मूल्य रहित पुस्तकें >> भूतनाथ - खण्ड 2 भूतनाथ - खण्ड 2देवकीनन्दन खत्री
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भूतनाथ - खण्ड 2 पुस्तक का ई-संस्करण
।। छठवाँ भाग ।।
पहिला बयान
जमानिया में इस बात की धूम मची हुई थी कि दारोगा साहब सरे बाजार चौमुहानी पर बेहोश पाये गये, उनका मुँह काला था और दाहिना कान कटा हुआ था, गले में जूतों का हार था तथा बदन पर भी कई जगह तलवार के जख्म लगे हुए थे। इस खबर से उनके दोस्त डर गये और दुश्मनों के चेहरों पर हँसी दिखाई दे रही थी। आदमियों के झुंड-के-झुंड उनकी अवस्था देखने के लिए चले जा रहे थे और जो देखता था वही खुश होता था। प्रायः सौ में नब्बे यही कहते थे कि ‘बहुत अच्छा हुआ ऐसों की ऐसी ही सजा होनी चाहिए’!
यहाँ के राजा साहब सीधे-सादे रमहदिल और धर्मात्मा थे सही मगर बिल्कुल ही बेपेंदी के लोटा थे। उनके आत्मीय मित्र और सम्बन्धी लोग समय पड़ने पर जो कुछ उन्हें समझा देते थे वे उसी पर विश्वास कर लेते थे मगर जब कोई उसके विपरीत समझा देता तो वह पहिला खयाल उनके दिल से निकल जाता, अपनी राय कुछ भी कायम नहीं कर सकते थे, और इस सबब से भी उनकी रिआया में एक तरह की बेचैनी रहा करती थी और दारोगा की खूब चल बनी थी। वह महाराज के नाक का बाल हो रहा था और महाराज समझते थे कि हमारा राज्य इसी दारोगा की बदौलत रौनक पर है। महाराज आसक्ती और आराम-पसन्द बहुत ज्यादे थे और दारोगा उनकी इस आदत को बढ़ाने के लिए हमेशा कोशिश किया करता था।
होश में आकर दारोगा ने न तो अपना चेहरा साफ किया और न गले में से जूते का हार निकाला, उसी सूरत और हालत में सीधे महाराज की तरफ चला। खबर पाकर उसके कई नौकर-सिपाही भी वहाँ आ गये थे जिनकी जुबानी यह सुन कर कि महाराज का डेरा खासबाग में गया है वह भी खासबाग की तरफ रवाना हुआ।
जमानिया बाजार की चौमुहानी पर पहुँचा देने के पहिले दारोगा को भैयाराजा होश में ले आये और आइने के जरिये से उसे बता दिया कि तेरी सूरत कैसी की गई है और यह भी कह दिया था कि ‘इसी सूरत में तू जमानिया बाजार की चौमुहानी पर छोड़ा जायगा जिसमें तमाम रिआया तेरी इस बेहूदी हालत को देखे, इसके बाद मैं भाई साहब के सामने पहुँच कर उसी जगह तुझसे बदला लूँगा’! इसके बाद दारोगा को बेहोश करके बाजार की चौमुहानी पर पहुँचा दिया गया था।
होश में आने के साथ ही दारोगा को भैयाराजा की बात याद आ गई और वह बिना कुछ जाँच किये सीधे महाराज की तरफ रवाना हो गया। खासबाग के दरवाजे तक तो उसके साथ सैंकड़ों आदमियों की भीड़ गई मगर आगे न जा सकी क्योंकि किसी ने नहीं रोका और वह सीधा महाराज के पास चला गया।
इस समय राजा साहब बाग के दूसरे दर्जे के नजरबाग में बैठे मुँह धो रहे थे और तीन-चार मुसाहब उनके इर्द-गिर्द बैठे तमाम शहर की झूठी-सच्ची खबरें सुना रहे थे। यकायक दारोगा उनके सामने जा पहुँचा और उनके पैरों पर गिरकर जार-जार रोने लगा। राजा साहब उसकी विचित्र सूरत देख कर हैरान हो गये और क्रोध में हो कर बोले, ‘‘यह तुम्हारी क्या दशा है? किसने तुम्हारी यह सूरत बनाई?’’
दारोगा : (गले से जूतों की माला निकाल कर) यह सब आपके भाई साहब भैयाराजा की बदौलत है, उन्होंने ही मेरी यह दुर्दशा की है।
राजा : भैयाराजा कहाँ हैं? ईश्वर उन्हें चिरायु करे। मैं तो उनके बिना अधमुआ हो रहा हूँ, अगर ईश्वर की कृपा से वे जीते-जागते हैं तो मेरे पास क्यों नहीं आते?
दारोगा : आपके सामने क्यों आवेंगे। वे आपसे बागी हो गये हैं और स्वयम् जमानिया के राजा बना चाहते हैं। अच्छा जो कुछ उनके जी में आवे करें। आप जाने वे जाने, पर मेरी यह दुर्दशा क्यों हो रही है? केवल इसीलिए कि मैं आपका खैरख्वाह हूँ और आपने राज्य का कुछ बोझ मेरे ऊपर डाल रक्खा है, इसी से तो लोग डाह करते हैं। खैर जो होना था हो गया।
अब आप जानिये और आपका राज्य जाने, अपना काम देखिये, मैं ऐसी बेइज्जती की नौकरी से इस्तीफा देता हूँ, मैं साधू और फकीरों की तरह जिन्दगी बिताने वाला, सिर्फ आपकी मुहब्बत में फँस कर बार-बार इस तरह की बेहुर्मती बर्दाश्त कर रहा हूँ, घर-गृहस्थी को छोड़ कर भी मुझे आराम नसीब नहीं।
राजा० : खैर कुछ कहो भी तो सही क्या मामला है? भैयाराजा तुम्हें कहाँ मिले और तुम्हारी ऐसी दशा उन्होंने क्यों की? आखिर इसका कुछ सबब भी तो होगा?
दारोगा : सबब तो मैं आपसे कह ही चुका कि वे जमानिया का राज्य लिया चाहते हैं और मेरे जीते जी उनकी यह आशा पूरी नहीं हो सकती।
राजा० : उनकी यह आशा क्यों नहीं पूरी हो सकती? बड़ी खुशी से मैं उन्हें यह राज्य देने के लिए तैयार हूँ। यद्यपि इस राज्य का मालिक मेरा लड़का मौजूद है मगर वह भी मेरी इच्छा के विरूद्ध कोई कार्रवाई न करेगा। यदि मैं भैयाराजा को यहाँ की गद्दी दे दूँगा तो गोपाल भी कुछ न बोलेगा।
दारोगा : तो आप यह भी करके देख लीजिये! जिसमें आपकी जान सलामत रहे मैं भी उसी में खुश हूँ, मगर मेरी जान क्यों आफत में डाली जाय और मेरे साथ ऐसा बुरा सलूक क्यों हो? अपने हाथ से जब आप कुँअरजी का हक मारने के लिए तैयार हैं तो दूसरे को बोलने की क्या गरज पड़ी है? मेरा हाल जो आप सुना चाहते हैं तो सुनिये मैं बयान करता हूँ। परसों भैयाराजा के भेजे हुए दो आदमी मेरे पास आये और एकान्त में मुलाकात करके इधर-उधर की बातें करने के बाद बोले कि ‘भैयाराजा ने आपको बुलाया है, वे आपसे कुछ बातें किया चाहते है’।
मैं यह सुनकर प्रसन्न हुआ कि ईश्वर की कृपा से भैयाराजा जीते हैं क्योंकि मुझको और आपको भी उनके मरने का विश्वास-सा हो रहा था, अस्तु मैंने सोचा अब विलम्ब करना ठीक नहीं है, जहाँ तक जल्द हो सके उनसे मिलना और समझा-बुझा कर उन्हें आपके पास ले आना चाहिए खैर उन आदमियों के इच्छानुसार संध्या हो जाने पर मैंने तीन घोड़े मँगवाये।
एक पर आप सवार हुआ और दो पर उन दोनों को सवार कराके उनके पीछे-पीछे चल निकला। यहाँ से सातकोस की दूरी पर जो सुन्दर घाटी’ नाम का आपका शिकारगाह है उसी में भैयाराजा को देख कर बहुत ही खुश हुआ और उनके पैरों पर गिर पड़ा उन्होंने मुझे उठा कर गले लगा लिया और अपने बगल में बैठा कर बातचीत करने लगे। उस समय दस-बारह आदमी नंगी तलवार लिये उनके पास मौजूद थे।
मुख्तसर यह कि मैंने उनसे यकायक गायब हो जाने का कारण पूछा, उनकी जुदाई से आपका जो कुछ हाल हो रहा है उसे कह कर बहुत कुछ समझाया-बुझाया और यहाँ आने के लिए जोर दिया। मगर मेरी बातों का उन पर कुछ असर न हुआ क्योंकि उनके दिल में राजा बनने का शौक उमड़ा था, अस्तु मेरी बात को काट कर वे मुझी को समझाने और लालच में डालने लगे।
मुझे तरह-तरह का सब्जबाग दिखा कर बोले कि ‘तुम राजा साहब और गोपालसिंह को मार कर मुझे जमानिया का राजा बनाओ, जो कुछ तुम कहोगे मैं तुम्हें दूँगा और जन्म-भर तुम्हारा गुलाम बना रहूँगा, इत्यादि।’ बातें तो बहुत लम्बी-चौड़ी हुईं मगर मैं आपसे संक्षेप में बयान करता हूँ, मैंने उन्हें फिर भी बहुत धर्म-अधर्म की बातें समझा कर कहा कि आप घर चले चलिए, महाराज बड़ी खुशी से आपको गद्दी देने के लिए तैयार होंगे और अगर वे ऐसा न करेंगे तो मैं आपसे वादा करता हूँ कि जिस तरह बनेगा मैं आपको राजा बनाऊँगा।
सब कुछ मैंने कहा और समझाया मगर उनके दिल में एक न बैठी, बोले’ कि ‘उन दोनों के जीते रहते मैं निष्कंटक राज्य न कर सकूँगा, हमेशा खुटका बना रहेगा, इसलिये उन दोनों को मार डालना उत्तम है’ इत्यादि बातें सुनते-सुनते मेरा जी ऊब गया और मैंने रंज हो उन्हें साफ जवाब दे दिया और कह दिया कि यह सब काम मेरे किये न होगा, मैं अपने मालिक के साथ नमकहरामी न करूँगा। मुझसे जवाब पाकर उन्हें क्रोध चढ़ आया और उन्होंने जो कुछ मेरे साथ किया उसका नमूना यही है जो कि आपने देखा। बहुत कुछ गाली-गुफ्तार के बाद मैं जबर्दस्ती बेहोश कर दिया गया और इस दर्जे को पहुँचाया गया।
दारोगा की बातें सुन कर राजा साहब को क्रोध चढ़ आया और भाई की मुहब्बत को एकदम भूल कर मारे क्रोध के काँपने लगे, एक चोबदार को कुँअर गोपालसिंह को बुला लाने की आज्ञा देकर दारोगा से बोले, ‘‘मैं नहीं जानता था कि भैयाराजा के पेट में ऐसा जहर भरा हुआ है! मैं उन्हें बहुत ही नेक और सूधा समझता था!’’
दारोगा : खयाल तो मेरा भी ऐसा ही था मगर परसों जो कुछ मैंने उनकी जुबान से सुना वह इस योग्य न था कि मेरे जैसा आदमी बर्दाश्त कर सके। छि: ऐसे सूधे भाई से और ऐसी संगदिली!!’’
राजा : ऐसे भाई का मुँह देखना न चाहिए! अरे मैं तो खुद उन्हें राज्य देने के लिए तैयार था, फिर ऐसी बदनीयती क्यों? बेचारे गोपालसिंह ने उनका क्या बिगाड़ा था!
दारोगा : कुछ न पूछिये, उनकी बातें सुन कर तो मेरे होश उड़ गये, मैंने जो कुछ कहा वह बहुत ही मुख्तसर में है, कहीं उनकी जुबान से निकली हुई सभी बातें आपसे कहूँ तो आपके दुश्मनों की तबीयत ही खराब हो जाय। मैं आपको रंज पहुँचाया नहीं चाहता, पर उन्होंने मुझे इस बात की भी धमकी दी कि मैं भैया के पास पहुँच कर अपने सामने तेरी दुर्गति कराऊँगा और तुझे बेईमान साबित करके जेलखाने की गन्दी कोठरी में जन्म-भर के लिए भेजवाऊँगा। अब देखिए परमात्मा क्या दिखाता है!
राजा : परमात्मा जो कुछ करेगा अच्छा ही करेगा। वह मेरे सामने आवें तो।
इसी तरह की बातें कह-कह कर दारोगा राजा साहब के गुस्से को बढ़ाता रहा, यहाँ तक कि कुँअर गोपालसिंह भी आ पहुँचे और दारोगा की अवस्था देख कर आश्चर्य करने लगे तथा अपने पिता को क्रोध में भरे देख कर बहुत ही बेचैन हुए। प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़ कर खड़े हो गये और हुक्म का इन्तजार करने लगे। राजा साहब ने मुहब्बत की निगाह से कुँअर साहब की तरफ देखा और अपने पास वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।
कुँअर : (कुर्सी पर बैठ कर दारोगा से जो अभी तक जमीन पर बैठ कर आँसू गिरा रहा था) यह क्या मामला है? आप ऐसी सूरत में क्यों दिखाई देते हैं?
राजा : तुम्हारे चाचा साहब ने इनकी यह दुर्दशा कर डाली है।
कुँअर : (आश्चर्य से) सो क्या! क्या चाचाजी की कुछ खबर मिली है?
राजा : हाँ, वे ईश्वर की कृपा से कुशलपूर्वक हैं मगर हमारे और तुम्हारे दुश्मन हो रहे हैं।
कुँअर : ऐसा क्यों? हम लोगों ने तो उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ा! वे तो मुझ पर बड़ी ही कृपा रखते है और आपसे भी उन्हें अतीव स्नेह है!
राजा : वह सब दिखौआ मामला था, नहीं तो इस बेचारे की ऐसी दुर्दशा वे न करते। इन्हें अपनी राय में मिलाना चाहते थे मगर जब इन्होंने हमारा पक्ष न छोड़ा तब इनके साथ ऐसा बर्ताव किया गया। यही सुनने के लिए तो हमने तुमको बुलाया है, (दारोगा की तरफ देख कर) हाँ, एक दफे वे सब बातें फिर बयान कर जाओ जिसमें गोपाल को भी मालूम हो जाय कि इनके चाचा साहब इन पर कैसे मेहरबान हैं।
राजा साहब की आज्ञा पाकर दारोगा ने पुन: वह किस्सा बयान किया जिसे पहिले सुना चुका था। उसे सुन कर कुँअर साहब हैरान हो गये, मगर उनके दिल में यह बात बैठी नहीं इसलिये दारोगा तथा अपने पिता को कुछ जवाब न दिया केवल यही सोचते रह गये कि यह किस्सा कहाँ तक होगा? यदि चाचा साहब मिलें तो बातों का मुकाबला करके कोई राय कायम की जाय।
राजा : (कुँअर से) कहो चुप क्यों हो? जो कुछ हाल था तुमने सुन ही लिया।
कुँअर : जी हाँ सुना मगर यह भी मालूम हुआ कि चाचाजी स्वयं आने वाले हैं। यदि वे आ गये तो उनकी बातें सुनने पर अपनी राय कायम कर सकूँगा।
राजा : बाबाजी १ जो कुछ कहते हैं उसमें रत्ती बराबर झूठ नहीं होगा! (१. उन दिनों दारोगा बह्मचारियों और साधुओं की तरह अपने आपको बनाये रहता था।)
कुँअर : सम्भव है।
राजा साहब ने अपने हाथ से दारोगा को जमीन पर से उठाया उसके आँसू पोंछे और अपने सामने ही सफाई करने का हुक्म दिया। उन दिनों यह नियम था कि जब राजा साहब का डेरा खासबाग में जाता था तब दारोगा को भी उसी बाग के नियत स्थान में रहना पड़ता था। अस्तु राजा साहब ने उसे दिलासा देकर और समझा-बुझा कर उसके डेरे में भेजा और स्वयं स्नान इत्यादि की फिक्र में पडे। कुँअर गोपालसिंह वहाँ से उठ कर महल में गये और अपनी माता से मिल कर दारोगा का सब हाल जो कुछ किस्सा उसने दुर्दशा का कहा था वह भी बयान किया। जवाब में रानी साहिबा ने कहा कि दारोगा ने भैयाराजा के विषय में जो कुछ किस्सा कहा है वह सब झूठ है, असल में कसूर दारोगा ही का है, वह खुद भैयाराजा को मारने की फिक्र में पड़ा हुआ है।
इतना कह रानी साहेबा ने वह सब हाल जो बहुरानी की जुबानी सुना था कुँअर गोपालसिंह से बयान किया जिसे सुन कर वे बहुत ही हैरान हुए, यद्यपि मुँह से कुछ न बोले मगर दिल में बड़े गौर के साथ सोचने लगे कि असल में भेद क्या है और बात कौन-सी सच है।
भोजन इत्यादि से छुट्टी पाकर कुंअर गोपालसिंह पुनः अपने पिता के पास गए और देर तक वहाँ बैठ कर बातचीत करने बाद हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘इधर बहुत दिनों से इन्द्रदेवजी से मुलाकात नहीं हुई, वे भी यहाँ न आए, न-मालूम क्या सबब है, उनसे मिलने को दिल चाहता है, आज्ञा हो तो एक दिन के लिए उनके पास जाऊँ।’’ महाराज ने यह कह इन्द्रदेव के पास जाने की इजाजत दी कि ‘जाओ मगर होशियार रहना। क्योंकि तुम्हारा चाचा तुम्हारे खून का प्यासा हो रहा है, ऐसा न हो कि कहीं रास्ते में मिले और तुम्हें धोखा दे। अपने साथ आदमी और सवार काफी तौर पर ले जाना’।
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