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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8404
आईएसबीएन :978-1-61301-031-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

तीसरा बयान


अब हम कुँअर इन्द्रजीतसिंह की तरफ चलते और देखते हैं कि उधर क्या हो रहा है।

किशोरी और कमलिनी की बातचीत सुनकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह से रहा न गया और उन्होंने बेचैनी के साथ उन दोनों की तरफ देखकर कहा, ‘‘क्या तुम लोगों ने मुझे सताने और दुःख देने के लिए कसम ही खा ली है? क्यों मेरे दिल में हौल पैदा कर रही हो? असल बात क्यों नहीं बतातीं!’’

किशोरी : (मुस्कुराती हुई) यद्यपि मुझे आप से शर्म करनी चाहिए, मगर कमला और कमलिनी बहिन ने मुझे बेहया बना दिया, तिस पर आज की दिल्लगी मुझे हँसते-हँसते बेहाल कर रही है। आप बिगड़े क्यों जाते हैं। ठहरिए ठहरिए, जल्दी न कीजिए, और समझ लीजिए कि मेरी शादी आपके साथ हुई नहीं, बल्कि कमलिनी की शादी आपके साथ हुई है।

कुमार : सो कैसे हो सकता है! और मैं क्योंकर ऐसी ऐसी अनहोनी बात मान लूँ!

कमलिनी : अब आपकी हालत बहुत खराब हो गयी! क्या कहूँ, मैं तो आपको अभी और छकाती, मगर दया आती है, इसीलिए छोड़ देती हूँ। इसमें कोई शक नहीं कि मैंने आपसे दिल्लगी की है, मगर इसके लिए मैं आपसे इजाजत ले चुकी हूँ! (अपनी तर्जनी उँगली की अँगूठी दिखाकर) आप इसे पहिचानते हैं!

कुमार : हां हाँ, मैं इस अँगूठी को खूब पहिचानता हूँ, तिलिस्म के अन्दर यह अँगूठी मैंने इन्द्रानी को दी थी, मगर अफसोस!

कमलिनी : अफसोस न कीजिए, आपकी इन्द्रानी मरी नहीं, बल्कि जीती-जागती आपके सामने खड़ी है।

कमलिनी की इस आखिरी बात ने कुमार के दिल से आश्चर्य और दुःख को धोकर साफ कर दिया और उन्होंने खुशी-खुशी कमलिनी और किशोरी का हाथ पकड़कर कहा, ‘‘क्या यह सच है?’’

किशोरी : जी हाँ, सच है।

कुमार : और जिन दोनों को मैंने मरी हुई देखा था, वे कौन थीं?

किशोरी : वे वास्तव में माधवी और मायारानी थीं, जो तिलिस्म के अन्दर ही अपनी बदकारियों का फल भोग कर मर चुकी थीं। आपके दिल से उस शादी का खयाल उठा देने के लिए ही उनकी लाशें इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दिखा दी गयी थीं, मगर वास्तव में इन्द्रानी यहीं मौजूद हैं और आनन्दी लाडिली थी, जो आनन्दसिंह के साथ ब्याही गयी थी। इस समय उधर भी कुछ ऐसा ही रंग मचा हुआ है।

कुमार : तुम्हारी बातों ने इस समय मुझे प्रसन्न कर दिया। विशेष प्रसन्नता तो इस बात से होती है कि तुम खुले दिल से इन बातों का बयान कर रही हो और कमलिनी में तथा तुममें पूरे दर्जे की मुहब्बत मालूम होती है। ईश्वर इस मुहब्बत को बराबर इसी तरह बनाये रहे। (कमलिनी से) मगर तुमने मुझे बड़ा ही धोखा दिया, ऐसी दिल्लगी भी कभी किसी ने नहीं सुनी होगी! आखिर ऐसा किया ही क्यों!

कमलिनी : अब क्या सब बातें खड़े-खड़े ही खतम होंगी और बैठने की इजाजत न दी जायगी।

कुमार: क्यों नहीं, अब बैठकर हँसी-दिल्लगी करने और खुशी मनाने के सिवाय और हम लोगों को करना ही क्या है!

इतना कहकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह गद्दी पर बैठ गये और हाथ पकड़कर किशोरी और कमलिनी को अपने दोनों बगल में बैठा लिया। कमला आज्ञा पाकर बैठा ही चाहती थी कि दरवाजे पर ताली बजने की आवाज आयी जिसे सुनते ही वह बाहर चली गयी और तुरन्त लौटकर बोली, ‘‘पहरेवाली लौंडी कहती है कि भैरोसिंह बाहर खड़े हैं।’’

कुमार : (खुश होकर) हाँ हाँ, उन्हें जल्द ले आओ, इन हजरत ने मेरे साथ क्या कम दिल्लगी की है? अब तो मैं सब बातें समझ गया। भला आज उन्हें इत्तिला कराके मेरे पास आने का दिन तो नसीब हुआ!

कुमार की बातें सुनकर कमला पुनः बाहर चली गयी और कमलिनी तथा किशोरी, कुमार के बगल से कुछ हटकर बैठ गयीं, इतने ही में भैरोसिंह भी आ पहुँचे।

कुमार : आइए आइए, आपने भी मुझे बहुत छकाया है, पर क्या चिन्ता है, समय मिलने पर समझ लूँगा!

भैरो : (हँसकर) जोकुछ किया (किशोरी की तरफ बताकर) इन्होंने किया, मेरा कोई कसूर नहीं!

कुमार : खैर, जोकुछ हुआ सो हुआ, अब मुझे सच्चा-सच्चा हाल तो सुना दो कि तिलिस्म के अन्दर इस तरह की रूखी, फीकी शादी क्यों करायी गयी और इस काम के अगुआ कौन महापुरुष हैं?

भैरो : (किशोरी की तरफ इशारा करके) जोकुछ किया सब इन्होंने किया। यही सब काम में अगुआ थीं और राजा गोपालसिंह इस काम में इनकी मदद कर रहे थे। उन्हीं की आज्ञानुसार मुझे भी मजबूर होकर इन लोगों का साथ देना पड़ा। इसका खुलासा हाल आप कमला से पूछिए, यही ठीक-ठीक बतावेगी।

कुमार : (कमला से) खैर, तुम्हीं बताओ कि क्या हुआ?

कमला:(किशोरी से) कहो बहन, अब तो मैं साफ कह दूँ?

किशोरी : अब छिपाने की जरूरत ही क्या है!

कमला ने इस तरह से कहना शुरू किया, ‘‘किशोरी बहिन ने मुझसे कई दफे कहा कि ‘तू इस बात का बन्दोबस्त कर कि किसी तरह मेरी शादी के पहिले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ हो जाय, मगर मेरे किये इसका कुछ भी बन्दोबस्त न हो सका और कमलिनी रानी भी इस बात पर राजी होती दिखायी न दीं। अस्तु, मैं बात टालकर चुप हो बैठी, मगर मुझे इस काम में सुस्त देखकर किशोरी ने फिर मुझसे कहा कि ‘देख कमला, तू मेरी बात पर कुछ ध्यान नहीं देती, मगर इसे खूब समझ रखियो कि अगर मेरा इरादा पूरा न हुआ अर्थात् मेरी शादी के पहिले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ न हो गयी तो मैं कदापि ब्याह न करूँगी, बल्कि अपने गले में फाँसी लगाकर जान दे दूँगी। कमलिनी ने जो कुछ अहसान मुझपर किये हैं, उनका बदला मैं किसी तरह चुका नहीं सकती, अगर कुछ चुका सकती हूँ, तो इसी तरह कि कमलिनी को पटरानी बनाऊँ और आप उसकी लौंडी होकर रहूँ, मगर अफसोस है कि तू मेरी बातों पर कुछ भी ध्यान नहीं देती, जिसका नतीजा यह होगा कि एक दिन तू रोयेगी और पछतायेगी।

‘‘किशोरी की इस आखिरी बात से मेरे कलेजे पर एक चोट-सी लगी और मैंने सोचा कि जोकुछ यह कहती है, बहुत ठीक है, ऐसा होना ही चाहिए। आखिर मैंने राजा गोपालसिंह से यह सब हाल कहा और उन्हें अपनी तरफ से भी बहुत कुछ समझाया, जिसका नतीजा यह निकला कि वे दिलोजान से इस काम के लिए तैयार हो गये। जब वे खुद तैयार हो गये तो फिर क्या था? सब काम खूबी के साथ होने लगा।

‘‘राजा गोपालसिंह ने इस विषय में कमलिनीजी से कहा और उन्हें बहुत समझाया मगर ये राजी न हुईं और बोलीं कि ‘आपकी आज्ञानुसार मैं कुमार से ब्याह कर लेने के लिये तैयार हूँ, मगर यह नहीं हो सकता कि किशोरी से पहिले ही अपनी शादी करके, उसका हक मार दूँ, हाँ, किशोरी की शादी हो जाने के बाद जो कुछ आप आज्ञा देंगे मैं करूँगी’। यह जवाब सुनकर गोपालसिंहजी ने फिर कमलिनी को समझाया और कहा कि अगर तुम किशोरी की इच्छा पूरी न करोगी तो वह अपनी जान दे देगी, फिर तुम ही सोच लो कि उसके मर जाने से कुमार की क्या हालत होगी और तुम्हारी इस जिद्द का क्या नतीजा निकलेगा’?

‘‘गोपालसिंहजी की इस बात ने (कमलिनी की तरफ बताके) इन्हें लाजवाब कर दिया और ये लाचार हो शादी करने पर राजी हो गयीं। तब राजा साहब ने भैरोसिंह को मिलाया और ये इस बात पर राजी हो गये। इसके बाद यह सोचा गया कि कुमार इस बात को स्वीकार न करेंगे। अस्तु, उन्हें धोखा देकर जहाँ तक जैसे हो तिलिस्म के अन्दर ही कमलिनी के साथ उनकी शादी कर देनी चाहिए, क्योंकि तिलिस्म के बाहर हो जाने पर हम लोग स्वाधीन न रहेंगे और अगर बड़े महाराज इस बात को सुनकर अस्वीकार कर देंगे तो फिर हम लोग कुछ भी न कर सकेंगे, इत्यादि।

‘‘बस यही सबब हुआ कि तिलिस्म के अन्दर आपसे तरह-तरह की चालबाजियाँ खेली गयीं और भैरोसिंह ने भी आपसे सब भेद छिपाकर रक्खा। खुद राजा गोपालसिंहजी तिलिस्म के अन्दर आये और बुड्ढे दारोगा बनकर इस काम में उद्योग करने लगे।’’

कुमार : (बात रोककर ताज्जुब के साथ) क्या खुद गोपालसिंह बुड्ढे दारोगा बने थे?

कमला : जी हाँ, वह बुड्ढी मैं बनी थी, तथा किशोरी और इन्दिरा आदि ने लड़कों का रूप धरा था।

कमलिनी : (हँसकर) यह बुड्ढी भैरोसिंह की जोरू बनी थी। अब इस बात को सच कर दिखाना चाहिए, अर्थात् इस बुड्ढी को भैरोसिंह के गले मढ़ना चाहिए।

कुमार : जरूर! (कमला से) तब तो मैं समझता हूँ कि ‘मकरन्द’ इत्यादि के बारे में जो कुछ भैरोसिंह ने बयान किया था, वह सब झूठ था?

कमला : हाँ, बेशक उसमें बारह आने से ज्यादा झूठ था।

कुमार : खैर, तब क्या हुआ? तुम आगे बयान करो।

कमला ने फिर इस तरह बयान करना शुरू किया–

‘‘भैरोसिंह जान-बूझकर इसलिए पागल बनकर आपको दिखाये गये थे, जिसमें एक तो आप धोखे में पड़ जाँय और समझे कि हमारे विपक्षी लोग भी वहाँ रहते हैं, दूसरे आपसे मिलाप हो जाने पर यदि भैरोसिंह से कभी कुछ भूल भी हो जाय तो आप यही समझें कि अभी तक इनके दिमाग में पागलपन का कुछ धुआँ बचा हुआ है। जिस समय हम लोग तिलिस्म के अन्दर पहुँचाये गये थे। उस समय राजा गोपालसिंह में अपनी खास तिलिस्मी किताब कमलिनीजी को दे दी थी, जिससे तिलिस्म का बहुतकुछ हाल इन्हें मालूम हो गया था और इनकी मदद से हम लोग जो चाहते थे, करते थे, तथा किसी बात की तकलीफ भी नहीं होती थी और खाने-पीने की सभी चीजें राजा गोपालसिंहजी पहुँचा दिया करते थे।

‘‘भौरोसिंह जब पागल बनने के बाद आपसे मिले थे, तो अपना ऐयारी का बटुआ जान-बूझकर कमलिनीजी के पास रख गये थे। फिर जब भैरोसिंह को बुलाने की इच्छा हुई तो उन्हीं का बटुआ और पीले मकरन्द की लड़ाई दिखाकर, वे आपसे अलग कर लिये गये, कमलिनी पीले मकरन्द की सूरत में थी और मैं उनका मुकाबला कर रही थी, कहीं बदी और मेल की लड़ाई थी, इसलिए आपने समझा होगा कि हम दोनों बड़े बहादुर और लड़ाके हैं। अस्तु, इस मामले के बाद जब इन्द्रानी और आनन्दीवाले बाग में भैरोसिंह आपसे मिले, तब भी इन्होंने बहुत-सी झूठ बातें बनाकर आप से कहीं और जब आप इनसे रंज हुए तो आपका संग छोड़कर फिर हम लोगों की तरफ चले आये*। आप दोनों भाई उस समय शादी करने से इन्कार करते थे, मगर मजबूरी और लाचारी ने आपका पीछा न छोड़ा, इसके अतिरिक्त खुद इन्द्रानी और आनन्दी ने भी आप दोनों को किशोरी और कामिनी की चीठी दिखाकर खुश कर लिया था। यहाँ आकर आपने सुना ही है कि कमलिनीजी के पिता बलभद्रसिंहजी, जिन्हें भूतनाथ छुड़ा लाया था, यकायक गायब हो गये और कई दिनों के बाद लौटकर आये।’’ (* देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति-5, अट्ठारहवाँ भाग, ग्यारहवाँ बयान।)

कुमार : हाँ, सुना था।

कमला : बस उन्हें राजा गोपालसिंह ही यहाँ आकर ले गये थे और खुद बलभद्रसिंहजी ने ही अपनी दोनों लड़कियों का कन्यादान किया था।

कुमार : (हँसते) हुए ठीक है, अब मैं सब बातें समझ गया और यह भी मालूम हो गया कि केवल धोखा देने के लिए ही माधवी और मायारानी, जो पहिले ही मर चुकी थीं, इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दिखायी गयी थीं।

भैरो : जी हाँ।

कुमार : मगर नानक वहाँ क्योंकर पहुँचा था?

भैरो : आप सुन चुके हैं कि तारासिंह ने नानक को कैसा छकाया था। अस्तु, वह हम लोगों से बदला लेने की नीयत करके वहाँ गया और मायारानी से मिल गया था। कमलिनीजी ने वहाँ का रास्ता उसे बता दिया था, उसी का यह नतीजा निकला। जब मायारानी राजा गोपालसिंह के कब्जे में पड़ गयी तब राजा साहब ने नानक को बहुतकुछ बुरा-भला कहा, यहाँ तक कि नानक उनके पैरों पर गिर पड़ा और उनसे अपने कसूर की माफी माँगी। उस समय राजा साहब ने उसका कसूर माफ करके, उसे अपने साथ रख लिया। तब से वह उन्हीं के कब्जे में रहा और उन्हीं की आज्ञानुसार आपको धोखे में डालने की नीयत से मायारानी और माधवी की लाश के पास दिखायी दिया था। वे दोनों पहिले ही मारी जा चुकी थीं, मगर आपको भुलावा देने की नीयत से उनकी लाश इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दिखायी गयी थीं। इसके अतिरिक्त और जोकुछ हाल है, वह आपको राजा गोपालसिंहजी की जुबानी मालूम होगा।

कुमार : ठीक है, मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि मायारानी और माधवी की लाश को इन्द्रानी और आनन्दी की सूरत में देखकर जोकुछ रंज मुझे हुआ था और आज तक इस घटना का जोकुछ असर मेरे दिल में था, वह जाता रहा। अब मैं अपने को खुशनसीब समझने लगा। (कमलिनी से) अच्छा यह बताओ की रात की दिल्लगी तुमने किस तौर पर की? मेरी समझ में कुछ न आया और न इसी बात का पता लगा कि मेरी सूरत क्योंकर बदल गयी?

कमलिनी : इस बात का जवाब आपको कमला से मिलेगा।

कमला : यह तो एक मामूली बात है। समझ लीजिए कि जब आप सो गये तो इन्हीं (कमलिनी) ने आपको बेहोश करके आपकी सूरत बदल दी*। (*यही काम उधर लाडिली ने किया था। खुद तो पहिले ही से कामिनी बनी हुई थी, मगर जब कुमार सो गये, तब उन्हें बेहोश करके उनकी सूरत बदल दी और सुबह को उनके जागने के पहिले ही अपना चेहरा साफ कर लिया।)

कुमार : ठीक है, मगर ऐसा क्यों किया?

कमला : एक तो दिल्लगी के लिए और दूसरे किशोरी के इस खयाल से कि जिसकी शादी पहिले हुई है, उसी की सुहागरात भी पहिले होनी चाहिए।

कुमार : (हँसकर और किशोरी की तरफ देखकर) अच्छा तो यह सब आपकी बहादुरी है। खैर, आज आपकी पारी होगी ही, समझ लूँगा!

किशोरी ने शर्माकर सिर नीचा कर लिया और कुमार की बात का कुछ भी जवाब न दिया।

इसके बाद वे लोग कुछ देर तक हँसी-खुशी की बातें करते रहे और तब अपने-अपने ठिकाने चले गये।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की शादी के बाद कई दिनों तक हँसी-खुशी का जलसा बराबर बना रहा, क्योंकि इस शादी के आठवें ही दिन कमला की शादी भैरोसिंह के साथ और तारासिंह की शादी इन्दिरा के साथ हो गयी और इस नाते को भूतनाथ तथा इन्द्रदेव ने बड़ी खुशी के साथ मंजूर कर लिया।

इन सब कामों से छुट्टी पाकर महाराज ने निश्चय किया कि अब पुनः उस बगुलेवाले तिलिस्मी मकान में चलकर कैदियों का मुकदमा सुना जाय। अस्तु, आज्ञानुसार बाहर के आये हुए मेहमान लोग हँसी-खुशी के साथ बिदा किये गये और फिर कई दिनों तक तैयारी करने के बाद सभों का डेरा कूच हुआ और पहिले की तरह पुन : वह तिलिस्मी मकान हरा-भरा दिखायी देने लगा। कैदी भी उसी मकान के तहखाने में पहुँचाये गये और सबका मुकदमा सुनने की तैयारी होने लगी।

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