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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

पाँचवाँ बयान


पण्डित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ़ गये। हुक़्म के मुताबिक़ कंचनसिंह सेनापति ने शेरवाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लगा लिया था कि भैरोसिंह ऐयार शिवदत्तगढ़ किले के अन्दर पहुँचाये गये हैं, इसलिए इन ऐयारों को पता लगाने की ज़रूरत न पड़ी, सीधे शिवदत्तगढ़ पहुँचे और अपनी-अपनी सूरत बदलकर शहर में घूमने लगे, पाँचों ने एक-दूसरे का साथ छोड़ दिया मगर यह ठीक कर लिया था कि सब लोग घूम-फिरकर फलानी जगह इकट्ठे हो जायेंगे।

दिन-भर घूम-फिरकर भैरोसिंह का पता लगाने के बाद कुल ऐयार शहर के बाहर एक पहाड़ी पर इकट्ठे हुए और रात-भर सलाह करके राय कायम करने में काटी, दूसरे दिन ये लोग फिर सूरत बदल-बदलकर शिवदत्तगढ़ में पहुँचे। रामनारायण और चुन्नीलाल ने अपनी सूरत उसी जगह के चोबदार की-सी बनायी और वहाँ पहुँचे जहाँ भैरोसिंह क़ैद थे। कई दिनों तक क़ैद रहने के सबब उन्होंने अपने को ज़ाहिर कर दिया था और असली सूरत में एक कोठरी के अन्दर जिसके तीन तरफ़ लोहे का जंगला लगा हुआ था, बन्द थे। उसी कोठरी के बगल में उसी तरह की कोठरी और थी जिसमें गद्दी लगाए बूढ़ा दारोग़ा बैठा और कई सिपाही नंगी तलवार लिए घूम-घूमकर पहरा दे रहे थे। रामनारायण और चुन्नीलाल उस कोठरी के दरवाजे पर जाकर खड़े हुए और बूढ़े दारोग़ा से बातचीत करने लगे।

राम : आपको महाराज ने याद किया है।

बूढ़ा : क्यों क्या काम है? भीतर आओ, बैठो चलते हैं।

रामनारायण और चुन्नीलाल कोठरी के अन्दर गये और बोले—

राम : मालूम नहीं क्यों बुलाया है मगर ताकीद की है कि जल्द बुला लाओ।

बूढ़ा : अभी घण्टे-भर भी नहीं हुआ जब किसी ने आके कहा था कि महाराज खुद आने वाले हैं, क्या वह बात झूठ थी।

राम : हाँ महाराज आनेवाले थे मगर अब न आवेंगे।

बूढ़ा : अच्छा आप दोनों आदमी इसी जगह बैठें और क़ैदी की हिफ़ाजत करें, मैं जाता हूँ।

राम : बहुत अच्छा।

रामनारायण और चुन्नीलाल को कोठरी के भीतर बैठाकर बूढ़ा दारोग़ा बाहर आया और चालाकी से झट उस कोठरी का दरवाजा बन्द करके बाहर से बोला, ‘‘बन्दगी! मैं दोनों को पहिचान गया कि ऐयार हो! कहिए अब हमारे क़ैद में आप फँसे या नहीं? मैंने भी क्या मजे में पता लगा लिया। पूछा अभी कि तो मालूम हुआ था कि महाराज खुद आने वाले हैं, आपने भी झट कबूल कर लिया और कहा कि ‘हाँ आनेवाले थे मगर अब न आवेंगे’। यह न समझे कि मैं धोखा देता हूँ। इसी अक्ल पर ऐयारी करते हो? ख़ैर आप लोग भी इसी क़ैदखाने की हवा खाइए और जान लीजिए कि मैं बाकरअली ऐयार आप लोगों को मजा चखाने के लिए इस जगह बैठाया गया हूँ।’’

बूढ़े की बात सुन रामनारायण और चुन्नीलाल चुप हो गए बल्कि शर्माकर सिर नीचा कर लिया। बूढ़ा दारोग़ा वहाँ से रवाना हुआ और शिवदत्त के पास पहुँच इन दोनों ऐयारों के गिरफ़्तार करने का हाल कहा। महाराज खुश होकर बाकरअली को इनाम दिया और खुशी-खुशी रामनारायण और चुन्नीलाल को देखने आये।

बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषीजी को भी मालूम हो गया कि हमारे साथियों में से दो ऐयार पकड़े गये। अब तो एक की जगह तीन आदमियों को छुड़ाने की फ़िक्र करनी पड़ी।

कुछ रात गये ये तीनों ऐयार घूम-फिरकर शहर के बाहर की तरफ़ जा रहे थे कि पीछे से एक आदमी काले कपड़े से अपना तमाम बदन छिपाये लपकता हुआ उनके पास आया और लपेटा हुआ एक छोटा-सा कागज उनके सामने फेंक और अपने साथ आने के लिए हाथ से इशारा करके तेज़ी से आगे बढ़ा।

बद्रीनाथ ने उस पुर्जे को उठाकर सड़क के किनारे एक बनिए की दुकान पर जलते हुए चिराग की रोशनी में पढ़ा, सिर्फ़ इतना ही लिखा था—‘‘भैरोसिंह’’। बद्रीनाथ समझ गये थे कि भैरोसिंह किसी करतब से निकल भागा है और यही जा रहा है। बद्रीनाथ ने भैरोसिंह के हाथ का लिखा भी पहिचाना।

भैरोसिंह पुर्जा फेंककर इन तीनों को हाथ के इशारे से बुला गया था और दस-बारह कदम आगे बढ़कर अब इन लोगों की आने की राह देख रहा था।

बद्रीनाथ वग़ैरह खुश होकर आगे बढ़े और उस जगह पहुंचे जहाँ भैरोसिंह काले कपड़े से बदन को छिपाए सड़क के किनारे आड़ देखकर खड़ा था। बातचीत करने का मौका न था, आगे-आगे भैरोसिंह और पीछे-पीछे बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषीजी तेज़ी से कदम बढ़ाते शहर के बाहर हो गये।

रात अँधेरी थी। मैदान में जाकर भैरोसिंह ने काला कपड़ा उतार दिया। उन तीनों ने चन्द्रमा की रोशनी में भैरोसिंह को पहिचाना—खुश होकर बारी-बारी से तीनों ने उसे गले लगाया और एक पत्थर की चट्टान पर बैठकर बातचीत करने लगे।

बद्री : भैरोसिंह, इस वक्त तुम्हें देखकर तबियत बहुत खुश हुई!

भैरो : मैं तो किसी तरह छूट आया मगर रामनारायण तथा चुन्नीलाल बेढब जा फँसे हैं।

ज्योतिषी : उन दोनों ने भी क्या ही धोखा खाया!

भैरो : मैं उनके छुड़ाने की भी फ़िक्र कर रहा हूँ।

पन्ना : वह क्या?

भैरो : सो सब कहने-सुनने का मौक़ा तो रात-भर है मगर इस समय मुझे भूख बड़े ज़ोर से लगी है, कुछ हो-तो खिलाओ।

बद्री : दो चार पेड़े हैं, जी चाहे तो खा लो।

भैरो : इन दो चार पेड़ों से क्या होगा? ख़ैर पानी का तो बन्दोबस्त होना चाहिए।

बद्री : फिर क्या करना चाहिए?

भैरो : (हाथ से इशारा करके) यह देखो शहर के किनारे जो चिराग जल रहा है, अभी देखते आये हैं कि वह हलवाई की दुकान है और वह ताजी पूरियाँ बना रहा है, बल्कि पानी भी उसी हलवाई से मिल जायगा।

पन्ना : अच्छा मैं जाता हूँ।

भैरो : हम लोग भी साथ चलते हैं, सभों का इकट्ठा ही रहना ठीक है, कहीं ऐसा न हो कि आप फँस जायँ और हम लोग राह ही देखते रहें।

पन्ना : फँसना क्या खिलवाड़ हो गया!

भैरो : ख़ैर हर्ज़ ही क्या है अगर हम लोग एक साथ ही चलें।

चारो ऐयार एक साथ वहाँ से रवाना हुए और उस हलवाई के पास पहुँचे जिसकी अकेली दुकान शहर के किनारे पर थी। बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी और भैरोसिंह कुछ इधर ही खड़े रहे और पन्नालाल सौदा खरीदने दुकान पर गये। जाने के पहिले ही भैरोसिंह ने कहा, ‘‘मिट्टी के बर्तन में पानी भी देने का एकरार हलवाई से पहिले ही कर लेना नहीं तो पीछे हुज्जत करेगा।’’

पन्नालाल हलवाई की दुकान पर गये और दो सेर पूरी तथा सेर-भर मिठाई माँगी। हलवाई ने खुद पूछा कि ‘पानी भी चाहिए या नहीं’?

पन्ना : हाँ हाँ पानी ज़रूर देना होगा।

हल : कोई बर्तन?

पन्ना : बर्तन तो हैं मगर छोटा है, तुम्ही किसी मिट्टी के ठिलिए में जल दे दो।

हल : एक घड़ा जल के लिए आठ आने और देने पड़ेंगे।

पन्ना : इतना अन्धेर-ख़ैर हम देंगे।

पूरी, मिठाई और एक घड़ा जल लेकर चारो ऐयार वहाँ से चले मगर यह ख़बर किसी को भी न थी कि कुछ दूर पीछे दो आदमी साथ लिए छिपता हुआ हलवाई भी आ रहा है। मैदान में एक बड़े पत्थर की चट्टान पर बैठ चारो ने भोजन किया जल पिया और हाथ मुँह धो निश्चिन्त हो धीरे-धीरे आपुस में बातचीत करने लगे। आधा घण्टा भी न बीता होगा कि चारो बेहोश होकर चट्टान पर लेट गए और दोनों आदमियों को साथ लिए हलवाई इनकी खोपड़ी पर आ मौजूद हुआ।

हलवाई के साथ आये दोनों आदमियों ने बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी और पन्नालाल की मुश्कें कस डालीं और कुछ सुँघा भैरोसिंह को होश में लाकर बोले, ‘‘वाह जी अजायबसिंह—आपकी चालाकी तो खूब काम कर गयी! अब तो शिवदत्तगढ़ में आये हुए पाँचों नालायक हमारे हाथ फँसे! महाराज से सबसे ज़्यादे इनाम पाने का काम आप ही ने किया!!’’

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