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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

तेरहवाँ बयान


आधी रात के समय सूनसान मैदान में दो कमसिन औरते आपुस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। रात में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तक़लीफ़ के साथ लाँघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि इन दोनों को इसी समय किसी ख़ास जगह पर पहुँचने या किसी से मिलने की ज़्यादे ज़रूरत है। हमारे पाठक इन दोनों औरतों को बखूबी पहिचानते हैं इसलिए इनकी सूरत-शकल के बारे में कुछ लिखने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि इन दोनों में से एक किन्नरी है और दूसरी कमला।

किन्नरी : कमला, देखो किस्मत के हेर-फेर इसे कहते हैं। एक हिसाब से गयाजी में हम लोग अपना काम पूरा कर चुके थे मगर अफ़सोस!

कमला : जहाँ तक हो सका तुमने किशोरी की मदद जी-जान से की, बेशक किशोरी जन्म-भर याद रक्खेगी और तुम्हें तो अपनी बहिन मानेगी। ख़ैर कोई चिन्ता नहीं हम लोगों को हिम्मत न हारनी चाहिए और न किसी समय ईश्वर को भूलना चाहिए। मुझे घड़ी-घड़ी बेचारे आनन्दसिंह याद आते हैं। तुम पर उनकी सच्ची मुहब्बत है मगर तुम्हारा कुछ हाल न जानने से न मालूम उनके दिल में क्या-क्या बातें पैदा होंगी, हाँ अगर वे जानते कि जिसको उनका दिल प्यार करता है वह फलानी है तो बेशक वे खुश होते।

किन्नरी : (ऊँची साँस लेकर) जो ईश्वर की मर्जी!!

कमला : देखो, वह उस पुराने मकान की दीवार दिखायी देने लगी।

किन्नरी : हाँ ठीक है, अब आ पहुँचे।

इतने ही में वे दोनों एक ऐसे टूटे-फूटे मकान के पास पहुँचीं जिसकी चौड़ी-चौड़ी दीवारें और बड़े-बड़े फाटक कहे देते थे कि किसी ज़माने में यह इज्जत रखता होगा। चाहे इस समय यह इमारत कैसी ही ख़राब हालत में क्यों न हो तो भी इसमें छोटी-छोटी कोठरियों के अलावे कई बड़े-बड़े दालान और कमरे अभी तक मौजूद हैं।

ये दोनों उस मकान के अन्दर चली गयीं। बीच में चूने मिट्टी ईंटों का ढेर लगा हुआ था जिसके बगल में घूमती हुई दोनों एक दालान में पहुँचीं। इस दालान में एक तरफ़ कोठरी थी जिसमें जाकर कमला ने मोमबत्ती जलायी और चारों तरफ़ देखने लगी। बगल में एक अलमारी दीवार के साथ जुड़ी हुई थी, जिसमें पल्ला खींचने के लिए दो मुट्ठे लगे थे। कमला ने बत्ती किन्नरी के हाथ में देकर दोनों हाथों से दोनों मुट्ठों को तीन-चार दफे घुमाया, तुरन्त पल्ला खुल गया और भीतर एक छोटी-सी कोठरी नज़र आयी। दोनों उस कोठरी के अन्दर चली गयीं और उन पल्लों को फिर बन्द कर लिया। उन पल्लों में भीतर की तरफ़ भी उसी तरह खोलने और बन्द करने के लिए दो मुट्ठे लगे हुए थे।

इस कोठरी में तहख़ाना था जिसमें उतर जाने के लिए छोटी-छोटी सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। वे दोनों नीचे उतर गयीं और वहाँ एक आदमी को बैठे देखा, जिसके सामने मोमबत्ती जल रही थी और वह कुछ लिख रहा था।

इस आदमी की उम्र लगभग साठ वर्ष के होगी। सर और मूँछों के बाल आधे से ज़्यादे सुफेद हो रहे थे, तो भी उसके बदन में किसी तरह की कमज़ोरी नहीं मालूम होती थी। उसके हाथ-पैर गँठीले और मज़बूत थे तथा चौड़ी छाती उसकी बहादुरी को ज़ाहिर कर रही थी। चाहे उसका रंग साँवला क्यों न हो मगर चेहरा खूबसूरत और रोबीला था। बड़ी-बड़ी आँखों में जवानी की चमक मौजूद थी, चुस्त मिर्जई उसके बदन पर बहुत भली मालूम होती थी, सर नंगा था मगर पास ही ज़मीन पर एक सुफेद मुड़ासा रक्खा हुआ था जिसके देखने से मालूम होता था कि गरमी मालूम होने पर उसने उतारकर रख दिया है। उसके बायें हाथ में पंखा था, जिसके जरिए वह गरमी दूर कर रहा था मगर अभी तक पसीने की नमी बदन में मालूम होती थी।

एक तरफ़ ठीकरे में थोड़ी-सी आग थी जिसमें कोई खुशबूदार चीज़ जल रही थी, जिससे वह तहख़ाना अच्छी तरह सुगन्धित हो रहा था। कमला और किन्नरी के पैर की आहट पा वह पहिले ही से सीढ़ियों की तरफ़ ध्यान लगाये था, और इन दोनों को देखते ही उसने कहा, ‘‘तुम दोनों आ गयीं?’’

कमला : जी हाँ

आदमीः (किन्नरी की तरफ़ इशारा करके) इन्हीं का नाम कामिनी है?

कमला : जी हाँ।

आदमी : कामिनी! आओ बेटी, तुम मेरे पास बैठो। मैं जिस तरह कमला को समझता हूँ उसी तरह तुम्हें भी मानता हूँ।

कामिनी : बेशक कमला की तरह मैं भी आपको अपना सगा चाचा मानती हूँ।

आदमी : तुम किसी तरह की चिन्ता मत करो। जहाँ तक होगा मैं तुम्हारी मदद करूँगा। (कमला की तरफ़ देखकर) तुझे कुछ रोहतासगढ़ की ख़बर भी मालूम है?

कमला : कल मैं वहाँ गयी थी मगर अच्छी तरह मालूम न कर सकी। आपसे यहाँ मिलने का वादा किया था इसलिए जल्दी लौट आयी।

आदमी : अभी पहर-भर हुआ मैं खुद रोहतासगढ़ से चला आता हूँ।

कमला : तो बेशक आपको बहुत कुछ हाल वहाँ का मिला होगा।

आदमी : मुझसे ज़्यादे वहाँ का हाल कोई नहीं मालूम कर सकता। पच्चीस वर्ष तक ईमानदारी और नेकनामी के साथ वहाँ के राजा की नौकरी कर चुका हूँ। चाहे आज दिग्विजयसिंह हमारे दुश्मन हो गये हैं फिर भी मैं कोई काम ऐसा न करूँगा जिससे उस राज्य का नुकसान हो, हाँ तुम्हारे सबब से किशोरी की मदद ज़रूर करूँगा।

कमला : दिग्विजयसिंह नाहक ही आपसे रंज हो गये।

आदमी : नहीं नहीं, उन्होंने अनर्थ नहीं किया। जब वे किशोरी को जबर्दस्ती अपने यहा रक्खा चाहते हैं और जानते हैं कि शेरसिंह ऐयार की भतीजी कमला किशोरी के यहाँ नौकर है और ऐयारी के फन में तेज़ है, वह किशोरी को छुड़ाने के लिए दाँव-घात करेगी, तो उन्हें मुझसे परहेज करना बहुत मुनासिब था चाहे मैं कैसा ही ख़ैरख्वाह और नेक क्यों न समझा जाऊँ। उन्होंने मुझे क़ैद करने का इरादा बेजा नहीं किया। हाय! एक वह ज़माना था कि रणधीरसिंह (किशोरी का नाना) और दिग्विजयसिंह में दोस्ती थी, मैं दिग्विजयसिंह के यहाँ नौकर था और मेरा छोटा भाई अर्थात् तुम्हारा बाप (ईश्वर उसे बैकुण्ठ दे) रणधीरसिंह के यहाँ रहता था। आज देखो कितना उलट-फेर हो गया है मैं बेकसूर क़ैद होने के डर से भाग तो आया मगर लोग ज़रूर कहेंगे कि शेरसिंह ने धोखा दिया।

कमला : जब आप दिल से रोहतासगढ़ की बुराई नहीं करते तो लोगों के कहने से क्या होता है, वे लोग आपकी बुराई क्योंकर दिखा सकते हैं।

शेर : हाँ ठीक है, ख़ैर इन बातों को जाने दो, हाँ कुन्दन बेचारी को लाली ने खूब ही छकाया, अगर मैं लाली का एक भेद न जानता होता और कुन्दन को न कह देता तो लाली कुन्दन को ज़रूर बर्बाद कर देती। कुन्दन ने भी भूल की, अगर वह अपना सच्चा हाल लाली से कह देती तो बेशक दोनों में दोस्ती हो जाती।

कमला : कुछ कुँअर इन्द्रजीतसिंह का भी हाल मालूम हुआ?

शेर : हाँ मालूम है, उन्हें उसी चुड़ैल ने फँसा रक्खा है जो अजायबघर में रहती है।

कमला : कौन-सा अजायबघर?

शेर : वही जो तालाब के बीच में बना है और जिसे जड़बुनियाद से खोदकर फेंक देने का मैंने इरादा किया है, यहाँ से थोड़ी ही दूर तो है।

कमला : जी हाँ मालूम हुआ, उसके बारे में बड़ी-बड़ी विचित्र बातें सुनने में आती हैं।

शेर : बेशक वहाँ की सभी बातें ताज्जुब से भरी हुई हैं। अफ़सोस, न मालूम कितने खूबसूरत और नौजवान बेचारे वहाँ बेदर्दी के साथ मारे गये होंगे!

इतने ही में छत के ऊपर किसी के पैर की आहट मालूम हुई। तीनों का ध्यान सीढ़ियों पर गया।

कमला : कोई आता है।

शेर : हमें तो यहाँ किसी के आने की उम्मीद न थी, ज़रा होशियार हो जाओ।

कमला : मैं होशियार हूँ, देखिए वह आया!

एक लम्बे क़द का आदमी सीढ़ी से नीचे उतरा और शेरसिंह के सामने आकर खड़ा हो गया। उसकी उम्र चाहे जो भी हो मगर बदन की कमज़ोरी, दुबलेपन और चेहरे की उदासी ने उसे पचास वर्षों से भी ज़्यादे उम्र का बना रक्खा था। उसके खूबसूरत चेहरे पर उदासी और रंज के निशान पाये जाते थे, बड़ी-बड़ी आँखों में आँसुओं की तरी साफ़ मालूम होती थी, उसकी हसरत भरी निगाहें उसके दिल की हालत दिखा रही थीं और कह रही थीं कि रंज, गम, फ़िक्र, तरद्दुद और नाउम्मीदी ने उसके बदन में खून और मांस का नाम नहीं छोड़ा केवल हड्डी ही बच गयी है। उसके कपड़े भी बहुत पुराने और फटे हुए थे।

इस आदमी की सूरत से भलमनसी और सूधापन झलकता था मगर शेरसिंह उसकी सूरत देखते ही काँप गया। ख़ौफ़ और ताज्जुब ने उसका गला दबा दिया। वह एकदम ऐसा घबड़ा गया जैसे कोई खूनी जल्लाद की सूरत देखकर घबड़ा जाता है शेरसिंह ने उसकी तरफ़ देखकर कहा, ‘‘अहा हा...आप...हैं। आई...ए...!’’ मगर ये शब्द घबड़ाहट के मारे बिल्कुल ही उखड़े-पुखड़े शेरसिंह के मुँह से निकले।

उस आदमी ने कमला की तरफ़ इशारा करके कहा, ‘‘क्या यही लड़की...’’

शेर : हाँ...आप...(कमला और कामिनी की तरफ़ देखकर) तुम दोनों ज़रा ऊपर चली जाओ, ये बड़े नेक आदमी हैं, मुझसे मिलने आये हैं, मैं इनसे कुछ बातें किया चाहता हूँ।

कमला और कामिनी दोनों तहख़ाने से निकलकर ऊपर चली आयीं। उस आदमी के आने और अपने चाचा को विचित्र अवस्था में देखने से कमला घबड़ा गयी। उसके जी में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं। ऐसे कमज़ोर, लाचार और गरीब आदमी को देखकर उसकी ऐयारी के फन में बड़ा ही तेज़ और शेरदिल चाचा इस तरह क्यों घबड़ा गया और इतना क्यों डरा, वह इसी सोच में परेशान थी। बेचारी कामिनी भी हैरान और डरी हुई थी यहाँ तक कि घण्टे-भर बीत जाने पर भी उन दोनों में कोई बातचीत न हुई। घण्टे-भर बाद वह आदमी तहख़ाने से निकलकर ऊपर चला आया और कामिनी की तरफ़ देखकर बोला—‘‘अब तुम लोग नीचे जाओ, मैं जाता हूँ।’’ इतना कहता हुआ उसी तरह किवाड़ खोलकर चला गया जिस तरह कामिनी को साथ लिये हुए कमला इस मकान में आयी थी।

कमला और कामिनी तहख़ाने के नीचे जा शेरसिंह के सामने बैठ गयीं। शेरसिंह के चेहरे से अभी तक घबराहट और परेशानी गयी नहीं थी। बड़ी मुश्किल से थोड़ी देर में उसने होश-हवास दुरुस्त किये और कमला की तरफ़ देखकर बोला—

शेर : अच्छा अब हम लोगों को क्या करना चाहिए?

कमला : जो हुक़्म हो सो किया जाय। यह आदमी कौन था जिसे देख आप...?

शेर : था एक आदमी, उसका हाल जानने का उद्योग न करो और न उसका ख़याल ही करो बल्कि उसे बिल्कुल ही भूल जाओ।

उस आदमी के बारे में कमला बहुत कुछ जानना चाहती थी मगर अपने चाचा के मुँह से साफ़ जवाब पाकर दम न मार सकी और दिल-की-दिल ही में रखने पर लाचार हुई।

शेर : कमला, तू रोहतासगढ़ जा और दो-तीन दिन में लौटकर वहाँ का जो कुछ हाल हो मुझसे कह। किशोरी से मिलकर उसे ढाढ़स दीजियो और कहियो कि घबड़ाये नहीं। उसी रास्ते से किले के अन्दर बल्कि उस बाग़ में जिसमें किशोरी रहती है चली आइयो, जिस राह का हाल मैंने तुमसे कहा था, उस राह से आना-जाना कभी किसी को मालूम न होगा।

कमला : बहुत अच्छा, मगर कामिनी के लिए क्या हुक़्म होता है?

शेर : मैं इसे ले जाता हूँ, अपने एक दोस्त के सुपुर्द कर दूँगा। वहाँ यह बड़े आराम से रहेगी। जब सब तरफ़ से फ़साद मिट जायगा मैं इसे ले आऊँगा, तब यह भी अपनी मुराद को पहुँच जायगी।

कमला : जो मर्जी।

तीनों आदमी तहख़ाने के बाहर निकले और जैसा ऊपर लिखा जा चुका है उसी तरह कोठरियों और दालानों में से होते हुए इस मकान के बाहर निकल आये।

शेर : कमला, ले अब तू जा और कामिनी की तरफ़ से बेफ़िक्र रह। मुझसे मिलने के लिए यही ठिकाना मुनासिब है।

कमला : अच्छा मैं जाती हूँ मगर यह तो कह दीजिए कि उस आदमी से मुझे कहाँ तक होशियार रहना चाहिए जो आपसे मिलने आया था?

शेर : (कड़ी आवाज़ में) एक दफ़े तो कह दिया कि उसका ध्यान भुला दे, उससे होशियार रहने की ज़रूरत नहीं और न वह मुझे कभी दिखायी देगा।


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