लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511
आईएसबीएन :978-1-61301-084

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


सुखदा बोली–‘तो इसमें क्या बुराई है? यह तो नहीं होता कि पुरुष तो गुलछर्रें उड़ावे और स्त्री उसके नाम को रोती रहे।’

नैना ने जैसे रटे हुए वाक्य को दुहराया–‘प्रेम के अभाव में सुख कभी नहीं मिल सकता। बाहरी रोकथाम से कुछ न होगा।’

सुखदा ने छेड़ा–‘मालूम होता है, आजकल यह विद्या सीख रही हो। अगर देख-भालकर विवाह करने में कभी-कभी धोखा हो सकता है, तो बिना देखे-भाले करने में बराबर धोखा होता है। तलाक़ की प्रथा यहाँ हो जाने दो, फिर मालूम होगा कि हमारा जीवन कितना सुखी है।’

नैना इसका कोई जवाब न दे सकी। कल व्यासजी ने पश्चिमी विवाह-प्रथा की तुलना भारतीय पद्धति से की। यहीं बातें कुछ उखड़ी–सी उसे याद थीं। बोली–‘तुम्हें कथा में चलना है कि नहीं, यह बताओ।’

‘तुम जाओ, मैं नहीं जाती।’

नैना ठाकुरद्वारे में पहुँची तो कथा आरम्भ हो गयी थी। आज और दिनों से ज़्यादा हुजूम था। नौजवान-सभी और सेवा-पाठशाला के विद्यार्थी और अध्यापक भी आये हुए थे। मधुसूदनजी कर रहे थे–‘राम-रावण की कथा तो इस जीवन की, इस संसार की कथा है; इसको चाहो तो सुनना पड़ेगा, न चाहो तो सुनना पड़ेगा। इससे हम तुम बच नहीं सकते। हमारे ही अन्दर राम भी है, रावण भी है, सीता भी है, आदि...’

सहसा पिछली सफों में कुछ हलचल मची। ब्रह्मचारीजी कई आदमियों को हाथ पकड़-पकड़कर उठा रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से गालियाँ दे रहे थे। हंगामा हो गया। लोग इधर-उधर से उठकर वहाँ जमा हो गये। कथा बन्द हो गयी।

समरकान्त ने पूछा–‘क्या बात है ब्रह्मचारीजी?’

ब्रह्मचारी ने ब्रह्मतेज से लाल–लाल आँखें निकालकर कहा–‘बात क्या है, यह लोग भगवान् की कथा सुनने आते हैं कि अपना धर्म भ्रष्ट करने आते हैं! भंगी, चमार जिसे देखो घुसा चला आता है–ठाकुरजी का मन्दिर न हुआ सराय हुई!’

समरकान्त ने कड़ककर कहा–‘निकाल दो सभी को मारकर!’

एक बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा–‘हम तो यहाँ दरवाजे पर बैठे थे सेठजी, जहाँ जूते रखे हैं। हम क्या ऐसे नादान हैं कि आप लोगों के बीच में जाकर बैठ जाते।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book