लोगों की राय

नई पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता

चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

93 पाठक हैं

चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

सत्रहवां बयान

एक बहुत बड़े नाले में जिसके चारों तरफ बहुत ही घना जंगल है, पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषी के साथ तेजसिंह बैठे हैं। बगल में एक साधारण-सी डोली रखी हुई है, पर्दा उठा हुआ है, एक औरत उसमें बैठी तेजसिंह से बातें कर रही है। यह औरत चुनार के महाराज शिवदत्त की रानी कलावती कुंवर है। पीछे की तरफ एक हाथ डोली पर रक्खे चम्पा भी खड़ी है।

महारानी : मैं चुनार जाने में राजी नहीं हूं, मुझको राज्य नहीं चाहिए, महाराज के पास रहना मेरे लिए स्वर्ग है। अगर वे कैद में हैं तो मेरे पैर में भी बेड़ी डाल दो मगर उन्हीं के चरणों में रक्खो।

तेज : नहीं, मैं यह नहीं कहता कि ज़रूर आप भी उसी कैदखाने जाइए जिसमें महाराज हैं। आपकी खुशी हो तो चुनार जाइए, हम लोग हिफाज़त से पहुंचा देंगे। कोई ज़रूरत आपके यहां लाने की नहीं थी, ज्योतिषीजी ने कई दफा आपके पातिव्रत धर्म की तारीफ की थी और कहा था कि महाराज की जुदाई में महारानी को बड़ा ही दुःख होता होगा, यही जान हम लोग आपको लेने गये थे, नहीं तो खाली चम्पा को ही छुड़ाने गये थे। अब आप कहिए तो चुनार पहुंचा दें नहीं तो महाराज के पास ले जायें क्योंकि सिवाय मेरे और किसी के जरिए आप महाराज के पास नहीं पहुंच सकतीं। और फिर महाराज क्या जानें कब तक कैद में रहें।

महारानी : तुम लोगों ने मेरे ऊपर बड़ी कृपा की, सचमुच मुझे महाराज से इतनी जल्दी मिलाने वाला और कोई नहीं जितनी जल्दी तुम लोग मिला सकते हो। अभी मुझको उनके पास पहुंचाओ, देर मत करो, मैं तुम लोगों का बड़ा जस मानूंगी।

तेज : तो इस तरह डोली में आप नहीं जा सकतीं। मैं बेहोश करके आपको ले जा सकता हूं।

महारानी : मुझको यह भी मंजूर है। किसी तरह वहां पहुंचाओ।

तेज : अच्छा तब लीजिए, इस शीशी को सूंघिए।

महारानी को अपने पति के साथ बड़ी ही मुहब्बत थी, अगर तेजसिंह उनको कहते कि तुम अपना सिर दे दो तब महाराज से मुलाकात होगी तो वह उसको भी कबूल कर लेतीं।

महारानी बेखटके शीशी सूंघकर बेहोश हो गईं। ज्योतिषीजी ने कहा, ‘‘अब इनको ले जाइए, उसी तहखाने में छोड़ आइए। जब तक आप न आवेंगे मैं इसी जंगल में रहूंगा। चम्पा को भी चाहिए कि विजयगढ़ जाये, हम तो कुमारी चन्द्रकान्ता की खोज में घूम ही रहे हैं. ये दुःख क्यों उठाती है?’’

तेजसिंह ने कहा, ‘‘चम्पा, ज्योतिषी ठीक कहते हैं, तुम घर जाओ, कहीं ऐसा न हो कि फिर किसी आफत में फंस जाओ!’’

चम्पा ने कहा, ‘‘जब तक कुमारी का पता न लगेगा मैं विजयगढ़ कभी न जाऊंगी। अगर मैं इन बर्देफरोशों के बीच फंसी तो अपनी ही चालाकी से छूट भी गई, आप लोगों को मेरे लिए कोई तकलीफ न करनी पड़ी।’’

तेजसिंह ने कहा, ‘‘तुम्हारा कहना ठीक है, हम यह नहीं कहते कि हम लोगों ने तुमको छुड़ाया है! हम लोग तो कुमारी चन्द्रकान्ता को ढूंढ़ते हुए यहां तक पहुंच गये और उन्हीं की उम्मीद में बर्देफरोशों के डेरे देख डाले। उनको तो न पाया मगर महारानी और तुम फंसी हुई दिखाई पड़ीं, छुड़ाने की फिक्र हुई, पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल को महारानी को छुड़ाने के लिए कोशिश करते देख हम लोग भी यह समझ कर अलग हो गये कि मेहनत ये लोग करें, मौके में मौका हम लोगों को भी काम करने का मिल जायेगा! सो ऐसा ही हुआ, तुम अपनी चालाकी से छूटकर बाहर निकल गईं, हमने महारानी को गायब किया। खैर, इन सब बातों को जाने दो, तुम यह बताओ कि घर न जाओगी तो क्या करोगी, कहां ढूंढ़ोगी? कहीं ऐसा न हो कि हम लोग तो कुमारी को खोजकर विजयगढ़ ले जायें और तुम महीनों तक मारी-मारी फिरो।’’

चम्पा ने कहा, ‘‘मैं एकदम से ऐसी बेवकूफ नहीं, आप बेफिक्र रहें।’’

तेजसिंह को लाचार होकर चम्पा को उसकी मर्जी पर छोड़ देना पड़ा और ज्योतिषीजी को भी उसी जंगल में छोड़ महारानी की गठरी बांध-कैदखाने वाले खोह की तरफ रवाना हुए जिसमें महाराज शिवदत्त बन्द थे। चम्पा भी एक तरफ को रवाना हो गई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book