लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 3

चन्द्रकान्ता सन्तति - 3

देवकीनन्दन खत्री

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8401
आईएसबीएन :978-1-61301-028-0

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

107 पाठक हैं

चन्द्रकान्ता सन्तति 3 पुस्तक का ई-संस्करण...

तीसरा बयान


जिस समय भूतनाथ ने बलभद्रसिंह से यह कहकर कि ‘तेरे हाथ की लिखी हुई वे चीठियाँ भी मेरे पास मौजूद हैं, जिनकी बदौलत बेचारा बलभद्रसिंह अभी तक मुसीबत झेल रहा है।’ भैरोसिंह की तरफ ऐयारी का बटुआ लेने के लिए हाथ बढ़ाया, उस समय तेजसिंह को विश्वास हो गया कि बेशक भूतनाथ बलभद्रसिंह को दोषी ठहरावेगा, मगर भैरोसिंह के हाथ से ऐयारी का बटुआ लेने के बाद भूतनाथ ने कुछ सोचा और फिर तेजसिंह की तरफ देखकर कहा—

भूतनाथ : नहीं, इस समय मैं उन चीठियों को न निकालूँगा, क्योंकि यह झट इनकार कर जायगा, और कह देगा कि मेरे हाथ की लिखी ये चीठियाँ नहीं हैं, आप लोगों को इसके हाथ की लिखावट देखने का मौका अभी तक नहीं मिला है।

बलभद्र : नहीं नहीं, मैं इनकार न करूँगा, बल्कि स्वीकार करूँगा, तू कोठी चीठी निकाल भी तो सही।

भूतनाथ : हाँ हाँ, मैं चीठियाँ निकालूँगा, मगर इस थोड़ी देर में मैं इस बात को अच्छी तरह सोच चुका हूँ कि तेरे हाथ की लिखी हुई चीठियों को निकालना इस समय की अपेक्षा उस समय विशेष लाभदायक होगा, जब मैं तेजसिंह या किसी को ले जाकर असली बलभद्रसिंह का सामना करा दूँगा। (तेजसिंह से) कहिए आप मेरे साथ चलने के लिए तैयार हैं या किसी को साथ भेजेंगे?

तेज : इस बात का फैसला कमलिनी या लक्ष्मीदेवी करेंगी, मैं तुमको पुनः इस मकान में चलने की आज्ञा देता हूँ, मगर साथ-साथ यह भी कह देता हूँ कि देखो भूतनाथ, तुम बड़े-बड़े जुर्म कर चुके हो और इस समय भी अपने हाथ की लिखी हुई चीठियों से इनकार नहीं करते, मगर अब मैं देखता हूँ कि तुम पुनः कोई नया पातक किया चाहते हो!

इतना कहकर तेजसिंह ने बलभद्रसिंह का हाथ पकड़ लिया और देवीसिंह तथा भैरोसिंह को यह कहकर मकान की तरफ रवाना हुए कि ‘हम दोनों के जाने के बाद थोड़ी देर में जब हम कहला भेजें तो भूतनाथ को लिए मकान में आना’।

बलभद्रसिंह को साथ लिए हुए तेजसिंह मकान के अन्दर गये और कमलिनी किशोरी तथा तारा इत्यादि से सब हाल कहा।

तारा : इसमें कोई शक नहीं कि भूतनाथ झूठा, दगाबाज और परले सिरे का बेईमान साबित हो चुका है।

तेज : बेशक, ऐसा ही है, मगर इस समय हम लोगों को सबसे पहिले उसी बात का निश्चय कर लेना चाहिए, जिसके बारे में लक्ष्मीदेवी ने इशारा किया था।

कमलिनी : ठीक है। (बलभद्रसिंह की तरफ देखके) आप बहुत सुस्त और पसीने-पसीने हो रहे हैं, अतएव कपड़े उतार कर आराम कीजिए और ठण्डे होइए।

बलभद्र : हाँ, मैं भी यही चाहता हूँ।

इतना कहकर बलभद्रसिंह ने कपड़े उतार डाले। उस समय लोगों का ध्यान बलभद्रसिंह के मोढ़े पर गया, और सभों ने उस निशान को बहुत अच्छी तरह देखा, जिसे लक्ष्मीदेवी ने याद दिलाया था।

कमलिनी : (खुशी से बलभद्रसिंह का हाथ पकड़के और लक्ष्मीदेवी की तरफ देखके) देखो बहिन, यह पुराना निशान अभी तक मौजूद है। ऐसी अवस्था में मुझे कोई धोखा दे सकता है? कभी नहीं।

बलभद : (हँसकर) इस निशान को लाडिली अच्छी तरह पहिचानती होगी, क्योंकि इसी ने बीमारी की अवस्था में दाँत काटा था? (लम्बी साँस लेकर) अफसोस, आज और उस जमाने के बीच में जमीन-आसमान का फर्क पड़ गया है। ईश्वर तेरी महिमा कुछ कही नहीं जाती।

बलभद्रसिंह के मोढ़े का निशान देखकर कमलिनी, लाडिली और लक्ष्मीदेवी का शक जाता रहा, और इसके साथ ही साथ तेजसिंह इत्यादि ऐयारों को भी निश्चय हो गया कि यह बेशक कमलिनी, लक्ष्मीदेवी और लाडिली का बाप है, और भूतनाथ अपनी बदमाशी और हरमजदगी से हम लोगों को धोखे में डालकर दुःख दिया चाहता है।

थोड़ी देर तक बाप-बेटियों के बीच वैसी ही मुहब्बत-भरी बातें होती रहीं, जैसी बाप-बेटियों में होनी चाहिए, और बीच-ही-बीच में ऐयार लोग भी ‘हाँ, नहीं, ठीक है, बेशक’ इत्यादि करते रहे। इसके बाद इस विषय पर विचार होने लगा कि भूतनाथ के साथ क्या सलूक करना चाहिए। बहुत वादाविवाद होने पर यह निश्चय ठहरा कि भूतनाथ को कैद कर रोहतासगढ़ भेज देना चाहिए, जहाँ उसके किये हुए दोषों की पूरी-पूरी तहकीकात समय मिलने पर हो जायगी, हाँ, लगे हाथ उस कागज के मुट्ठे को अवश्य प्राप्त कर लेना चाहिए, जिसमें भूतनाथ की बदमाशियों तथा पुरानी घटनाओं का पता लगता है—तथा इन सब बातों से छुट्टी पाकर किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को रोहतासगढ़ में चलकर आराम के साथ रहना चाहिए।

ऊपर लिखी बातों में जो तै पा चुकी थीं, कई बातें कमलिनी की इच्छानुसार न थीं, मगर तेजसिंह की जिद से, जिन्हें सब लोग बड़ा बुजुर्ग और बुद्धिमान मानते थे, लाचार होकर उसे मानना ही पड़ा।

तेजसिंह उसी समय कमरे से बाहर चले गये और जफील बुलाकर देवीसिंह तथा भैरोसिंह का अपनी तरफ ध्यान दिलाया। जब दोनों ऐयारों ने इधर देखा तो तेजसिंह ने कुछ इशारा किया, जिसमें वे दोनों समझ गये कि भूतनाथ को कैदियों की तरह बेबस करके मकान के अन्दर ले आने की आज्ञा हुई है। देवीसिंह ने यह बात भूतनाथ से कही, भूतनाथ ने कुछ सोचकर सिर झुका लिया, और तब हथकड़ी पहिनने के लिए अपने दोनों हाथ देवीसिंह की तरफ बढ़ाये। देवीसिंह ने हथकड़ी और बेड़ी से भूतनाथ को दुरुस्त किया, और इसके बाद दोनों ऐयार उसे डोंगी पर चढ़ाकर माकन के अन्दर ले आये। इस समय भूतनाथ की निगाह फिर उस कागज के मुट्टे और पीतल की सन्दूकड़ी पर पड़ी, और पुनः उसके चेहरे पर मुर्दानी छा गयी।

तेजसिंह : भूतनाथ, तुम्हारा कसूर अब हम लोगों को मालूम हो चुका है यद्यपि यह कागज का मुट्ठा अभी पूरा-पूरा पढ़ा नहीं गया, केवल चार-पाँच चीठियाँ ही इसमें की पढ़ी गयीं, परन्तु इतने ही में सभों का कलेजा काँप गया है। निःसन्देह तुम बहुत कड़ी सजा पाने के अधिकारी हो, अतएव तुम्हें इस समय कैद करने का हुक्म दिया जाता है, फिर जो होगा देखा जायगा।

भूतनाथ : (कुछ सोचकर) मालूम होता है कि मेरी अर्जी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, और बलभद्रसिंह को सभों ने सच्चा समझ लिया है।

तेजसिंह : बेशक बलभद्रसिंह सच्चे हैं, और इस विषय में अब तुम हम लोगों को धोखा देने का उद्योग मत करो। हाँ, यदि कुछ कहना है तो इन चीठियों के बारे में कहो, जो बेशक तुम्हारे हाथ की लिखी हुई हैं, और तुम्हारे दोषों को आईने की तरह साफ़  खोल रही हैं।

भूतनाथ : हाँ, इन चीठियों के विषय में भी मुझे बहुत कुछ कहना है, परन्तु आप लोगों के सामने कुछ कहना उचित नहीं समझता, क्योंकि आप लोग मेरा फैसला नहीं कर सकते हैं।

तेजसिंह : सो क्यों, क्या हम लोग तुम्हें सजा नहीं दे सकते?

भूतनाथ : यदि आप धर्म की लकीर को बेपरवाही के साथ लाँघने से कुछ भी संकोच कर सकते हैं, तो मेरा कहना सही है, क्योंकि आप लोगों के मालिक राजा बीरेन्द्रसिंह मेरे पिछले कसूरों को माफ कर चुके हैं और इधर राजा बीरेन्द्रसिंह का जो-जो काम मैं कर रहा हूँ, उस पर ध्यान देने योग्य भी वे नहीं हैं। इसी से मैं कहता हूँ कि बिना मालिक के कोई दूसरा मेरे मुकदमें को देख नहीं सकता।

तेजसिंह : (कुछ देर तक सोचने के बाद) तुम्हारा यह कहना सही है। खैर, जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा और राजा साहब ही तुम्हारे मामले का फैसला करेंगे, मगर मुजरिम को गिरफ्तार और कैद करना तो हम लोगों का काम है।

भूतनाथ : बेशक, कैद करके जहाँ तक जल्द हो सके मालिक के पास ले जाना जरूर आप लोगों का काम है, मगर कैद में बहुत दिनों तक रखकर किसी को कष्ट देना आपका काम नहीं है, क्योंकि कदाचित् वह निर्दोष ठहरे, जिसे आपने दोषी समझ लिया हो।

तेजसिंह : क्या तुम फिर भी अपने को बेकसूर साबित करने का उद्योग करोगे?

भूतनाथ : बेशक, मैं बेकसूर बल्कि इनाम पाने के योग्य हूँ, परन्तु आप लोगों के सामने जिन पर अक्ल की परछाईं तक नहीं पड़ती है, मैं अब कुछ भी न कहूँगा। आप यह न समझिए कि मैं केवल इसी बुनियाद पर अपने को छुड़ा लूँगा कि महाराज ने मेरा कसूर माफ कर दिया है। नहीं, बल्कि मेरा मुकद्दमा कोई अनूठा रंग पैदा करके मेरे बदले में किसी दूसरे ही को कैदखाने की कोठरी का मेहनाम बनावेगा।

तेजसिंह : खैर, मैं भी तुम्हें बहुत जल्द राजा बीरेन्द्रसिंह के सामने हाजिर करने का उद्योग करूँगा।

इतना कहकर तेजसिंह ने देवीसिंह की तरफ देखा, और देवीसिंह ने भूतनाथ को तहखाने की कोठरी में ले जाकर बन्द कर दिया।

इस काम से छुट्टी पाकर तेजसिंह ने चाहा कि किसी ऐयार के साथ भूतनाथ और भगवानी को आज ही रोहतासगढ़ रवाना करें, और इसके बाद कागज के मुट्ठे को पुनः पढ़ना आरम्भ करें, मगर उन्हें शीघ्र ही मालूम हो गया कि कोई ऐयार तब तक भूतनाथ को लेकर रोहतासगढ़ जाना खुशी से पसन्द न करेगा जब तक भूतनाथ की जन्मपत्री पढ़ या सुन न लेगा। अस्तु, तेजसिंह की यही इच्छा हुई कि लगे हाथ सब कोई रोहतासगढ़ चलें, और जो कुछ हो वहाँ ही हो। अन्त में ऐसा ही हुआ, अर्थात् तेजसिंह की आज्ञा सभों को माननी पड़ी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book