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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8399
आईएसबीएन :978-1-61301-026-6

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 1 पुस्तक का ई-संस्करण...

पाँचवाँ बयान


कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहाँ से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ़ घूम-घूमकर किसी ऐसे निशान को ढूँढ़ने लगी जिससे यह मालूम हो कि किशोरी किस सवारी पर यहाँ से गयी है, मगर जब तक वह उस आम की बारी में न पहुँची तब तक सिवाय पैरों के चिह्न के और किसी तरह का कोई निशान ज़मीन पर दिखायी न पड़ा।

बरसात का दिन था और ज़मीन अच्छी तरह पर नम हो गयी थी इसलिए आम-की बारी में घूम-घूमकर कमला ने मालूम कर लिया कि किशोरी यहाँ से रथ पर सवार होकर गयी है और उसके साथ में कई सवार भी हैं क्योंकि रथ के पहियों का दोहरा निशान और बैलों के खुर ज़मीन पर साफ़ मालूम पड़ते थे, इसी तरह घोड़ों के टापों के निशान भी अच्छी तरह दिखायी देते थे।

कमला कई क़दम उस निशान की तरफ़ चली गयी जिधर रथ गया था बहुत जल्द मालूम कर लिया कि किशोरी को ले जाने वाले किस तरफ़ गये हैं। इसके बाद वह पीछे लौटी और सीधे अस्तबल में पहुँच एक तेज़ घोड़े पर बहुत जल्द चारजामा कसने का हुक़्म दिया।

कमला का हुक़्म ऐसा न था कि कोई उससे इन्कार करता। घोड़ा बहुत जल्द कसकर तैयार किया गया और कमला उस पर सवार हो तेज़ी के साथ उस तरफ़ रवाना हुई जिधर रथ पर सवार होकर किशोरी के जाने का उसे विश्वास हो गया था।

पाँच कोस बराबर चले जाने के बाद कमला एक चौराहे पर पहुँची जहाँ से बायें तरफ़ का रास्ता चुनार की तरफ़ गया था, दाहिने तरफ़ की सड़क रीवाँ होते हुए गयाजी तक पहुँची थीं, तथा सामने का रास्ता एक भयानक जंगल से होता हुआ कई तरफ़ को फूट गया था।

इस चौमुहानी पर पहुँचकर कमला रुकी और सोचने लगी कि किधर जाऊँ? अगर चुनारवाले किशोरी को ले गये होंगे तो इसी बायीं तरफ़ से गये होंगे, और किशोरी की दुश्मन माधवी ने उसे फँसाया होगा तो रथ दाहिनी तरफ़ से गयाजी को गया होगा, सामने की सड़क से रथ ले जानेवाला तो कोई ख़याल में नहीं आता क्योंकि यह जंगल का रास्ता बहुत ही ख़राब और पथरीला है।

चन्द्रमा निकल आया था और रोशनी अच्छी तरह फैल चुकी थी। कमला घोड़े के नीचे से उतर गयी और दाहिनी तरफ़ ज़मीन पर रथ के पहिये के दाग ढूँढ़ने लगी मगर कुछ मालूम न हुआ, लाचार घोड़े पर सवार हो सोचने लगी कि किधर जाऊँ, क्या करूँ।

हम पहिले लिख आये हैं कि रथ पर जाते-जाते जब किशोरी ने जान लिया कि वह धोखे में डाली गयी है तब उसके मुँह से कई शब्द ऐसे निकले जिन्हें सुन नकली कमला होशियार हो गयी और रथ के नीचे कूद एक घोड़े पर सवार हो पीछे की तरफ़ लौट गयी।

लौटी हुई नकली कमला ठीक उसी समय घोड़ा दौड़ाती हुई उस चौराहे पर पहुँची जिस समय असली कमला वहाँ पहुँचकर सोच रही थी कि किधर जाऊँ, क्या करूँ? असली कमला ने सामने से तेज़ी के साथ आते हुए एक सवार को देख घोड़ा रोकने के लिए ललकारा मगर वह क्यों रुकने लगी थी, हाँ उसे असली कमला के दाहिनी तरफ़ वाली राह पर जाने के लिए घूमना था इसलिए अपने घोड़े की तेज़ी को कम करनी ही पड़ी।

जब असली कमला ने देखा कि सामने से आया हुआ सवार उसके ललकारने से भी किसी तरह नहीं रुकता और दाहिनी सड़क से निकल जाया चाहता है तो झट कमर से दुनाली पिस्तौल निकाल उसने घोड़ पर वार किया। गोली लगते ही घोड़ा नकली कमला को लिए ज़मीन पर गिरा, मगर घोड़े के गिरते ही वह बहुत ही जल्द  सम्हलकर उठ खड़ी हुई और उसने भी कमर से दुनाली पिस्तौल निकाल कमला पर गोली चलायी।

असली कमला तो पहिले ही सम्हली हुई थी, गोली की मार से बच गयी, फिर दूसरी गोली आयी पर वह भी न लगी। लाचार नकली कमला ने अपनी पिस्तौल फिर भरने का इरादा किया मगर असली कमला ने उसे यह मौका न दिया। दोनों गोली बेकार जाते देख वह समझ गयी कि उसकी पिस्तौल खाली हो गयी है और ललकारकर बोली, ‘‘खबरदार जो पिस्तौल भरने का इरादा किया है, देख मेरी पिस्तौल में दूसरी गोली अभी भी मौजूद है!’’ नकली कमला भी यही सोचकर चुपचाप खड़ी रह गयी अब वह अपने दुश्मन का कुछ नहीं बिगाड़ सकती क्योंकि पिस्तौल की दोनों गोलियाँ बरबाद हो चुकी थीं और घोड़ा उसका मर चुका था।

पिस्तौल के अलावे दोनों की कमर में खंजर भी था मगर उसकी ज़रूरत न पड़ी। असली कमला ने ललकार कर पूछा, ‘‘सच बता तू कौन है?’’

नकली कमला को जान दे देना कबूल था मगर अपने मुँह से यह बताना मंजूर न था कि वह कौन है। असली कमला ने यह देख अपने घोड़े का ऐसा चपेटा दिया कि वह किसी तरह सम्हल न सकी और ज़मीन पर गिर पड़ी। जब तक वह होशियार होकर उठना चाहे तब तक असली कमला झट से घोड़े से कूद उसकी छाती पर सवार दिखाई देने लगी।

असली कमला ने जबर्दस्ती उसकी नाक में बेहोशी की दवा ठूँस दी जब वह बेहोश हो गयी तो उसकी छाती पर से उतरकर अलग खड़ी हो गयी।

असली कमला जब उसकी छाती पर सवार हुई तो उसे अपनी ही सूरत का पाया, इसलिए समझ गयी कि यह कोई ऐयार या ऐयारा है, सिवाय इसके किशोरी की सखियों की जुबानी उसने मालूम कर ही लिया था कि कोई उसकी सूरत बन किशोरी को ले गया है, अब उसे विश्वास हो गया कि किशोरी को इसी ने धोखा दिया है।

थोड़ी देर बाद कमला ने अपने बटुए में से पानी भरी छोटी-सी बोतल निकाली और नकली कमला का मुँह धोकर साफ़ किया, इसके बाद चकमक से आग निकाल बत्ती जलाकर पहचानना चाहा कि वह कौन है मगर बिना ऐसा किये वह केवल चन्द्रमा की ही मदद से पहिचान ली गयी कि माधवी की सखी ललिता है, क्योंकि कमला उसे अच्छी तरह जानती थी और वर्षों साथ रहने के सिवाय बराबर मिला-जुला भी करती थी।

कमला को विश्वास तो हो ही गया कि किशोरी को धोखा देकर ले जानेवाली यही ललिता है मगर इस बात का ताज्जुब बना ही रहा कि वह सामने से लौटकर आती हुई क्यों दिखायी पड़ी! कमला यह भी जानती थी कि चाहे जान चली जाय मगर ललिता असल भेद कभी न बतावेगी, इसलिए उसकी जुबानी पता लगाने का उद्योग करना उसने व्यर्थ समझा और अपने साथ ललिता को घोड़े पर लादकर घर की तरफ़ पलट पड़ी।

रात बिल्कुल बीत चुकी थी बल्कि कुछ दिन निकल आया था जब ललिता को लादे हुए कमला घर पहुँची। यहाँ किशोरी के गायब होने से बड़ा ही हाहाकार मचा हुआ था। उसकी खोज में कई आदमी चारों तरफ़ जा चुके थे। किशोरी का नाना रणधीरसिंह भारी जमींदार होने के सिवाय बड़ा ही दिमाग़दार और ज़बर्दस्त आदमी था। उसने यही समझ रक्खा था कि शिवदत्त के दुश्मन बीरेन्द्रसिंह की तरफ़ से यह कार्रवाई की गयी है। मगर जब ललिता को लिये कमला पहुँची और उसकी जुबानी सब हाल मालूम हुआ तब माधवी की बदमाशी पर बहुत बिगड़ा। वह माधवी की चाल-चलन पर पहिले ही से रंज था मगर कुछ ज़ोर न चलने से लाचार था। आज गुस्से के मारे इस बात का बिल्कुल ध्यान न रहा कि माधवी एक भारी राज्य की मालिक है और जबर्दस्त फौज रखती है, उसने कमला के मुँह से सब हाल सुनते ही तलवार हाथ में ले क़सम खा ली कि ‘जिस तरह हो सकेगा अपने हाथ से माधवी का सिर काट कलेजा ठण्डा करूँगा’।

ललिता एक अँधेरी कोठरी में क़ैद की गयी और रणधीरसिंह की आज्ञा पर कमला अपने बड़े भाई हरनामसिंह को साथ ले किशोरी की मदद को पैदल ही रवाना हुई।

कमला आज भी उसी कलवाले रास्ते पर रवाना हुई और दोपहर होते-होते उसी चौराहे पर पहुँची जहाँ कल ललिता मिली थी। वे दोनों बेधड़क सामनेवाली सड़क पर चले।

चौराहे के आगे लगभग तीन कोस चले जाने के बाद ख़राब और पथरीली राह मिली जिसे देख हरनामसिंह ने कहा, ‘इस राह से रथ ले जाने में ज़रूर तक़लीफ़ हुई होगी।’’

कमला : बेशक ऐसा ही हुआ होगा, और मुझे तो अभी तक निश्चय ही नहीं हुआ कि किशोरी इसी राह से गयी है।

हरनाम : मगर मैं तो यही समझता हूँ कि रथ इसी राह से गया और किशोरी का साथ छोड़ कोई दूसरी कार्रवाई करने के लिए ललिता लौटी थी।

कमला : शायद ऐसा ही हो।

और थोड़ी दूर जाने के बाद पैर की एक पाजेब ज़मीन पर पड़ी हुई दिखायी दी। हरनामसिंह ने उसे देखते ही उठा लिया और कहा, ‘‘बेशक किशोरी इसी राह से गयी है, इस पाजेब को मैं खूब पहिचानता हूँ।’’

कमला : अब तो मुझे भी निश्चय हो गया कि किशोरी इधर ही से गयी है।

हरनाम : हाँ, जब उसे मालूम हो गया कि उसने धोखा खाया और दुश्मन के फन्दे में पड़ गयी तब उसने यह पाजेब चुपके-से ज़मीन पर फेंक दी।

कमला : इसलिए कि वह जानती थी कि उसकी खोज में बहुत-से आदमी निकलेंगे और इधर आकर इस पाजेब को देखेंगे तो जान जायेंगे कि किशोरी इधर ही गयी है।

हरनाम : मैं ख़याल करता हूँ कि आगे चलकर किशोरी की फेंकी हुई और भी कोई चीज़ हम ज़रूर देखेंगे।

कमला : बेशक ऐसा ही होगा।

कुछ आगे जाकर दूसरी पाज़ेब और उससे थोड़ी दूरी पर किशोरी के और कई गहने इन लोगों ने पाये। अब कमला को किशोरी के इसी राह से जाने का पूरा विश्वास हो गया और वे दोनों बेधड़क कदम बढ़ाते हुए राजगृह की तरफ़ रवाना हुए।


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