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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

नौवाँ बयान


भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता नहीं लगा, लाचार कुछ रात जाते-जाते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज़ किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे और एक बनैले सुअर के पीछे घोड़ा फेंकते हुए न मालूम कहाँ चले गए, बहुत तलाश किया मगर पता न लगा।

अपने लड़के के ग़ायब होने का हाल सुन महाराज शिवदत्त बहुत घबड़ा गए। थोड़ी देर तक उन लोगों पर खफा होते रहे जो भीमसेन के साथ तो, आख़िर कई जासूसों को बुलाकर भीमसेन का पता लगाने के लिए चारों तरफ़ रवाना किया और ऐयारों को भी यह ताकीद की, मगर तीन दिन बीत जाने पर भी भीमसेन का पता न लगा।

एक दिन लड़के की जुदाई से व्याकुल हो अपने कमरे में अकेले बैठे तरह-तरह की बातें सोच रहे थे कि एक ख़ास खिदमदगार ने वहाँ पहुँच अपने पैर की धमक से उन्हें चौंका दिया। जब वे उस खिदमदगार की तरफ़ देखने लगे तो उसने एक लिफ़ाफ़ा दिखाकर कहा, ‘‘चोबदार ने यह लिफ़ाफ़ा हुज़ूर में देने के लिए मुझे सौंपा है। उसी चोबदार की जुबानी मालूम हुआ कि कोई ऊपरी आदमी यह लिफ़ाफ़ा देकर चला गया, चोबदार ने उसे रोकना चाहा था मगर वह फुर्ती से निकल गया।

महाराज शिवदत्त ने वह लिफ़ाफ़ा लेकर खोला। अपने लड़के भीमसेन के हाथ का लेख पहिचान बहुत खुश हुए मगर चीठी पढ़ लेने से तरद्दुद की निशीनी, उनके चेहरे पर झलकने लगी। चीठी का मतलब यह था :

‘‘यह जानकर आपको यह बहुत रंज होगा कि मुझे एक औरत ने बहादुरी से गिरफ़्तार कर लिया, मगर क्या करूँ लाचार हूँ, इसका हाल हाज़िर होने पर अर्ज़ करूँगा। इस समय मेरी छुट्टी तभी हो सकती है जब आप बीरेन्द्रसिंह के कुल ऐयारों को जो आपके यहाँ क़ैद हैं छोड़ दें और वे राजी खुशी से अपने घर पहुँच जायें। मेरा पता लगाना व्यर्थ है, मैं बहुत ही बेढब जगह क़ैद किया गया हूँ।

आपका आज्ञाकारी पुत्र—भीम।’’

चीठी पढ़कर महाराज शिवदत्त की अजब हालत हो गयी। सोचने लगे, ‘‘क्या भीम को एक औरत ने पकड़ लिया? वह बड़ा होशियार ताक़तवर और शस्त्र चलाने में निपुण था। नहीं-नहीं, उस औरत ने ज़रूर कोई धोखा दिया होगा! पर अब तो उन ऐयारों को छोड़ना ही पड़ा जो मेरी क़ैद में हैं! हाय, किस मुश्किल से ये ऐयार गिरफ़्तार हुए थे और अब क्या सहज में ही छूटे जाते हैं। ख़ैर लाचारी है, क्या करें,।’

बहुत देर-तक सोच-विचारकर महाराज शिवदत्त ने बाक़र अली ऐयार को बुलाकर कहा, ‘‘बीरेन्द्रसिंह ऐयारों को छोड़ दो, जब तक वे अपने घर नहीं पहुँचते, हमारा लड़का एक औरत की क़ैद से नहीं छूटता।’’

बाकर : (ताज्जुब से) यह क्या बात हुजूर ने कही? मेरी समझ में कुछ न आया!

शिव : भीमसेन को एक औरत ने गिरफ़्तार कर लिया है। वह कहती है कि जब तक बीरेन्द्रसिंह के ऐयार न छोड़ दिए जायेंगे तुम भी घर जाने न पाओगे।

बाकर : यह कैसे मालूम हुआ?

शिवदत्तः (चीठी दिखाकर) यह देखो ख़ास भीमसेन के हाथ का लिखा हुआ है, इस चिठी पर किसी तरह का शक़ नहीं हो सकता।

बाकर : (पढ़कर) ठीक है, इतने दिनों तक कुमार का पता न लगाना ही कहे देता था कि उन्हें किसी ने धोखा देकर फँसा लिया, अब यह भी मालूम हो गया कि किसी औरत ने मर्दों के कान काटे हैं।

शिवदत्त : ताज्जुब है, एक औरत ने बहादुरी से भीम को कैसे गिरफ़्तार कर लिया! ख़ैर इसका खुलासा हाल तभी मालूम होगा जब भीम से मुलाक़ात होगी और जब तक बीरेन्द्रसिंह के ऐयार चुनार नहीं पहुँच जाते भीम की सूरत देखने को तरसते रहेंगे। तुम जाके उन ऐयारों को अभी छोड़ दो, मगर यह मत कहना कि तुम लोग फलानी वजह से छोड़े जाते हो बल्कि यह कहना कि हमसे और बीरेन्द्रसिंह से सुलह हो गयी, तुम जल्द चुनार जाओ। ऐसा कहने से वे कहीं न रुककर सीधे चुनार चले जायेंगे।

बाकर अली महाराज शिवदत्त के पास से उठा और वहाँ पहुँचा, जहाँ बद्रीनाथ वग़ैरह ऐयार क़ैद थे। सभों को क़ैदखाने से बाहर किया और कहा ‘अब आप लोगों से हमसे कोई दुश्मनी नहीं, आप लोग अपने घर जाइए क्यों कि हमारे महाराज से और राजा बीरेन्द्रसिंह से सुलह हो गयी है।’’

बद्रीनाथ : बहुत अच्छी बात है, बड़ी खुशी का मौका है, पर अगर आपका कहना ठीक है तो हमारे ऐयारों के बटुए और खंजर भी दे दीजिए।

बाकर : हाँ-हाँ लीजिए, इसमें क्या उज्र है, अभी मँगाये देता हूँ बल्कि मैं खुद जाकर ले आता हूँ।

दो-तीन ऐयारों को साथ ले, इन ऐयारों के बटुए वग़ैरह लेने के लिए बाकरअली अपने मकान की तरफ़ गया, इधर पण्डित बद्रीनाथ और पन्नालाल वग़ैरह निराला पाकर आपुस में बातें करने लगे।

पन्ना : क्यों यारों, यह क्या मामला है जो आज हम लोग छोड़े जाते हैं?

राम : सुलहवाली बात तो हमारी तबियत में नहीं बैठती।

चुन्नीः अजी कैसी सुलह और कहाँ का मेल! ज़रूर कोई दूसरा ही मामला है।

ज्योतिषी : बेशक शिवदत्त लाचार होकर हम लोगों को छोड़ रहा है।

बद्री : क्यों साहब भैरोसिंह, आप इस बारे में क्या सोचते हैं?

भैरो : सोचेंगें क्या? असल जो बात है, मैं समझ गया।

बद्री : भला कहिए तो सही क्या समझे!

भैरो : इसमें कोई शक नहीं कि हमारे साथियों में से किसी ने यहाँ के किसी मुड्ढ को पकड़ पाया है और इनको कहला भेजा है कि जब हमारे ऐयार चुनार नहीं पहुँच जायेंगे उसको न छोड़ेंगे, बस इसी से ये बातें बनायी जा रही हैं जिसमें हम लोग जल्दी चुनार पहुँचे।

बद्री : शाबाश, बहुत ठीक सोचा इसमें कोई शक नहीं। मैं समझता हूँ कि शिवदत्त की ज़ोरू, लड़का या लड़की पकड़ी गयी है, तभी वह इतना कर रहा है, नहीं तो दूसरे की वह परवाह करनेवाला नहीं है, तिस पर हम लोगों के मुक़ाबिले में।

भैरो : बस-बस यही बात है, और अब हम लोग सीधे चुनार क्यों जाने लगे, जब कुछ दक्षिणा न ले लें।

बद्री : देखो तो क्या दिल्लगी मचाता हूँ।

भैरो : (हँसकर) मैं तो शिवदत्त से साफ़ कहूँगा कि मेरे पैरों में दर्द है, तीन महीने में भी चुनार नहीं पहुँच सकता, घोड़े पर सवार होना मुश्किल है, बैल की सवारी से क़सम खा चुका हूँ, पालकी पर घायल बीमार या अमीर लोग चढ़ते हैं, बस बिना हाथी के मेरा काम नहीं चलता, सो भी बिना हौदे के चढ़ने की आदत नहीं। तेज़सिंह दीवान का लड़का, बिना चाँदी-सोने के हौदे पर चढ़ नहीं सकता!

चुन्नी : भाई बाकर ने मुझे बेढब छकाया है। मैं तो जब तक बाकर की आधा माशे नाक न ले लूँगा। यहाँ से टलनेवाला नहीं चाहे जान रहे या जाय।

चुन्नीलाल की बात सुनकर सभी हँस पड़े और देर तक इसी तरह की बातचीत करते रहे, तब तक बाकर अली भी इन सभों के बटुए और खंजर लिए आ पहुँचा।

बाकर : लो साहबो ये आपके बटुए और खंजर हाज़िर हैं।

बद्री : क्यों यार कुछ चुराया तो नहीं! और तो ख़ैर बस मुझे अपनी अशर्फियों का धोखा है, हम लोगों के बटुए में खूब मजेदार चमकती हुई अशर्फियाँ थीं।

बाकर : अब लगे झूठ-मूठ का बखेड़ा मचाने।

राम : (मुँह बनाकर) हैं, सच कहना! इन बातों से तो मालूम होता है अशर्फियाँ डकार गये! (पन्नालाल वग़ैरह की तरफ़ देखकर) लो भाइयों अपनी चीज़े देख लो।

पन्ना : देखें क्या? हम लोग जब चुनार से चले थे तो सौ-सौ अशर्फियाँ सभों को खर्च के लिए मिली थीं। वे सब ज्यों-की-ज्यों बटुएँ में मौजूद थीं।

भैरो : भाई मेरे पास तो अशर्फियाँ नहीं थीं, हाँ एक छोटी-सी पुटरी जवाहिरात की ज़रूर थी सो गायब है, अब कहिए इतनी बड़ी रकम कैसे छोड़कर चुनार जाएँ।

बद्री : अच्छी दिल्लगी है! दोनों राजों में सुलह हो गयी और इस खुशी में लुट गये हम लोग! चलो एक दफ़े महाराज शिवदत्त से अर्ज़ करें, अगर सुनेंगे तो बेहतर है नहीं तो इसी जगह अपना गला काटकर रख जायेंगे, धन-दौलत लुटाकर चुनार जाना हमें मंजूर नहीं!

बाकरअली हैरान कि इन लोगों ने अजब ऊधम मचा रक्खा है, कोई कहता है मेरी अशर्फियाँ ग़ायब हैं, कोई कहता है मेरी जवाहिरात की गठरी गुम हो गई, कोई कहता हम तो लुट गये, अब क्या किया जाय? हम तो इस फ़िक्र में हैं कि जिस तरह हो ये लोग चुनार जल्द पहुँचे जिसमें भीमसेन की जान बचे, मगर ये लोग तो ख़मीरी आटे की तरह फैले ही जाते हैं। ख़ैर एक दफे इनको धमकी देनी चाहिए।

बाकर : देखो तुम लोग बदमाशी करोगे तो फिर क़ैद कर लिए जाओगे!

बद्री : जी हाँ! मैं भी यही सोच रहा हूँ।

पन्ना : ठीक है, ज़रूर क़ैद कर लिये जाएँगे, क्योंकि अपनी जमा माँग रहे हैं। चुपचाप चले जाएँ तो बेहतर है, जिसमें बखूबी रक़म पचा जाओ और कोई सुनने न पावे!

भैरो : यह धमकी तो आप अपने घर में ख़र्च कीजियेगा, भलमनसी इसी में है कि हम लोगों की जमा बायें हाथ से रख दीजिए, और नहीं तो चलिए राजा साहब के पास, जो कुछ होगा उन्हीं के सामने निपट लेंगे।

बाकर : अच्छी बात है चलिए।

सब कोई : चलिए! चलिए!!

यह मसखरों का झुण्ड बाकर अली के साथ महाराज शिवदत्त के पास पहुँचा।

बाकर : महाराज, देखिए ये लोग झगड़ा मचाते हैं।!

भैरो : जी हाँ, कोई अपनी जमा माँगे तो कहिए झगड़ा मचाते हैं!

शिव : क्या मामला है?

भैरो : महाराज मुझसे सुनिए, जब हमारे सरकार से और आपसे सुलह हो गयी और हम लोग छोड़ दिये गये तो हम लोगों की वे चीज़े भी मिल जानी चीहिए जो क़ैद होते समय ज़ब्त कर ली गयीं थीं।

शिव : क्यों नहीं मिलेंगी!

भैरो : ईश्वर आपको सलामत रक्खे, क्या इन्साफ़ किया है! आगे सुनिए, जब हम लोगों ने अपनी चीज़े मियाँ बाकर से माँगी तो बस बटुआ और खंजर तो दे दिया मगर बटुए में जो कुछ रक़म थी, गायब कर गये। दो-दो चार-चार अशर्फियाँ और दस-दस-बीस-बीस रुपये तो छोड़ दिए बाक़ी अपने कब्र में गाड़ आये! अब इन्साफ़ आपके हाथ है!

शिव : (बाकर से) क्योंजी यह क्या मामला है!

बाकर : महाराज ये सब झूठे हैं।

भैरो : जी हाँ हम सबके-सब झूठे हैं और आप अकेले सच्चे हैं?

शिव : (भैरो से) ख़ैर जाने दो, तुम लोगों का जो कुछ गया है हमसे लेकर अपने घर जाओ, हम बाकर से समझ लेंगे।

भैरो : महाराज सौ-सौ अशर्फियाँ तो इन लोगों की गयी हैं और एक गठरी जवाहिरात की मेरी गयी है। अब बहुत बखेड़ा कौन करे बस एक हज़ार अशर्फियाँ मँगवा दीजिए, हम लोग अपने घर का रास्ता लें, रकम तो ज़्यादे गयी है मगर आपका क्या कसूर!

बाकर : यारो ग़ज़ब मत करो!

भैरो : हाँ साहब हम लोग ग़ज़ब करते हैं, ख़ैर लीजिए अब एक पैसा न माँगेंगे, जी में समझ लेंगे ख़ैरात किया, अब चुनार भी न जायेंगे (उठना चाहता है)।

शिव : अजी घबराते क्यों हो, जो कुछ तुमने कहा है, हम देते हैं। (बाकर से) क्या तुम्हारी शामत आयी है!

महाराज शिवदत्त ने बाकरअली को ऐसी डाँट बतायी कि बेचारा चुपके से दूर जा खड़ा हुआ। हज़ार अशर्फियाँ मँगवाकर भैरोसिंह के आगे रख दी गयीं, ये लोग अपने-अपने बटुए में रख उठ खड़े हुए, यह भी न पूछा कि तुम्हारा कौन क़ैद हो गया जिसके लिए इतना सह रहे हो, हाँ शिवदत्तगढ़ के बाहर होते-होते इन लोंगों ने पता लगा ही लिया कि भीमसेन किसी ऐयार के पंजे में पड़ गया है।

शिवदत्तगढ़ से बाहर हो सीधे चुनार का रास्ता लिया। दूसरे दिन शाम को जब चुनार पन्द्रह कोस बाक़ी रह गया, सामने से एक सवार घोड़ा फेंकता हुआ इसी तरफ़ आता दिखायी पड़ा। पास आने पर भैरोसिंह ने पहिचाना कि शिवदत्त का लड़का भीमसेन है।

भीमसेन ने इन एयारों के पास पहुँचकर घोड़ा रोका और हँसकर भैरोसिंह की तरफ़ देखा जिसे वह बखूबी पहिचानता था।

भैरो : क्यों साहब आपको छुट्टी मिली? (अपने साथियों की तरफ़ देखकर) महाराज शिवदत्त के पुत्र कुमार भीमसेन यही हैं।

भीम : आप ही लोगों की रिहाई पर मेरी छुट्टी बदी थी, आप लोग चले आये तो मैं क्यों रोका जाता?

भैरो : हमारे किस साथी ने आपको गिरफ़्तार किया?

भीम : सो मुझे मालूम नहीं, शिकार खेलते समय घोड़े पर सवार एक औरत ने पहुँचकर नेजे से मुझे जख्मी किया, जब मैं बेहोश हो गया मुश्कें बाँध एक खोह में ले गयी और इलाज करके आराम किया, आगे का हाल आप जानते हो, मुझे यह न मालूम हुआ कि वह औरत कौन थी मगर इसमें शक नहीं कि थी वह औरत ही।

भैरो : ख़ैर अब आप अपने घर जाइये, मगर देखिए आपके पिता ने व्यर्थ हम लोगों से वैर बाँध रक्खा है। जब वे राजकुमार बीरेन्द्रसिंह के क़ैदी हो गये थे उस वक्त हमारे महाराज सुरेन्द्र सिंह ने उन्हें बहुत तरह से समझाकर कहा कि आप हम लोगों से वैर छोड़ चुनार में रहें, हम चुनार की गद्दी आपको फेर देते हैं। उस समय तो हज़रत को फ़क़ीरी सूझी थी, योगाभ्यास की धुन में प्राण की जगह बुद्धि को ब्रह्माण्ड में चढ़ा ले गये थे लेकिन अब फिर गुदगुदी मालूम होने लगी। ख़ैर हमें क्या, उनकी किस्मत में जन्म-भर दुःख ही भोगना बदा है तो कोई क्या करे, इतना भी नहीं सोचते कि जब चुनार के मालिक थे तब तो कुँअर बीरेन्द्रसिंह से जीते नहीं, अब न मालूम क्या कर लेगें!

भीम : मैं सच कहता हूँ कि उनकी बातें मुझे पसन्द नहीं मगर क्या करूँ, पिता के विरुद्ध होना धर्म नहीं।

भैरो : ईश्वर करे इसी तरह आपकी धर्म में बुद्धि बनी रहे, अच्छा जाइये।

भीमसेन ने अपने घर का रास्ता लिया। और हमारे चोखे ऐयारों ने चुनार की सड़क नापी।

 

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