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दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8424
आईएसबीएन :0

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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश


स्त्री : सुरक्षा
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया
    भेड़िया भेड़िया भेड़िया भेड़िया

(स्त्री झुककर भेड़ की तरह चरने लगती है। पुरुष गड़रिये के रूप में भेड़ें चराने लगता है। तभी अचानक इस तरह व्यवहार करता है मानों भेड़ों में कोई भेड़िया घुस आया हो। गड़रिया भेड़ को भेड़िये से बचाने की निष्फल कोशिश करता है। भेड़ मृत अवस्था में और गड़रिया उसे बचाने के यत्न में फ्रीज़ हो जाते हैं।)

(ध्वनि-प्रभाव)

पुरुष : शान्ति
    गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध
    गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध
    गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध
    गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध
    गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध गिद्ध

(स्त्री चौकी पर मुँह के बल लेट जाती है। पुरुष इस तरह व्यवहार करता है जैसे लाश का गोश्त नोंचने के लिए झपटते गिद्ध उड़ा रहा हो। आखिर टूटःथककर वह अपने दोनों हाथ हवा में सीधे उठाकर लाश को ढाँप लेने की मुद्रा फ्रीज़ हो जाता है)
                              (ध्वनि-प्रभाव)

स्त्री : छोटे शब्द बड़े कान।
पुरुष : बड़े शब्द छोटे कान।
स्त्री : बड़े शब्द छोटे कान।
पुरुष :छोटे शब्द बड़े कान।
स्त्री : बड़े शब्द
पुरुष : छोटे कान
स्त्री : बड़े कान
पुरुष : छोटे शब्द
स्त्री : मैं बड़ा ।
पुरुष : मैं बड़ा।
स्त्री : मैं बड़ा।
पुरुष : मैं।
स्त्री : मैं।
पुरुष : मैं।
स्त्री : मैं।

(दोनों पूरी शक्ति से ऊँचा दिखने की कोशिश करते सरकस की विशेष मुद्रा में फ्रीज़ हो जाते हैं।)
(ध्वनि-प्रभाव)

पुरुष : फुर्र ।
स्त्री : फुर्र।
पुरुष : फुर्रररररररररर्र।
स्त्री : फुर्ररररररररररर्र।
पुरुष : चिड़िया आयी दाना लायी।
स्त्री : फुर्र। चिड़िया आयी चावल लायी।
पुरुष : फुर्र। चिड़िया आयी गेहूँ लायी।
स्त्री : फुर्र। चिड़िया आयी दाल लायी।
पुरुष : फुर्र। चिड़िया आयी।
स्त्री : दाना लायी। फुर्र।
पुरुष : चिड़िया।
स्त्री : फुर्र। चिड़िया।
पुरुष : फुर्र।
 स्त्री : फुर्र।
पुरुष : फुर्र। फुर्र। फुर्र।
स्त्री : फुर्र। फुर्र। फुर्र।

(दोनों पक्षियों की तरह मंच पर चक्कर काटते हैं। एक दूसरे को क्रॉस करते हैं। ध्वनि-प्रभाव के बीच मंच से बाहर चले जाते हैं। प्रकाश लुप्त होता है। क्षणकि दृश्य-परिवर्तन-सूचक संगीत। पुनः प्रकाश आने पर दर्शकों की ओर से मंच के दायीं ओर निचले हिस्से में स्त्री (हनी) और पुरुष किसी बात पर जोर से ठहाका लगाते दिखाई देते हैं। उनके सामने की विंग से दार्शनिक का प्रवेश।)

स्त्री : अरे तुम ! आज बहुत दिनों बाद कॉफ़ी-हाउस आये ?
वि.दा. : मैं जंगल में चला गया था।
पुरुष : कोई काम था ?
वि. दा. : यहाँ की ज़िन्दगी से ऊब गया था।
स्त्री : वहाँ कोई फ़र्क़ महसूस किया ?
वि. दा. : हाँ। वे लोग ज़्यादा ईमानदार हैं।
पुरुष : और ?
वि.दा. : ज़्यादा सज्जन हैं।
स्त्री  : और ?
वि.दा. : ज़्यादा समझदार हैं।
पुरुष : और ?
वि.दा. : आदमी उनके मुकाबले कमज़ोर ही नहीं बहुत गिरा हुआ जीव है।
स्त्री : फिर शहर क्यों चले आये ?
वि.दा. : जानवरों की हितों की रक्षा के लिए आन्दोलन चलाने।
पुरुष : तो कॉफ़ी हाउस आने की क्या ज़रूरत थी ?
वि.दा. : हर आन्दोलन कॉफ़ी हाउस से जन्म लेता है।
स्त्री :  इसके अलावा भी कोई काम है ?
वि.दा. : फिलहाल कुछ नहीं।
पुरुष : हमारे सात चलो।
वि.दा. : कहाँ ?
स्त्री : अमेरिका के खिलाफ़ प्रदर्शन करने।
पुरुष : उसके बाद चीन के खिलाफ़।
स्त्री : उसके बाद....
वि.दा. :लेकिन यह काम ?
पुरुष : बाद में आकर कर लेना। अभी काफ़ी वक़्त पड़ा है। आओ।
    (दार्शनिक पुरुष-स्त्री के साथ हो लेता है। तीनों ‘ज़िन्दाबाद, मुरदाबाद’ के नारे लगाते मंच के बीच चौकी का चक्कर काटते हैं। स्त्री-पुरुष मंच के बाहर चले जाते हैं। दार्शनिक मंच पर दर्शकों की ओर आगे बढ़ता हुआ मंच के सिरे पर आ जाता है। तभी अन्य पुरुष (पिगवान) का प्रवेश।)
अन्य पुरुष : (दार्शनिक से) यह चरस है। यह गाँजा है। यह अफ़ीम है। यह शराब है।
वि.दा. : चरस ! गाँजा ! अफीम ! शराब !

( जोर से ठहाका मारता है।) हहहहहहहहहहहहह हा हा हा हा हा हा......

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