़बर नहीं। वह अगर तुम्हें नुक़सान पहुँचाना चाहे, तो एक दिन में तबाह कर सकती है। और वह तुम्हें तबाह करके छोड़ेगी। मेरी बात गिरह बाँध लो। वह एक ही ज़िद्दिन औरत है; जिसने पति की परवाह न की, अपने प्राणों की परवाह न की...न जाने तुम्हें कब अक़ल आयेगी।’
लाला धनीराम को खाँसी का दौरा आ गया। मनीराम ने दौड़कर उन्हें सँभाला और उनकी पीठ सहलाने लगा। एक मिनट के बाद लालाजी को साँस आयी।
मनीराम ने चिन्तित स्वर में कहा–‘इस डॉक्टर की दवा से आपको कोई फ़ायदा नहीं हो रही है। कविराज को क्यों न बुला लिया जाये। मैं उन्हें तार दिए देता हूँ।’
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