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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

चौथा बयान


किशोरी की जब आँख खुली तो उसने अपने को एक सुन्दर मसहरी पर लेटे हुए पाया और उम्दा कपड़ों और जेवरों से सजी हुई कई औरते भी उसे दिखायी पड़ीं। पहिले तो किशेरी ने यही समझा कि वे सब अच्छे अमीरों और सरदारों की लड़कियाँ हैं मगर थोड़ी ही देर बाद उनकी बातचीत और कायदे से मालूम हो गया कि लौंडियाँ हैं अपनी बेबसी और बदकिस्मती पर रोती हुई भी किशोरी को यह जानने की बड़ी उत्कृष्ठा हुई कि किस महाराजाधिराज के मकान में आप फँसी हूँ जिसकी लौंडियाँ इस शान और शौकत की दिखायी पड़ती हैं।

किशोरी को होश में आते देख उनमें की दो-तीन लौंडियाँ न मालूम कहाँ चली गयीं, मगर किशोरी ने समझ लिया कि मेरे होश में आने की किसी को ख़बर करने गयी है।

ताज्जुब भरी निगाहों से किशोरी चारों तरफ़ देखने लगी वाह वाह, क्या सुन्दर कमरा बना हुआ है! चारों तरफ़ दीवारों पर मीनाकारी का काम किया हुआ है, छत में सुनहरी बेल और बीच-बीच में जड़ाऊ फूलों को देखकर अक्ल दंग होती है, न मालूम इसकी तैयारी में कितने रुपये खर्च हो गये होंगे! छत से लटकती हुई बिल्लौरी हाँडियों की परइयों में मानिक की लोलकें लटक रही हैं, जड़ाऊ डारों पर बेशक़ीमती दीवारगीरें अपनी बहार दिखा रही हैं, दरवाजों की महराबों पर अंगूर की बेलें और उस पर बैठी हुई छोटी-छोटी खूबसूरत चिड़ियों के बनाने में कारीगरों ने जो कुछ मेहनत की होगी उसका जानना बहुत ही मुश्किल है। उन अंगूरों में कहीं पक्के अंगूर की जगह मानिक और कच्चे की जगह पन्ना काम में लाया गया था। अलावे इन सब बातों के उस कमरे की कुल सजावट का हाल अगर लिखा जाय तो हमारा असल मतलब बिल्कुल छूट जायगा और मुख्तसर लिखावट के वादे में फ़र्क़ पड़ जायगा, अस्तु इस बारे में हम कुछ नहीं लिखते।

इस मकान को देख किशोरी दंग रह गयी। उसकी हालत का लिखना बहुत ही मुश्किल है। जिधर उसकी निगाह जाती उधर ही की हो रहती थी, पर उस जगह की सजावट किशोरी को अच्छी तरह देखने भी न पायी थी कि पहिले की-सी और कई लौंडियाँ वहाँ आ मौजूद हुईं और बोलीं, ‘महाराज को साथ लिये महारानी साहिबा आ रही हैं!’’

महाराज को साथ लिए रानी साहिबा उस कमरे में आ पहुँची। बेचारी किशोरी को भला क्या मालूम कि ये दोनों कौन हैं या कहाँ के राजा हैं? तो भी इन दोनों की सूरत-शक्ल देखते ही किशोरी रुआब में आ गयी। महाराज की उम्र लगभग पचास वर्ष की होगी। लम्बा कद, गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, चौड़ी पेशानी, ऊपर को उठी हुई मूँछें, बहादुरी चेहरे पर बरस रही थी। रानी साहिबा की उम्र भी लगभग पैंतीस वर्ष की होगी फिर भी उनके बदन की बनावट और खूबसूरती नौजवान परीजमालों की आँखें नीची करती थी। उनकी बड़ी-बड़ी रतनार आँखों में अब भी वही बात थी जो उनकी जवानी में होगी। उनके अंगों की लुनाई में किसी तरह का फ़र्क़ नहीं आया था। इस समय एक कीमती धनी पोशाक उनकी खूबसूरती को बढ़ा रही थी और जड़ाऊ जेवरों से उनका बदन भरा हुआ था मगर देखनेवाला यही कहेगा कि इन्हें जेवरों की कोई ज़रूरत नहीं, यह तो हुस्न ही के बोझ से दबी जाती हैं।

उन दोनों के रुआब ने किशोरी को पलँग पर पड़े रहने न दिया। वह उठ खड़ी हुई और उनकी तरफ़ देखने लगी। रानी साहिबा चाहे कैसी ही खूबसूरत क्यों न हो, मगर किशोरी की सूरत देखते ही वे दंग हो गयीं और उनकी शेखी हवा हो गयी। इस समय वह हर तरह से सुस्त और उदास थी, किसी तरह की सजावट उनके बदन पर न थी, तो भी महारानी के जी ने गवाही दे दी कि इससे बढ़कर खूबसूरत दुनिया में कोई न होगी। किशोरी उनकी खूबसूरती के रुआब में आकर पलँग से नीचे नहीं उतरी थी बल्कि इज्जत के लिहाज से और यह सोचकर कि जब इस कमरे की इतनी बड़ी सजावट है तो उसके ख़ास कमरे की क्या नौबत होगी और वह कितने बड़े राज्य और दौलत की मालिक होंगी।

राजा और रानी दोनों ने प्यार की निगाह से किशोरी की तरफ़ देखा और राजा ने आगे बढ़कर किशोरी की पीठ पर हाथ फेरकर कहा, ‘‘बेशक यह मेरी पतोहू होने के लायक है।’’


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