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चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

चौदहवां बयान

कुमार के गायब हो जाने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी उनकी खोज में निकले हैं, इस खबर को सुनकर महाराज शिवदत्त के जी में फिर बेईमानी पैदा हुई। एकान्त में अपने ऐयारों और दीवान को बुलाकर उसने कहा, ‘‘इस वक़्त कुमार लश्कर से गायब हैं उनके ऐयार लोग भी उन्हें ढूंढ़ने गये हैं, मौका अच्छा है। मेरे जी में आता है कि चढ़ाई करके कुमार के लश्कर को खत्म कर दूं और उस खजाने को भी लूट लूं जो तिलिम्म में से उनको मिला है।’’

इस बात को सुन दीवान तथा बद्रीनाथ, पन्नालाल रामनारायण और चुन्नीलाल ने बहुत समझाया कि आपको ऐसा न करना चाहिए क्योंकि आप कुमार से सुलह कर चुके हैं, अगर इस लश्कर को आप जीत भी लेगें तो क्या हो जायेगा, फिर दुश्मनी पैदा होने में ठीक नहीं है, ऐसी-ऐसी बहुत-सी बातें करके इन लोगों ने समझाया, मगर शिवदत्त ने एक न मानी। इन्हीं ऐयारों में नाज़िम और अहमद भी थे जो शिवदत्त की राय में शरीक थे और उसे हमला करने के लिए उकसाते थे।

आखिर महाराज शिवदत्त ने कुंअर वीरेन्द्रसिंह के लश्कर पर हमला किया और खुद मैदान में आ फतहसिंह सिपहसालार को मुकाबले के लिए ललकरा। वह भी जवांमर्द था, तुरंत मैदान में निकल आया और पहर भर तक खूब लड़ा, लेकिन आखिर शिवदत्त के हाथ जख्मी होकर गिरफ्तार हो गया।

सेनापति के गिरफ्तार होते ही फौज़ बेदिल होकर भाग गई। सिर्फ खेमा वगैरह महाराज शिवदत्त के हाथ लगे, तिलिस्मी खज़ाना उसके हाथ कुछ भी न लगा क्योंकि तेजसिंह ने बन्दोबस्त करके उसे पहले ही नौगढ़ भिजवा दिया था, हां तिलिस्मी किताब उसके कब्ज़े में ज़रूर पड़ गई जिसे पाकर वह बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘अब तिलिस्म को मैं खुद तोड़कर कुमारी चन्द्रकान्ता को उस खोह से निकाल ब्याहूंगा।

फतहसिंह को क़ैद में भेज शिवदत्त ने जलसा किया। नाच की महफिल से उठकर अपने खास दीवानेखाने में आकर पलंग पर सो रहा। उसी रोज़ वह पलंग पर से गायब हुआ, मालूम नहीं कौन कहां ले गया, सिर्फ वह पुर्जा पलंग पर मिला जिसका हाल ऊपर लिख चुके हैं। उसके गायब होने पर फतहसिंह सिपहसालार भी क़ैद से छूट गया, उसकी आंख सुनसान जंगल में खुली। यह कुछ न मालूम हुआ कि उसको क़ैद से किसने छुड़ाया बल्कि आराम और फायदा मालूम होता था।

अकेले फतहसिंह फिर तिलिस्म के पास आये उनके लश्कर के कई आदमी मिले बल्कि धीरे-धीरे वह फौज़ इकट्ठा हो गई जो भाग गई थी। इसके बाद ही यह खबर लगी कि महाराज शिवदत्त को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

अकेले फतहसिंह ने सिर्फ थोड़े ही बहादुरों पर भरोसा कर चुनार पर चढ़ाई कर दी। दो कोस गया होगा कि लश्कर लिये हुए महाराज जयसिंह के पहुंचने की खबर मिली। चुनार का जाना छोड़ जयसिंह के इस्तकबाल (अगुवानी) को गया और उनका भी इरादा अपने ही-सा सुन उनके साथ चुनार की तरफ बढ़ा। जयसिंह की फौज़ ने पहुँचकर चुनार का किला घेर लिया। शिवदत्त की फौज़ ने किले के अन्दर घुसकर दरवाज़ा बन्द कर लिया, फसीलों पर तोपें चढ़ा दी और कुछ रसद का सामान कर फसीलों और बुर्जों पर से लड़ाई करने लगे।

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