अतिरिक्त >> दरिंदे दरिंदेहमीदुल्ला
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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश
बिहारी: बताया था। कह रही थी, आण्टी मुझे कहकर नहीं जातीं।
मालती: मैं बेहद परेशान हूँ, लड़की से, बिहारी। इससे मैं अपना पीछा
छुड़ाना चाहती हूँ। डायन मामा को तो खा ही गयी। अब इसकी मनहूसियत मेरे
पीछे पड़ी है। कितनी बार कह चुकी हूँ, चली जा अपने माँ-बाप के पास, नहीं
जाती।
बिहारी: तुम्हें चाहती है।
मालती: कितना चाहती है, यह मैं खूब जानती हूँ।
बिहारी: तुम इसपर नाहक़ नाराज़ हो रही हो। एक शब्द नहीं बोला है इसने अब
तक। कितना प्यारी बेबी है ! उम्र क्या होगी अभी ?
मालती: सत्रह-अठारह को पार कर रही है।
बिहारी: इसकी शादी की फिक्र है ?
मालती: शादी की फ़िक्र मैं क्या करूँ ? वो करें, जिन्होंने जन्म दिया है
इसे।
बिहारी: मैंने तो मज़ाक किया था, तुमसे। इसने कुछ नहीं कहा था तुम्हारे
लिए। बाहर बहुत गरमी है क्या ? यहाँ थोड़ी देर आराम से बैठो। मिज़ाज में
ठण्डक आयेगी। क्यों गयी थीं बाहर, कोई काम था ?
मालती: वही करन्सी के ट्रान्सफ़र का चक्कर है। मेरी एक सहेली के मिलनेवाले
हैं ओवरसीज़ बैंक में। उनके यहाँ गयी थी।
बिहारी: पैसा अमेरिका से यहाँ ट्रान्सफर कराना है ? यह काम मैं करवा
दूँगा।
ओवरसीज़ के ऐजेण्ट से मेरी अच्छी जान-पहचान है।
मालती: पैसे की बड़ी तंगी है आजकल।
बिहारी: भई अपना तो यह विचार है कि हर आदमी की 70 प्रतिशत वरीज़ पैसे को
लेकर हैं।
मालतीःकुछ लिया ?
बिहारीः ठण्डा या गर्म-अभी नहीं।
मालतीः इस लड़की को इतनी तमीज नहीं कि घर आये व्यक्ति से पूछ ले।
बिहारीःइस पर क्यों बिगड़ रही हो इसने तो पूछा था। तुम्हारे आने तक मैंने
मना किया था।
मधुःक्या लाऊँ ?
बिहारीः अपनी आण्टी से पूछो। हम तो कुछ भी ले लेते हैं।
मालतीः ठण्डा ले आओ। बड़ी गरमी है।
मधुः जी।
(मधु का प्रस्थान)
मालतीः बिहारी।
बिहारीः आँ।
मालतीः तुम्हें ज़्यादा देर तो इन्तज़ार नहीं करना पड़ा ?
बिहारीः नहीं तो। वे बैंक के काग़ज मुझे दे दो। ऐसा न हो कि मैं उठकर चला
जाऊँ और ये यहीं रह जायें। अब तुम्हारा यह काम कराने की जिम्मेदारी अपनी
रही ।
मालतीः शुक्र है, तुम मेरे प्रति अपनी ज़िम्मेदारी तो समझने लगे।
मधुः (प्रवेश) लीजिए, कोल्ड ड्रिंक्स।
मालतीः ढंग से सर्व करो। तुम्हें तमीज़ कब आयेगी ! (मौन)
वहाँ जायेगी आज ?
मधुःचली जाऊँगी।
बिहारीः कहाँ ?
मालतीःअपने मम्मी-डैडी से मिलने !
बिहारीः यहीं बम्बई में रहते हैं।
मालतीः हाँ। (मधु से) जा रही हैं ?
मधुः तैयार हो लूँ।
बिहारीः थैंक्यू फ़ार द ड्रिंक्स। मैं अब चलूँ।
मालतीः तुम कहाँ चले, थोड़ी देर बैठो ! अभी तो तुमसे बहुत सी
बातें करनी हैं।
बिहारीः फिर किसी वक़्त आऊँगा। अभी चलूँ। तुम चल रही हो, मधु ? कहाँ रहते
हैं तुम्हारे मम्मी-डैडी। चाहो तो मेरे साथ चलो। स्कूटर है। छोड़ दूँगा
वहाँ।
मालतीः कोलाबा में रहते हैं। झटपट तैयार भी हो जा। बिहारी अंकल छोड़ देंगे
वहाँ।
मधुः दो मिनट में आयी।
बिहारीः हाँ जल्दी। मुझे देर हो रही है।
मधुः अभी आयी। (प्रस्थान)
मालतीः आजकल हवा पर सवार क्यों रहते हो ? मैं देख रही हूँ, आजकल
कुछ खोये-खोये से रहने लगे हो।
बिहारीः तुम्हारी चिन्ता रहती है।
मालतीः सच !
बिहारीः सच !
मालतीः क्या सोचते हो ?
बिहारीः रिश्तों का अर्थ।
मालतीः जुड़ना।
बिहारीः जुड़ने के लिए टूटते रहना ।
मालतीः टूटने से बचने के लिए जुड़ना।
बिहारीः निरन्तर टूटते रहना।
मालतीः सब एक ही प्रक्रिया का अंग नहीं है ?
बिहारीः अलग-अलग स्थितियों में अर्थ बदल जाते हैं।
मालतीः और क्या सोचते हो ?
बिहारीः किस बारे में ?
मालतीः तुम्हारे और मेरे बीच रिश्तों के बारे में।
बिहारीः पति-पत्नी के अलावा दोस्त बनकर भी तो रहा जा सकता है।
मालतीः दोस्त ?
बिहारीः हाँ। इस तरह एक बन्दिश से नहीं बचा जा सकता ?
मालतीः हूँ।
(दरवाजे के पास मधु का साड़ी पहने प्रवेश। अचानक बिहारी की
दृष्टि उस पर पड़ती है।)
बिहारीः सुन्दर !
मालतीः मेरे लिए कई बार इस शब्द का प्रयोग उन्होंने किया था।
बिहारीः किसने ?
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