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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

अट्ठारहवाँ बयान


मकान के अन्दर कमला, इन्द्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुँचने के पहिले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहाँ की क़ैफ़ियत दिखाते हैं।

इस मकान के अन्दर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियाँ हैं पर हमें उनसे कोई मतलब नहीं, हम तो उस दालान के पास जाकर खड़े होते हैं जिसके दोनों तरफ़ दो कोठरियाँ हैं और सामने लम्बा-चौड़ा सहन है। इस दालान में किसी तरह की सजावट नहीं, सिर्फ़ एक दरी बिछी हुई है और खूँटियों पर कुछ कपड़े लटक रहे हैं। आधी रात का समय होने पर भी इस दालान में चिराग की रोशनी नहीं है। यह दालान ऊपर के दर्ज़ेमं है, इसके ऊपर कोई इमारत नहीं, सामने का सहन बिल्कुल खुला हुआ है, चन्द्रमा की फैली हुई सुफेदी सहन में घुसती हुई धीरे-धीरे दालान में आ रही है जिसकी रोशनी उस दालान की हर एक चीज़ को दिखलाने के लिए काफी है। एक तरफ़ की कोठरी तो बन्द है मगर दूसरी बगल वाली कोठरी का दरवाज़ा खुला हुआ है। यह कोठरी बहुत बड़ी नहीं है और इसके भीतर सुफेद फ़र्श पर दो औरतें बैठी हुई धीरे-धीरे कुछ बातें कर रही हैं।

हमारे पाठक इन दो औरतों को बखूबी पहिचानते हैं। इनमें से एक तो किशोरी है और दूसरी वही किन्नरी है जिस पर कुँअर आनन्दसिंह रीझे हुए हैं, जो कई दफे आनन्दसिंह के कमरे में कोठरी के अन्दर से निकल अपने चितवन से उन्हें घायल कर चुकी है और साथ ही साथ आप भी आशिक हो चुकी हैं।

किशोरी : बहिन तुमने जो कुछ नेकी मेरे साथ की है उसे मैं किसी तरह भूल नहीं सकती। मुझसे यह भी न होगा कि तुम्हें ऐसी हालत में छोड़ इन्द्रजीतसिंह के पास चली जाऊँ।

किन्नरी : फिर क्या किया जाय, किस तरह उम्मीद हो कि मुझे कोई पूछेगा!!

किशोरी : कमला ने मुझसे क़सम खाकर कहा है कि आनन्दसिंह किन्नरी की चाह में डूबे हुए हैं। इसे भी जाने दो, आख़िर तुम्हारा अहसान कुछ उनके ऊपर है या नहीं? इतने बदमाशों को जो यहाँ फ़साद मचा रहे थे सिवाय तुम्हारे कौन मार सकता था।

किन्नरी : ख़ैर जो होगा देखा जायगा, अब तो यह सोचना चाहिए कि हम लोग कहाँ जाँय और क्या करें?

किशोरी : कमला आ जाय तो उससे राय मिलाकर जो मुनासिब मालूम हो किया जाय। ओफ, यहाँ बैठे-बैठे जी घबरा गया, चलो बाहर चलें, चाँदनी खूब निकली हुई है।

दोनों औरतें कोठरी के बाहर निकलीं और सहन में आकर टहलने लगीं। मौसिंम के मुताबिक कुछ सर्दी पड़ रही थी इसलिए दोनों ज़्यादे देर तक सहन में टहल न सकीं, दालान में आकर दरी पर बैठ गयीं और बातचीत करने लगीं।

केवल मकान के बगल में एक छोटा-सा नज़रबाग़ था मगर इसकी हालत ऐसी खराब हो रही थी कि उसे नज़रबाग़ की जगह खँडहर या जंगल ही कहना मुनासिब है। नज़रबाग़ में जाने के लिए इस मकान से एक रास्ता जाता था, बाक़ी चारों तरफ उसके ऊँची-ऊँची दीवारें थीं। इस मकान में बिना भीतर वाले की मदद के कोई कमन्द लगाकर चढ़ नहीं सकता था क्योंकि इसकी ऊपर की दीवारें इस खूबी से बनी हुई थीं कि किसी तरह कमन्द अड़ नहीं सकती थी। हाँ अगर कोई चाहे तो कमन्द के जरिए उस बाग़ में ज़रूर जा सकता था, मगर इस मकान में आने के लिए वहाँ से भी वही दिक्कत होती।

थोड़ी देर किशोरी और किन्नरी बातें करती रहीं, इसके बाद नीचे से किवाड़ खटकाने की आवाज़ आयी। किशोरी ने कहा, ‘‘लो बहिन कमला भी आ पहुँची।’’

किन्नरी : खटखटाने की आवाज़ से मालूम होता है कि कमला ही है, मगर तो भी खिड़की से झाँक के मामूली सवाल कर लेना मुनासिब है।

किशोरी : ऐसा ज़रूर करना चाहिए क्योंकि हम लोगों को धोखा देने के लिए दुश्मन लोग पचासों रंग लाया करते हैं।

‘‘तुम ठहरो मैं कुछ पूछती हूँ!’’ इतना कहकर किशोरी ने दरवाज़े की तरफ़ वाली खिड़की में से झाँककर पूछा, ‘‘गिनती पूरी हुई?’’इसके जवाब में किसी ने कहा, ‘‘हाँ पचासी तक।’’

किशोरी : अच्छा मैं नीचे आकर दरवाज़ा खोलती हूँ।

दरवाज़ा खोलने के लिए खुशी-खुशी किशोरी नीचे उतरी मगर चौखट के पास पहुँचने के पहिले ही नीचे के अँधेरे दालान में एक मोटे कद्दावर आदमी को खड़ा देख डर के मारे चिल्ला उठी तथा उस समय तो एक चीख मारकर बिल्कुल बेहोश हो गयी जब शैतान उस बेचारी की तरफ़ झपटा और हाथ तथा कमर पकड़कर बेदर्दी के साथ एक तरफ़ खींच ले चला।

किशोरी के चिल्लाने की आवाज़ सुनते ही हाथ में नंगी तलवार लिये किन्नरी धड़धड़ाती हुई नीचे पहुँची मगर चारों तरफ़ घूम-घूमकर देखने पर भी उसने किसी न पाया बल्कि किशोरी का भी पता न लगा।

किन्नरी दरवाज़ा खोलना तो भूल गयी और किशोरी को न पाने से घबड़ाकर इधर-उधर ढूँढ़ने लगी। उस भयानक अँधेरे में दालान और कोठरियों में घूमती हुई किन्नरी को इस बात का ज़रा भी ख़ौफ़ न मालूम हुआ कि किशोरी की तरह कहीं मुझ पर आफ़त न आ जाय।

बेचारी किशोरी चीख मारकर बेहोश हो गयी मगर जब वह होश में आयी तो उसने अपने को मौत के पंजे में गिरफ़्तार पाया। उसने देखा कि झाड़ियों के बीच में जबर्दस्ती ज़मीन पर गिराई हुई है, एक आदमी नकाब से अपनी सूरत छिपाये उसकी छाती पर सवार है और खंजर उसके कलेजे के पार किया ही चाहता है।

 

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