उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
‘हाँ दादा, आज तो न खाऊँगा, मुझे कै हो जायेगी।’
‘लेकिन हमारे यहाँ तो आये दिन यही धन्धा लगा रहता है।’
‘दो-चार दिन के बाद मेरी भी आदत पड़ जायेगी।’
‘तुम हमें मन में राच्छस समझ रहे होगे?’
अमर ने छाती पर हाथ रखकर कहा–‘नहीं दादा, मैं तो तुम लोगों से कुछ सीखने, तुम्हारी कुछ सेवा करके अपना उद्धार करने आया हूँ। यह तो अपनी-अपनी प्रथा है। चीन एक बहुत बड़ा देश है। वहाँ बहुत आदमी बुद्ध भगवान को मानते हैं। उनके धर्म में किसी जानवर को मारना पाप है। इसलिए वह लोग मरे हुए जानवर ही खाते हैं। कुत्ते, बिल्ली, गीदड़ किसी को भी नहीं छोड़ते। तो क्या वह हमसे नीच हैं? कभी नहीं। हमारे ही देश में कितने ब्राह्मण, क्षत्री माँस खाते हैं? वे जीभ के स्वाद के लिए जीव-हत्या करते हैं। तुम उनसे तो कहीं अच्छे हो।’
गूदड़ ने हँसकर कहा–‘भैया, तुम बड़े बुद्धिमान हो, तुमसे कोई न जीतेगा! चलो, अब कोई मुर्दा नहीं खायेगा। हम लोगों ने यह तय कर लिया। हमने क्या तय किया, बहू ने तय किया। मगर खाल तो न फेंकनी होगी?’
अमर ने प्रसन्न होकर कहा–‘नहीं दादा, खाल क्यों फेंकोगे? जूते बनाना तो सबसे बड़ी सेवा है। मगर क्या भाभी बहुत बिगड़ी थीं।’
गूदड़ बोला–‘बिगड़ी ही नहीं थी भैया, वह जो जान देने को तैयार थी। गाय के पास बैठ गयी और बोली–अब चलाओ गँडासा, पहला गँड़ासा मेरी गरदन पर होगा! फिर किसकी हिम्मत थी कि गँड़ासा चलाता।’
अमर का हृदय जैसे एक छलाँग मारकर मुन्नी के चरणों पर लोटने लगा।
७
कई महीने गुज़र गये। गाँव में फिर मुरदा-माँस न आया। आश्चर्य की बात तो यह थी कि दूसरे गाँवों के चमारों ने भी मुरदा-माँस खाना छोड़ दिया। शुभ उद्योग कुछ संक्रामक होता है।
अमर की शाला अब नयी इमारत में आ गयी थी। शिक्षा का लोगों को कुछ ऐसा चस्का पड़ गया था कि जवान-तो जवान बूढ़े भी आ बैठते और कुछ-न-कुछ सीख जाते। अमर की शिक्षा-शैली आलोचनात्मक थी। अन्य देशों के सामाजिक और राजनैतिक प्रगति, नये-नये अविष्कार, नये-नये विचार, उसके मुख्य विषय थे। देश-देशान्तरों के रस्मों-रिवाज आचार-विचार की कथा सभी चाव से सुनते। उसे यह देखकर कभी-कभी विस्मय होता था कि ये निरक्षर लोग जटिल सामाजिक सिद्धान्तों को कितनी आसानी से समझ जाते हैं। सारे गाँव में एक नया जीवन प्रवाहित होता हुआ जान पड़ता। छूत-छात का तो जैसे लोप हो गया था। दूसरे गाँवों की ऊँची जातियों के लोग अक्सर आ जाते थे।
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