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चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

पच्चीसवां बयान

दूसरे दिन स्नान-पूजा से छुट्टी पाकर वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और ज्योतिषीजी फिर उसी खण्डहर में घुसे, सिरका साथ में लेते गये। कल जो पत्थर निकला था उस पर जो कुछ लिखा था फिर पढ़के याद कर लिया और उसी लिखने के अनुसार काम करने लगे। बाहर दरवाज़े पर, बल्कि खण्डहर के चारों तरफ पहरा बैठा हुआ था।

बगुले के पास गये, उसके सामने की तरफ जो सफेद पत्थर ज़मीन में गड़ा हुआ था जिस पर पैर रखने से बगुला मुंह खोल देता था, उखाड़ लिया। नीचे एक और पत्थर कमान पर जड़ा हुआ पाया। सफेद पत्थर को सिरके में खूब बारीक पीसकर बगुले के सारे बदन में लगा दिया। देखते-देखते वह पानी होकर बहने लगा! साथ ही इसके एक खुशबू-सी फैलने लगी। दो घंटे में बगुला गल गया! जिस खम्भे पर बैठा था वह भी बिल्कुल पिघल गया। नीचे की कोठरी दिखाई देने लगी जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियां थीं और इधर-उधर बहुत-से तार और पुर्जे वगैरह लगे हुए थे। सभी को तोड़ डाला और चारों आदमी नीचे उतरे, भीतर-ही-भीतर उस कुएं में जा पहुंचे जहां हाथ में किताब लिये बुड्ढा आदमी बैठा था, सामने एक पत्थर की चौकी पर पत्थर ही के बने रंग-बिरंगे फूल रखे हुए देखा।

बाजू पकड़ते ही बुड्ढे ने मुंह खोल दिया, तेजसिंह से काफूर लेकर कुमार ने उसके मुंह में भर दिया। घण्टे भर तक ये लोग उसी जगह बैठे रहे। तेजसिंह ने एक मशाल खूब मोटी पहले ही से बाल ली थी। जब बुड्ढा गल गया, किताब ज़मीन पर गिर पड़ी, कुमार ने उसे उठा लिया। उसकी जिल्द भी जिस पर कुछ लिखा हुआ था, भोजपत्र ही की थी। कुमार ने पढ़ा। उस पर यह लिखा था–

‘‘इन फूलों को भी उठा लो, तुम्हारे ऐयारों के काम आवेंगे। इनके गुण भी इसी किताब में लिखे हुए हैं, इस किताब को डेरे पर जाकर पढ़ो, आज और कोई काम मत करो!’’

तेजसिंह ने बड़ी खुशी से उन फूलों को उठा लिया और धीरे-धीरे खण्डहर के बाहर हो गये।

थोड़ा दिन बाकी था जब कुंवर वीरेन्द्रसिंह अपने डेरे पर पहुंचे। यह राय ठहरी कि रात में इस किताब को पढ़ना चाहिए, मगर तेजसिंह को यह जल्दी थी कि किसी तरह फूलों का गुण मालूम हों। कुमार ने कहा, ‘‘इस वक़्त इन फूलों के गुण पढ़ लीजिए बाकी रात को पढ़ियेगा।’’ कुमार ने हंसकर कहा, ‘‘जब कुल तिलिस्म टूट लेगा तब फूलों के गुण पढ़े जायेंगे।’’ तेजसिंह ने बड़ी खुशामद की, आखिर लाचार होकर कुमार ने जिल्द खोली। उस वक़्त सिवाय इन चारों आदमियों के उस खेमें में और कोई न था, सब बाहर कर दिये गये थे। कुमार पढ़ने लगे।

फूलों के गुण

(१) गुलाब का फूल- – अगर पानी में घिसकर किसी को पिलाया जाये तो उसे सात रोज़ तक किसी तरह की बेहोशी असर न करेगी।

(२) मोतिये का फूल– अगर पानी में थोड़ा-सा घिस कर किसी कुएं में डाल दिया जाये तो चार पहर तक उस कुएं का पानी बेहोशी का काम देगा, जो पियेगा बेहोश हो जायेगा, इसकी बेहोशी आधा घण्टे बाद चढ़ेगी।

दो ही फूलों के गुण पढ़े थे कि तीनों ऐयार मारे खुशी के उछल पड़े, कुमार ने किताब बन्द कर दी और कहा, ‘‘बस, अब न पढ़ेंगे।’’

अब तेजसिंह हाथ जोड़ रहे हैं, कसम देते हैं कि किसी तरह परमेश्वर के वास्ते पढ़िये, आखिर यह सब आप ही के तो ताबेदार हैं। थोड़ी देर तक दिल्लगी करके कुमार ने फिर पढ़ना शुरू किया–

(३) ओरहुर (अड़हुल) का फूल– पानी में घिस कर पीने से चार रोज़ तक भूख न लगे।

(४) कनेर का फूल– पानी में घिसकर पैर धो लें तो थकावट या राह चलने की थकावट निकल जाये।

(५) गुलदाउदी का फूल– पानी में घिसकर आंखों में अंजन करें तो अंधेरे में भी दिखाई दे।

(6) केवड़े का फूल– तेल में घिसकर लगावें तो सर्दी असर न करे, अगर पानी में रगड़कर लगावें तो गर्मी या धूप असर न करे, कत्थे के पानी में घिस कर किसी को पिलायें तो सात रोज़ तक किसी किस्म का जोश उसके बदन में बाकी न रहे।

इन फूलों को बड़ी खुशी से तेजसिंह ने अपने बटुए में डाल लिया, देवीसिंह और ज्योतिषीजी मांगते ही रह गये मगर देखने को भी न दिया।

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