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भूतनाथ - खण्ड 2

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8361
आईएसबीएन :978-1-61301-019-8

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भूतनाथ - खण्ड 2 पुस्तक का ई-संस्करण

छठवाँ बयान


हम अपने पाठकों का ध्यान भूतनाथ उपन्यास के तीसरे भाग के पहिले और दूसरे बयान की तरफ ले जाते हैं जिसमें भूतनाथ से चन्द्रशेखर का मिलना, नागर के यहाँ बाबू साहब (रामलाल) की मौजूदगी में भूतनाथ का आना, बाबू साहब से तथा भूतनाथ से बातें होना, और उसी जगह पर पुन: किसी आदमी का पहुँच कर भूतनाथ के आगे लिफाफा फेंक कर भाग जाना इत्यादि लिख गया है।

उस बयान के पढ़ने से यह मालूम ही हो चुका होगा कि उस समय नानक की माँ रामदेई से भूतनाथ का संबंध हो चुका था और बाबू साहब (रामलाल) को भूतनाथ का साला कहा जाता था। मगर भूतनाथ का और बाबू साहब का उन दिनों मुद्दत से सामना नहीं हुआ था और इसी से भूतनाथ के मामलों से बाबू साहब को बहुत कम वाकफियत थी। तथापि बाबू साहब लुक-छिप कर अपनी बहिन रामदेई से मिलने के लिए अक्सर जाया करते थे और वह भी रुपये-पैसे से इनकी मदद खुले दिल के साथ किया करती थी।।

बाबू साहब यद्यपि डरपोक आदमी थे मगर ऐयाश जरूर थे और दो-चार बदमाश-लुटेरों को भी अपने पाख रक्खा करते थे। इन्हीं दिनों इन्हें एक और भी गैबी मदद मिल गई थी जिसके कारण इनका दिमाग कुछ बढ़ने लग गया था जो आखिर यहाँ तक बढ़ा कि उस घटना के (जिसका जिक्र ऊपर कर आये हैं) थोड़े ही दिन बाद ये बहादुर बन गये, ऐयारी का दम भरने लगे और भूतनाथ के दुश्मन बन गए। अब सुनिए कि वह गैबी मदद क्या थी और उसके सबब से रामलाल की कैसी अवस्था बदली तथा चन्द्रशेखर के कारण भूतनाथ को कैसी परेशानी उठानी पड़ी।

भूतनाथ के दूसरे भाग के नौवें बयान में हम लिख आये हैं कि भूतनाथ ने अपने बारह शागिर्दों के साथ बहुत ही बुरा बर्ताव किया और उन्हें कैद करके एक गुफा में डाल दिया मगर जब बाहर से लौट कर पुन: उन सभों को देखने के लिए गया तो किसी को भी वहाँ न पाया।

असल में उन शागिर्दों को भी इन्द्रदेव ही ने घाटी के अन्दर-ही-अन्दर किसी गुप्त रास्ते से पहुँच कर छुड़ा दिया था मगर ऐसे ढंग से कि उन शागिर्दों को इस बात का कुछ भी गुमान न हुआ कि उनको छुड़ाने वाला कौन है, हाँ छुड़ाने वाले ने इतना जरूर कह दिया कि ‘‘मैं प्रभाकरसिंह की आज्ञा से तुम लोगों को छुड़ाता हूँ, अब मुनासिब है कि तुम लोग भूतनाथ से अपना बदला लो और उस तलवार को भी छीन लो जिसके सबब से उसने तुम लोगों पर फतह पाई है। वह तलवार असल में प्रभाकरसिंह की है, उसका जख्म जरा-सा भी जिसको लग जाता है वह बेहोश हो जाता है, मगर उस पर उसका असर कुछ भी नहीं होता जिसके पास उसके जोड़ की अँगूठी होती है। वह अँगूठी भी जो लोहे की-सी है भूतनाथ की उंगली में तुम देखोगे। यह सब कुछ करना पर भूतनाथ को जान से मत मारना नहीं तो हम तुम लोगों को भी जीता न छोड़ेंगे। हमने तुम लोगों को उसके फन्दे से छुड़ा कर जो कुछ तुम सभों पर अहसान किया है उसका बदला यही चाहते हैं कि भूतनाथ को जान से मत मारना, तकलीफ जितनी तुम्हारे जी में आवे और जो तुमसे हो सके देना।’’ इस बात को उन लोगों ने बड़ी खुशी से मंजूर कर लिया था और अपने छुड़ाने वाले को दिल से धन्यवाद दिया था।

केवल इतना ही नहीं, चलती समय महात्मा रूपी इन्द्रदेव ने उन ऐयारों को मदद की तौर पर कुछ अशर्फियाँ और जवाहिरात भी दिया और उनके सामने से देखते-ही-देखते कहीं गायब हो गये।

इस तरह पर भूतनाथ के पंजे से रिहाई पाकर वे ऐयार लोग उद्दंड हो गए और भूतनाथ को सताने की फिक्र करने लगे।

हम कई जगह लिख आए हैं कि ‘‘भूतनाथ ने अपने रहने के लिए कई स्थान बना रक्खे थे और सभी जगह वह थोड़ी दौलत भी रखता था।’’ उन सब स्थानों और खजानों का हाल उन शागिर्दों को मालूम था अस्तु सबके पहिले उन लोगों ने भूतनाथ के खजानों पर धावा किया और जहाँ तक बन पड़ा उन्हें अपने कब्जे में कर लिया, इसके बाद अपने रहने के लिए एक सुयोग्य स्थान नियत करके और आपस में मिलने-जुलने का इशारा बाँध कर जुदा हुए और कोई नई कार्रवाई करने की फिक्र में लगे। उन लोगों ने बहुत जल्द भूतनाथ का पता लगा लिया, तब सूरत बदले हुए मौके से उसका पीछा करने लगे तथा इस बात की भी फिक्र में लगे कि भूतनाथ के बाकी शार्गिदों को भी अपना हाल सुना कर भड़कावे और अपना साथी बनावें। आखिर दो ही चार रोज के हेर-फेर में उन लोगों ने भूतनाथ के कुछ शागिर्दों को जो उन लोगों में से कई के रिश्तेदार भी थे तोड़ कर अपना साथी बना लिया जिसकी खबर भूतनाथ को कई दिनों तक न लगीं। इनमें से दो शागिर्दों के नाम विजय और बहादुर थे। बहादुर भूतनाथ का बहुत ही विश्वासपात्र था अस्तु बहादुर के इस मण्डली में मिलने के बाद सभी की राय के मुताबिक वह पुन: भूतनाथ के पास गया और समय का इन्तजार करने लगा। अपने विश्वासपात्र ऐयारों का साथ छूट जाने और बेइन्तहा दौलत कब्जे से निकल जाने के बाद जब भूतनाथ ने वह घाटी छोड़ी तो बहुत दु:खी और उदास होकर पुन: अपने मालिक रणधीरसिंह के पास जाने और स्थिर भाव से वहीं रहने का विचार किया। उसने बहुत कुछ बातें बनाने और माफी माँगने के बाद उन्हें प्रसन्न करके वह उनके पास रहने लगा जिससे उसके बागी शागिर्दों को यकायक उसे सताने और उससे बदला लेने का मौका न मिला। मगर वे लोग उसकी धुन में निरन्तर लगे ही रहे।

एक दिन भूतनाथ मिर्जापुर से निकल कर अपनी स्त्री रामदेई से मिलने के लिए काशी की तरफ रवाना हुआ। उसे इस बात की कुछ भी खबर न थी कि उसके बागी शागिर्द भी उसकी धुन में लगे हुए हैं और सफ़र में वह जहाँ-जहाँ टिका या ठहरा करता था प्राय: उन सभी जगहों पर रूप बदल कर उन लोगों ने दखल दिया हुआ है।

भूतनाथ जब काशी जाया करता था तो एक बाग में जो करीब-करीब सफर के मध्य में पड़ता था दो-चार घण्टे के लिए जरूर ही ठहरा करता था बल्कि अक्सर वहाँ रसोई भी बनाया करता था, क्योंकि उस बाग के पास ही में एक छोटा-सा बाजार भी था जहाँ सब सामान मिल सकता था। उस बाग के माली लोग लालचवश भूतनाथ की खिदमत किया करते थे और सीधा तथा बरतन-पानी इत्यादि सुभीते से जुटा दिये करते थे। वह बाग ‘रामबाग’ नाम से मशहूर था।

वह बाग किसी रईस या जमींदार का न था बल्कि कई खटिक और मालियों का था जो उसका फल-फूल तथा मेवा और दरख्त वगैरह बेच कर फायदा उठाते थे और प्राय: उसमें रहा भी करते थे। भूतनाथ के दो शागिर्दों ने भी उसी में जाकर नौकरी की और रहने लगे। दोपहर का समय था जब सफर से थके हुए भूतनाथ ने आकर उस बाग में आराम किया और नहा-धो कर रसोई बनाने की फिक्र में लगा। मालियों ने बस सामान मोहैया कर दिया और भूतनाथ रसोई बना कर भोजन करने के बाद वहाँ से रवाना हुआ। वहाँ के मालियों में से एक आदमी किसी काम का बहाना करके उसके साथ ही बातें करता हुआ उसी तरफ रवाना हुआ जिधर भूतनाथ जाता था।

थोड़ी दूर जाने के बाद भूतनाथ को नशा-सा चढ़ आया, जमीन घूमती हुई मालूम होने लगी और पैरों में लड़खड़ाहट पैदा हो गई। भूतनाथ ने घूमकर अपने साथ आते हुए माली की तरफ देखा और कहा, ‘‘क्या आज तुम लोगों ने मेरे खाने के समान में नशीली चीज मिला दी है?’’

माली : (साथ से कुछ अलग हट कर) जी हाँ, आज कुछ ऐसा ही मामला हुआ है। इस बाग के माली तो सब तो आपके खैरखाह और ताबेदार हैं, उन बेचारों पर किसी तरह का शक आपको न करना चाहिए, मगर मैं जरूर आपका दुश्मन हूँ आप ही से बदला लेने की नीयत से मैंने क्षत्रिय होकर भी उन शूद्र मालियों की नौकरी की थी। आज मेरा मनोरथ सिद्ध हुआ और अपने भोजन की सामग्री में दवा मिलाने का मुझे मौका मिला। (हँस कर) आप बहुत दिनों से दूसरे के लिए जहरीले पेड़ लगा रहे थे जिसमें अब फल लगने शुरू हो गए हैं और वे फल अब आप ही को चखने पड़ेंगे।

भूत० :(क्रोध से उस माली की तरफ देख कर) तू कौन है, मैं तेरा राम सुना चाहता हूँ।

माली : हाँ, तुम बार-बार मेरे हाथों से सताये जाओगे इसलिए तुम्हें मेरा नाम जरूर याद कर लेना चाहिए जिसे मैं खुशी से बताने के लिए तैयार हूँ, मेरा नाम है ‘चन्द्रशेखर’।

भूत० :तुम किसके नौकर हो?

चन्द्रशेखर : अपने दिल के।

भूत० :मेरे साथ दुश्मनी करने का कारण?

चन्द्रशेखर : तुम्हारी बदनीयती और बेईमानी।

भूत० :तुम्हारा मैंने क्या बिगाड़ा है?

चन्द्रशेखर : इज्जत और हुर्मत।

भूत० :(चिढ़ कर) साफ-साफ और सीधी तरह से क्यों नहीं बातें करता।

चन्द्रशेखर : इसीलिए कि तुम सीधी तरह से सीधे होने वाले नहीं हो।

मारे गुस्से के भूतनाथ पेचोताब खाने लगा और उसने जोश में आकर खंजर के कब्जे पर हाथ रक्खा पर कुछ कर न सका। उसका क्रोध बेफायदे था और उसका गुस्सा व्यर्थ, क्योंकि अब उस पर बेहोशी का पूरा असर हो चुका था, नतीजा यह हुआ कि खंजर खेंचते ही वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा।

आने-जाने वाले मुसाफिरों की निगाह से बचने का खयाल करके चन्द्रशेखर उसी समय भूतनाथ को उठाकर सड़क से बहुत दूर एक नाले में ले गया जहाँ बिल्कुल सन्नाटा था और किसी के आने की भी आशा न थी।

चन्द्रशेखर ने पहिले तो उस अँगूठी और तलवार पर कब्जा किया जो भूतनाथ ने प्रभाकरसिंह से ली थी, इसके बाद उसका ऐयारी का बटुआ ले लिया, अन्त में उसके कपड़े भी उतार लिए तथा और जो कुछ उसके पास था लेकर केवल लंगोट छोड़ दिया और दूसरी तरफ का रास्ता लिया।

संध्या होने के बाद जब भूतनाथ होश में आया तो उसने तो अपने को बड़ी दुर्दशा में पाया, कपड़ों के चले जाने का दु:ख तो साधारण था परन्तु बेइज्जती होने और बटुए तथा तलवार के चले जाने का उसे बड़ा ही रंज हुआ। थोड़ी देर तक कुछ चिन्ता के करने बाद वह उठ खड़ा हुआ और क्रोध से होंठ चबाता हुआ अपने अड्डे की तरफ रवाना हुआ।

चन्द्रशेखर भूतनाथ के दुश्मन शागिर्दों का दोस्त तथा बहुत ही तेज और होशियार ऐयार था। इसका असली नाम कुछ दूसरा ही था परन्तु भूतनाथ के लिए इसने अपना बनावटी नाम चन्द्रशेखर रख लिया था। जब वह भूतनाथ को लूट कर अपने दोस्तों के पास गया तो बहुत ही खुश था क्योंकि भूतनाथ का ऐयारी का बटुआ उसके कब्जे में था और उसमें उसके मतलब की बहुत-सी चीजें हाथ लगी थीं। नागर की लिखी हुई चीठियाँ भी उसमें मिली थीं जिसमें से कई भूतनाथ की चीठी के जवाब में लिखी हुई थीं और जिनके पढ़ने से इस बात का पता लगता था कि उन दोनों में से किस तरह पर किस मामले की बातें हो रही हैं, तथा भूतनाथ कैसे-कैसे दुर्घट मामलों के फेर में पड़ा हुआ है।

यों तो वे लोग भूतनाथ के शागिर्द ही थे और उसके बहुत-से मामलों में जानकार थे परन्तु इन चीठियों के पढ़ने से उन्हें और भी बहुत-सी बातें ऐसी मालूम हो गईं जिनका उन्हें कुछ भी गुमान न था और जिनका प्रकट होना भूतनाथ के लिए बहुत ही बुरा था।

भूतनाथ को अपनी अवस्था पर बहुत ही दु:ख हुआ और वह मारे क्रोध के बेतरह पेचताब खाने लगा। उसे उस अँगूठी तलवार तथा अपने ऐयारी के बटुए के चले जाने का बड़ा ही सदमा हुआ क्योंकि उसमें तरह-तरह की अनूठी चीजें भरी हुई थीं। खास करके नागर की चीठियों का जाना उसने अपने हक में बहुत ही बुरा सगुन समझा और इस बात का निश्चय कर लिया कि यदि मेरा यह दुश्मन किसी तरह मेरे हाथ लगेगा तो उसे बिना जान से मारे कदापि न छोड़ूँगा। यद्यपि उसे इस बात का निश्चय न था कि उसको सताने वाला चन्द्रशेखर कौन है तथापि देर तक सोचने के बाद उसने यही निश्चय किया कि उसके इन बिगड़ैल शागिर्दों ही में कोई है जिन्हें उसने बहुत ही बेइज्जत किया था।

गुस्से में और होठों से अपने को चबाता हुआ भूतनाथ वहाँ से उठा और जंगल-ही-जंगल लोगों की नजरों से अपने को बचाता हुआ अपने अड्डे की तरफ रवाना हुआ और वहाँ पहुँच कर फिर से उसने अपना सामान दुरुस्त किया।

उन शागिर्दों के निकल जाने पर भी भूतनाथ के पास अभी कई शागिर्द हैं जो दिलोजान से भूतनाथ का काम करते हैं और हर तरह से उसका साथ देने के लिए तैयार रहते हैं परन्तु उसके विषय में भी भूतनाथ को खुटका बना ही रहता है और इस बात का बराबर डर रहता है कि कहीं उसके बागी शागिर्द लोग इन नेक शागिर्दों को भी भड़काकर बेदिल न कर दें। इस ख्याल से वह अपने खैरख्वाह शागिर्दों के साथ बहुत ही अच्छा और मेहरबानी का बर्ताव करता है और अपने को उन पर ऐसा नेक साबित करता है कि जिससे उनको इस बात का विश्वास न हो कि भूतनाथ ने अपने अमुक साथियों के साथ वास्तव में बुरा बर्ताब किया होगा।

भूतनाथ के बागी शागिर्दों ने उसे बड़ा ही तंग किया और कई मरतबा उसकी बेतरह बेइज्जती की जिससे वह एकदम घबरा गया और अपने बचाव की फिक्र करने लगा मगर उन शागिर्दों से वह अपने को किसी तरह छिपा नहीं सकता था और वे लोग बार-बार उसके पास धमकी की चीठियाँ भेजा करते थे और अपने नाम की जगह ‘सर्वगुण-सम्पन्न चाँचला सेठ’ इत्यादि लिखा करते थे।

तीसरे भाग के दूसरे बयान में जैसा कि हम लिख आये हैं कि नागर के मकान से भूतनाथ के सामने बाबू साहब ने चन्द्रशेखर का हाल बयान करके कहा था कि मैंने उसे बरना के किनारे देखा था, उसके साथ बिमला और प्रभाकरसिंह भी थे। असल में बाबू साहब ने वह बात झूठ नहीं कही थी। प्रभाकरसिंह तथा कला और बिमला का रूप उन्हीं शागिर्दों ने धरा था और उन बाबू साहब तथा नागर से मुलाकात करके भूतनाथ को कोई नया धोखा देना चाहते थे।

कुछ ही दिन बाद भूतनाथ के बागी शागिर्दों ने भूतनाथ के साले बाबू साहब को भी अपनी मण्डली में मिला लिया, इस खयाल से कि वह अपनी बहिन रामदेई से मिला-जुला करता है अतएव उनके जरिए से बहुत कुछ हालचाल मिला करेगा। इसके अतिरिक्त खुद बाबू साहब भी भूतनाथ से रंज रहा करते थे क्योंकि उनका नाता भूतनाथ से धर्मविरुद्ध होने के कारण लज्जा का था। संक्षेप में वह थोड़ा-सा हाल हमने केवल सिलसिला मिला देने के लिए लिख दिया, आगे चलकर मौके-मौके से हमारे पाठकों को इस बात का पता लगता रहेगा कि अपने बागी शागिर्दों के बदौलत भूतनाथ को कैसी-कैसी तकलीफें उठानी पड़ीं।

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