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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

सातवाँ बयान


आधी रात से ज़्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हाँ उसकी डबडबाई हुई आँखें ज़रूर इस बात की ख़बर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वन्द मचा हुआ है। उसकी आँखों में नींद बिल्कुल नहीं है, घड़ी-घड़ी करवटें बदलती और लम्बी साँसें लेकर रह जाती है।

यकायक कमरे के बाहर से कोई तड़पा देनेवाली आवाज़ उसके कान में आयी जिसके सुनते ही वह बेचैन हो गयी, किसी तरह लेटी रह न सकी, पलँग से नीचे उतर पड़ी और दरवाज़ा खोल बाहर इधर-उधर देखने लगी। वह आवाज़ किसी के सिसक-सिसककर रोने की थी।

कमरे के बाहर आठ दर का दालान था जहाँ एक खम्भे के सहारे खड़ी बिलख-बिलखकर रोती हुई एक कमसिन औरत को किशोरी ने देखा। खम्भे और उस औरत पर चाँदनी अच्छी तरह पड़ रही थी। पास जाने से मालूम हुआ कि सर्दी से वह औरत काँप रही है, क्योंकि कोई भारी कपड़ा उसके बदन पर न था, जिससे सर्दी का बचाव होता।

किशोरी का दिल तो पहिले ही से जख्मी हो रहा था, वह इस तरह से बिलख-बिलख किसी को रोते कब देख सकती थी! जाते ही उस औरत का हाथ थाम लिया और पूछा—

‘‘तुम पर क्या आफ़त आयी है जो इस तरह बिलख-बिलखकर रो रही हो?’’

औरत : हाय, मेरे ऊपर वह आफ़त आयी है जो किसी तरह टल नहीं सकती!

किशोरी उसे अपने कमरे में ले आयी और अपने पास फ़र्श पर बैठाकर बातचीत करने लगी। इस औरत की उम्र अट्ठारह वर्ष से ज़्यादे न होगी यह हर तरह से खूबसूरत और नाजुक थी, इसके बदन में जो कुछ जेवर था उसके देखने से साफ़ मालूम होता था कि यह ज़रूर किसी बड़े खानदान की लड़की है।

किशोरी : मैं उम्मीद करती हूँ कि अपने दिल का हाल साफ़-साफ़ मुझसे कहोगी और मुझे बहिन समझकर कुछ न छिपाओगी

औरत : बहिन, मैं ज़रूर अपना हाल तुमसे कहूँगी क्योंकि तुम भी उसी बला में फँसी हो, जिसमें मैं।

किशोरी : (चौंककर) क्या मेरी ही तरह से तुम पर भी जुल्म किया गया है।

औरत : बेशक!

किशोरी : (लम्बी साँस लेकर) हे ईश्वर! मैंने तो किसी के साथ बुराई नहीं की थी, फिर क्यों यह दुःख भोग रही हूँ!!

औरत : मगर मैं अब इस जगह ठहर नहीं सकती!

किशोरी : सो क्यों? क्या किसी तरह का ख़ौफ़ मालूम होता है?

औरत : नहीं नहीं, डर किसी बात का नहीं है, पर इस समय मुझे किसी की मदद से निकल भागने की उम्मीद है, इसीलिए अपने कमरे से निकल यहाँ तक आयी थी।

किशोरी : क्या कोई तरकीब निकाली गयी है?

औरत : हाँ, और अगर चाहो तो तुम भी मेरे साथ यहाँ से भाग सकती हो। इसी राज्य का एक जबर्दस्त आदमी आज हमारी मदद करेगा।

यह सुनकर किशोरी बहुत खुश हुई। वह औरत कौन है, उसका नाम क्या है, उस पर क्या दुःख पड़ा है? यह सब पूछना तो बिल्कुल भूल गई और निकल भागने की खुशी में उस औरत का हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर प्रेम से उनकी तरफ़ देख, पूछने लगी, ‘‘क्या तुम्हारी मदद से मेरा भी छुटकारा यहाँ से हो सकता है?’’

औरत : ज़रूर हो सकता है मगर अब देर न करना चाहिए।

इसके जवाब में किशोरी कुछ कहा ही चाहती थी कि सामने का दरवाज़ा खुला और एक हसीन औरत अन्दर आती हुई दिखायी पड़ी। इसकी अवस्था लगभग बीस वर्ष के होगी, सुफेद गेहूँ का-सा रंग, कद न लम्बा न नाटा, बदन साफ़ और सुडौल, नमकीन चेहरा, रस-भरी आँखें, नाक में एक हीरे की कील के अलावे दो चार मामूली गहने पहिरे हुए थी, तो भी वह इस लायक थी कि ऊँचे दर्ज़े के खूबसूरतों की पंक्ति में बैठ सके। इसे देखते ही वह औरत जो किशोरी के पास बैठी थी चौंकी और उसकी तरफ़ देखकर बोली, ‘‘लाली, इस समय तुम्हारा यहाँ आना मुझे ताज्जुब में डालता है!

लाली : लेकिन यह सुनकर तुम्हें और भी ताज्जुब होगा कि मैं तुम्हारे पंजे से बेचारी किशोरी की जान बचाने के लिए आयी हूँ।

इतना सुनते ही उस औरत का रंग-ढंग बिल्कुल बदल गया। उसके चेहरे पर जो अभी तक उदासी छायी हुई थी बिल्कुल जाती रही और तम-तमाहट मौजूद हुई, उसकी आँखें भी जो डबडबाई हुई थीं, खुश्क हो गयीं और उनमें गुस्से की सुर्खी दिखायी देने लगी, वह इस निगाह से लाली को देखने लगी जैसे उस पर किसी तरह की हुकूमत रखती हो।

लाली को किशोरी भी पहिचानती थी, क्योंकि यह उन हसीनों में से थी जो किशोरी का दिल बहलाने और उसकी हिफ़ाजत करने के लिए तैनात की गयी थीं।

हुकूमत भरी निगाहों से कई सायत तक लाली की तरफ़ देखने के बाद वह औरत फिर बोली—

‘‘लाली, क्या तू आज पागल हो गयी है जो मेरे सामने इस तरह से बेअदब होकर बोलती है?’’

लाली : तू कौन है जो तेरे साथ अदब का बरताव करूँ?

औरत : (खड़ी होकर) तू नहीं जानती कि मैं कौन हूँ?

लाली : कुन्दन, मैं तुझे खूब जानती हूँ, मगर तू यह नहीं जानती कि तेरी नकेल मेरे हाथ में है, जिससे तू मेरा कुछ नहीं कर सकती और न अपनी बेईमानी का जाल ही बेचारी किशोरी पर फैला सकती है!

इतना सुनते ही वह औरत जिसका नाम कुन्दन था लाल हो गयी और अपने जोश को किसी तरह सम्हाल न सकी, छुरा जो कमर में छिपाये हुए थी हाथ में ले लिया और मारने के लिए लाली की तरफ़ झपटी। मगर लाली ने झट अपने बगल से नारंगी निकालकर उसे दिखायी और पूछा, ‘‘क्या तू भूल गयी कि इसमें कै फाँकें हैं?’’

नारंगी देखने के साथ ही और लाली के मुँह से निकले हुए शब्दों को सुनते ही उसका जोश जाता रहा, ख़ौफ़ और घबराहट से उसका रंग बिल्कुल उड़ गया और वह एक चीख मारकर ज़मीन पर गिर पड़ी।

 

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