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भूतनाथ - खण्ड 1

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8360
आईएसबीएन :978-1-61301-018-1

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भूतनाथ - खण्ड1 पुस्तक का ई-संस्करण

।। दूसरा भाग ।।

 

पहिला बयान

रात बहुत कम बाकी थी जब बिमला और इन्दु लौट कर घर में आईं जहाँ कला को अकेली छोड़ गई थीं। यहाँ आते ही बिमला ने देखा कि उनकी प्यारी लौंडी चन्दो जमीन पर पड़ी मौत का इन्तजार कर रही है, उसका दम टूटा ही चाहता है, आँखें बन्द हैं, और अधखुले मुँह से रुक कर साँस आती–जाती है, बीच-बीच में हिचकी भी आ जाती है। कला झारी में गंगाजल लिए उसके मुँह में शायद टपकाना चाहती है।

यह अवस्था देख कर बिमला घबड़ा गई और ताज्जुब करने लगी कि उसकी इस थोड़ी ही गैरहाजिरी में यह क्या हो गया और चन्दो यकायक किस बीमारी में फँस गई जो इस समय उसकी जिन्दगी का चिराग इस तरह टिमटिमा रहा है बल्कि बुझना ही चाहता है। बिमला ने घबरा कर कला से पूछा। ‘‘यह क्या मामला है और कम्बख्त को हो क्या गया है!!’’

कला : मुझे इस बात का बड़ा ही दुःख है कि चन्दो अब इस असार संसार को छोड़ना ही चाहती है, अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए इस कम्बख्त ने जहर खा लिया है और जब रग-रग में जहर भीन गया है तब यहाँ आकर सब हाल कहा है। मैंने जहर उतर जाने के लिए दवा इसे खिलाई है मगर कुछ फायदा होने का रंग नहीं है क्योंकि देर बहुत हो गई, कुछ और दवा पहुँचती तो अच्छा था।

बिमला : राम-राम, मगर यह इस कम्बख्त को सूझी क्या? और इसने कौन-सा पाप किया है जिसके लिए ऐसा प्रायश्चित करना पड़ा!

कला : बहिन, पाप तो इसने निःसन्देह बहुत भारी किया है, जिसका प्रायश्चित इसके सिवा और कुछ यह कर ही नहीं सकती थी, परन्तु मुझे इसके मरने का दुःख अवश्य है। जो काम इसने किया है उसके करने की आशा इससे कदापि नहीं हो सकती थी और जब इससे ऐसा काम हो गया तो किसी और लौंडी पर अब हम लोग इतना विश्वास भी नहीं कर सकतीं।

हाँ, लालच में पड़ कर इस चुड़ैल ने हम दोनों बहिनों का असल हाल गदाधरसिंह को बतला दिया और कह दिया कि तुमसे बदला लेने के लिए यह सब खेल रचे गए हैं, और साथ ही भूतनाथ का बटुआ भी यहां से ले जाकर उसे दे दिया। परन्तु इतना करने पर जब भूतनाथ ने इसे सूखा हो टरका दिया तब इसे ज्ञान उत्पन्न हुआ और इस ग्लानि में आकर जहर खा लिया। जब जहर अच्छी तरह तमाम बदन में भीन गया तब यह हम दोनों से मिलने और अपना पाप कहने के लिए यहाँ आयी थी, इसे यहाँ आये बहुत देर नहीं हुई।

बिमला: (हाथ से अपना माथा ठोंक कर) हाय हाय हाय, इस कमबख्त ने तो बहुत ही बुरा किया! क्या जाने यह इससे और भी कुछ ज्यादे कर गुजरी हो! जिस भेद को छिपाने के लिए तरह-तरह की तरकीबें की गई थीं उस भेद का आज इसने सहज ही में सत्यानाश कर दिया।

हाय, अब भूतनाथ भी जरूर हमारे कब्जे से निकल गया होगा। जब उसे ऐयारी का बटुआ मिल गया तब वह उस कैदखाने के भी बाहर हो गया तो आश्चर्य नहीं। वह बड़ा ही धूर्त और मक्कार है जिसके फेर में पड़ कर चन्दो ने हम लोगों को बर्बाद कर दिया और खुद भी दीन-दुनिया दोनों में से कहीं के लायक न रही!!

कला: बेशक ऐसा ही है, यद्यपि इस बात की आशा नहीं हो सकती कि भूतनाथ इस घाटी के बाहर हो जायगा तथापि कैदखाने से बाहर निकल जाना ही कम घबराहट की बात नहीं है, और इससे भी ज्यादे बुरी बात यह हुई कि हमारा भेद उसे मालूम हो गया। हाय ऐसी रात में किसकी हिम्मत पड़ सकती है कि अकेले वहाँ जाकर भूतनाथ का हाल मालूम करे? अगर वह छूट गया होगा तो जरूर उसी जगह कहीं छिपा होगा, ताज्जुब नहीं कि सूरज निकलने तक वह कोई आफत...

बिमला: मेरा भी यही खयाल है! (चन्दो के पास जाकर) हाय, शैतान की बच्ची, तूने यह क्या किया! हाय, अगर तू जीती रहती तो तुझसे पूछती कि दुष्ट, तूने इतना ही किया कि कुछ और?

चन्दो यद्यपि मौत के पंजे में फँसी हुई थी और उसकी जान बहुत जल्द निकलनेवाली थी मगर वह कला और बिमला की बातें सुन रही थी, यद्यपि उसमें जवाब देने की ताकत न थी, उसने बिमला की आखिरी बात सुन कर आँखे खोल दीं, बिमला की तरफ देखा और इस प्रकार मुँह खोला मानो कुछ कहने के लिए बेचैन हो रही है, बहुत उद्योग कर रही है मगर उसमें इतनी शक्ति न रही, उसकी आँखें पुन: बन्द हो गईं और अब पूरी तरह से बेहोश हो गई। देखते-देखते दस-पाँच हिचकियाँ लेकर उसने बिमला और कला के सामने दम तोड़ दिया।

अब कला और बिमला को यह फिक्र पैदा हुई कि पहिले इसे ठिकाने पहुँचाया जाय या चलकर भूतनाथ की खबर ली जाय, मगर इन्दुमति की राय हुई इन दोनों कामों के पहिले बँगले की हिफाजत की जाय (जो इस घाटी के बीच में था और जहाँ प्रभाकरसिंह पहिले-पहिले पहुँचे थे) क्योंकि उसमें बहुत-सी जरूरी चीजें रक्खी हुई हैं और साथ ही उसकी जाँच करने से बहुत-से भेद भी मालूम हो सकते हैं।

इन्दु की इस राय को बिमला और कला ने बहुत पसन्द किया और तीनों औरतें हर्बों और जरूरी चीजों से अपने को सजाकर गुप्त राह से बँगले की तरफ रवाना हुईं।

इस बँगले का हाल हम पहिले खुलासा तौर पर लिख चुके हैं, इसके दरवाजे ऐसे न थे कि बन्द कर देने पर कोई जबर्दस्ती या सहज ही में खोल सके तथा और बातों में भी वह एक छोटा-मोटा तिलिस्म या कारीगरी का खजाना ही समझा जाता था। यद्यपि वह बँगला ऐसी हिफाजत की जगह में था जहाँ बदमाशों का गुजर नहीं हो सकता था तथापि उसकी हिफाजत के लिए लौंडियाँ मुकर्रर थीं जो मर्दानी सूरत में पहरेदारी के कायदे से उसके चारों तरफ बराबर घूमा करता थीं।

कला, बिमला और इन्दु ने वहाँ पहुँच कर उस बँगले के दरवाजे बन्द करने शुरू कर दिये।

पहिले बाहर से भीतर आने का रास्ता रोका, इसके बाद कई जरूरी चीजे उसमें से निकालने के बाद आलमारियों में ताले लगाये और तब भीतर के कमरे सब बंद कर दिये गये। इतना करके एक छोटे गुप्त रास्ते को बंद करती हुई बाहर निकली ही थीं कि एक पहरेदार लौंडी के जोर से चिल्लाने की आवाज आई।

तीनों औरतें कदम बढ़ाती हुई बँगले के सदर दरवाजे पर पहुँची जहाँ नाममात्र के लिए पहरा रहा करता था या जिधर से लौंडी के चिल्लाने की आवाज आई थी। वह लौंडी मर्दाने भेष में थी और घबराई हुई मालूम पड़ती थी। बिमला ने पूछा- ‘‘क्या मामला है, तू क्यों चिल्लाई?’’

लौंडी: मेरी रानी, देखो उस पहाड़ी की तरफ जिधर कैदखाना है और जहाँ भूतनाथ कैद है कई जगह आग की धूनी जल रही है। मालूम होता है मानो बहुत-से आदमियों ने आकर उस पहाड़ी पर दखल जमा लिया है। अगर ये आग धूनिया आपकी तरफ से नहीं सुलगाई गई हैं तो जरूर किसी आने वाली आफत की निशानी हैं और मुझे विश्वास है कि आपने इसके लिए कोई हुक्म नहीं दिया होगा।

बिमला: (ताज्जुब के साथ उस पहाड़ी की तरफ देख कर) बेशक यह नई बात है, मैंने ऐसा करने के लिए किसी को हुक्म नहीं दिया मगर घबराने की कोई बात नहीं है, जहाँ तक मैं समझती हूँ यह भूतनाथ की कार्रवाई है क्योंकि चन्दो की मदद से भूतनाथ कैद से छूट गया और हम लोग उसी के लिए बंदोबस्त कर रही हैं।

लौंडी: (ताज्जुब के साथ) हैं, भूतनाथ कैदखाने से छूट गया! और चन्दो बीवी की मदद से!!

बिमला : हाँ, ऐसी ही बात है, किसी दूसरे वक्त इनका खुलासा हाल तुम्हें मालूम होगा इस समय मैं उसी पहाड़ी पर जाती हूँ और भूतनाथ को गिरफ्तार करती हूँ।

कला : मगर बहिन, मैं इस राय के विरुद्ध हूँ!

बिमला : क्यों?

कला : देखो, सोचो तो सही कि इस तरह कई जगहों पर आग सुलगाने या बालने से भूतनाथ का क्या मतलब है?

बिमला : (कुछ सोच कर) जहाँ तक मैं समझती हूँ इस कार्रवाई से भूतनाथ का यही मतलब होगा कि हम लोगों को धोखा देकर उस तरफ बुलावे और किसी जगह आड़ में छिपे रह कर हमारे ऊपर वार करे।

कला : बेशक, क्योंकि आग के पास पहुँच कर हम लोग उसे ढूँढ़ न सकेंगे, दस्तूर की बात है कि जो कोई सुलगती हुई आग के पास रहता है वह सामने की किसी चीज को नहीं देख सकता। वहाँ तो कई जगह पर आग सुलग रही है, उस बीच में जाकर हम लोग किसी तरह भी निगाह करके दुश्मन को नहीं देख सकेंगे।

बिमला : ठीक है मगर हम लोग पर इस समय उसका कोई हरबा काम नहीं कर सकता।

कला : तथापि हर तरह से बच के काम करना चाहिए, विशेष करके इसलिए कि इन्दु बहिन हमारे साथ हैं, यद्यपि ये यहाँ के सब भेदों को जान गई हैं और हम लोगों का साथ हर तरह से दे सकती हैं।

इन्दु : मेरे लिए कोई तरद्दुद न करो, मैं तुम लोगों के साथ बखूबी चल सकती हूँ मगर मैं यह पूछती हूँ कि ऐसा करने की जरूरत क्या है और इस काम में जल्दी किये बिना हर्ज ही क्या होता है? सम्भव है कि भूतनाथ ने वहाँ ऐयारी का कोई जाल फैलाया हो और इस रात के समय वह कुछ कर भी सके। थोड़ी-सी तो रात रह गई है, अच्छा होता अगर यह बिता दी जाती। प्रात:काल हम लोग देखेंगे कि भूतनाथ कहाँ जाता और क्या करता है। यद्यपि वह स्वतंत्र हो गया है मगर इस घाटी के बाहर नहीं जा सकता और हमारे मकान तथा बँगले में भी उसकी गुजर नहीं हो सकती।

कला: मैं भी राय को पसन्द करती हूँ, चलो बँगले के ऊपर छत पर चल कर बैठें।

बिमला : अच्छा चलो।

इन्दु० : (चलते हुए) मगर ताज्जुब है कि इतनी जल्द भूतनाथ को आग सुलगाने के लिए इतना सामान कैसे मिल गया!

कला : बहिन, यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है!

हम लोगों की जरूरत के लिए जंगल की लकड़ियाँ बहुत बटोरी गई थीं जिनके बहुत बड़े-बड़े दो-तीन ढेर वहाँ कैदखाने के पास ही में लगे हुए थे। मालूम होता है कि उन्हीं लकड़ियों से भूतनाथ ने काम किया है।

इन्दु० : हाँ, तब तो उसे बहुत सुभीता मिल गया होगा, मगर क्या तुम खयाल कर सकती हो कि भूतनाथ की यह कार्यवाई किसी और मतलब से भी हुई है?

बिमला : मैं नहीं कह सकती, सम्भव है कि उसका और ही कोई मतलब हो, खैर देखा जाएगा।

इसी तरह की बातें करती तथा दरवाजों को खोलती और बन्द करती हुई तीनों बहिनें बँगले की छत पर चढ़ गईं और एक अच्छे ठिकाने बैठ कर उस तरफ देखने और सुबह का इन्तजार करने लगीं।

उस समय कला और बिमला से बहुत बड़ी भूल हो गई, क्योंकि वे तीनों अद्भुत बँगले की हिफाजत के लिए जब आईं तो उन्होंने रोशनी का कोई खास बन्दोबस्त नहीं किया, बँगले का इन्तजाम करने के बाद वे तीनों बहिनें जब पहरे वाली लौंडी के चिल्लाने की आवाज सुनकर सदर दरवाजे पर गईं तब उनके पास किसी तरह की रोशनी मौजूद न थी और न इस काम के लिए रोशनी की जरूरत ही थी, परन्तु जब वे पहरा देने वाली लौंडी से बातचीत करतीं और पहाड़ के ऊपर वाली रोशनी की तरफ देखती रहीं तब एक आदमी जो अपने को स्याह कपड़े से छिपाये हुए था आड़ देता हुआ सदर दरवाजे के पास पहुँचा और न मालूम किस ढंग से उस बंगले के अन्दर दाखिल हो गया क्योंकि वे तीनों बहिन और पहरा देने वाली लौंडी पहाड़ी की रोशनी को ताज्जबु के साथ देखती हुई सदर दरवाजे से कुछ आगे की तरफ बढ़ गईं थीं और उन्हें इस बात का कुछ खयाल न था कि दुश्मन बगल में आ पहुँचा और अपना काम किया चाहता है! खैर वे तीनों बँगले के अन्दर घुसीं तो दरवाजा बंद करती हुई छत पर चढ़ गईं जैसाकि ऊपर लिखा जा चुका है।

वे तीनों बहिनें उन कई जगह जलती आग को रोशनियों को गौर से देख रही थीं जो अब धीरे-धीरे ठंडी हो रही थीं।

कला : अब आग बिलकुल ठण्डी हो जायेगी।

बिमला : हाँ और इससे मालूम होता है कि भूतनाथ कहीं आगे की तरफ बढ़ गया है।

‘‘आगे की तरफ नहीं बढ़ गया बल्कि इस तरफ चला आया और विश्वास दिलाना चाहता है कि वह आपका दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त है।’’

यह आवाज छत के ऊपर जाने वाले दरवाजे की तरफ से आई थी जो ऊपर तीनों बहिनों के पास ही था।

इस आवाज ने उन तीनों को चौंका दिया, वे उठ खड़ी हुईं और उस दरवाजे की तरफ देखने लगीं, अब यहाँ पर वैसा अंधकार न था जैसा नीचे खास करके पेड़ों की छाँह के सबब से था। चन्द्रदेव उदय हो चुके थे और उनकी चाँदनी पल-पल में बराबर बढ़ती चली जा रही थी अस्तु उन तीनों बहिनों ने साफ देख लिया कि दरवाजे के अंदर एक पैर बाहर और दूसरा भीतर किए कोई आदमी स्याह लबादा ओढ़े खड़ा है।

बिमला : (उस आदमी से) तुम कौन हो?

आदमी : गदाधरसिंह।

बिमला : (निडर रह कर) तुमने बड़ी चालाकी से अपने को कैद से छुड़ा लिया!

गदाधर : बात तो ऐसी ही है।

बिमला : मगर तुम भाग कर इस घाटी के बाहर नहीं जा सकते!

गदाधर : शायद ऐसा ही हो, मगर मुझे भागने की जरूरत ही क्या है?

बिमला : क्यों, अपनी जान बचाने के लिये तुम जरूर भागना चाहते होगे?

गदाधर : नहीं, मुझे अपनी जान का यहाँ कोई खौफ नहीं है क्योंकि तुम्हारी एक नमकहराम लौंडी ने मुझे बता किया है तुम मेरे प्यारे दोस्त दयाराम की स्त्री हो...

बिमला : (बात काट कर) जिस प्यारे दोस्त को तुमने अपने हाथ से हलाल किया!!

गदाधर : नहीं-नहीं, कदापि नहीं, जिसने यह बात तुमसे कही है वह बिलकुल झूठा है उसने तुम लोगों को धोखे में डाल दिया है, यही समझाने और विश्वास दिलाने के लिए मैं यहाँ अटक गया हूँ और भागना पसन्द नहीं करता।

मुझे विश्वास था कि तुम दोनों बहिनों का देहान्त हो चुका है जैसाकि दुनिया में प्रसिद्ध किया गया है, मगर अब तुम दोनों का हाल जानकर भी क्या मैं भागने की इच्छा करूँगा? नहीं, क्योंकि तुम दोनों को अब भी मैं उसी निगाह से देखता हूँ जैसे अपने प्यारे दोस्त की जिन्दगी में देखता था और यही सबब है कि मुझे तुम दोनों से किसी तरह का डर नहीं लगता।

बिमला : मगर नहीं, तुम्हें हम लोगों से डरना चाहिये, हम लोग तुम्हारे हितेच्छु नहीं हो सकते क्योंकि हम लोगों ने जो कुछ सुना वह कदापि झूठ नहीं हो सकता।

गदाधर : (दरवाजे से बाहर निकल कर और बिमला के पास आकर) मैं विश्वास दिला दूँगा कि मुझ पर झूठा इल्जाम लगाया गया है।

बिमला। (कई कदम पीछे हटकर और नफरत के साथ) बस दूर रह मुझसे दुष्ट! मैं तेरी सूरत नहीं देखना चाहती!!

गदाधर : (अपने ऊपर से स्याह कपड़ा हटा कर) नहीं, तुम मेरी सूरत देखो और पहिचानो और सुनो कि मैं क्या कहता हूँ।

बिमला. सिवाय बात बनाने के तू और क्या कहेगा? तू अपने माथे से कलंक का टीका किसी तरह नहीं धो सकता और न वह बात झूठी हो सकती है जो मैं सुन चुकी हूँ। दलीपशाह और शम्भू अभी तक दुनिया में मौजूद हैं और मैं भी खास तौर पर इस बात को जानती हूँ।

गदाधर : मगर सच बात यह है कि लोगों ने तुम्हें धोखा दिया और असल भेद को छिपा रक्खा। खैर तुम अगर मुझ पर विश्वास नहीं करती तो मुझे ज्यादे खुशामद करने की जरूरत नहीं, अब मैं सिर्फ दो-चार बातें पूछ कर चला जाऊँगा। एक तो यह कि तुम मुझे गिरफ्तार करके यहाँ लाई थीं, मगर मैं अपनी चालाकी से छूट गया। अब बताओ मेरे साथ क्या सलूक करोगी?

बिमला : अपने दिल का बुखार निकालने के लिए जो कुछ मुझसे बन पड़ेगा करूँगी, इसे तुम खुद सोच सकते हो।

गदाधर : पर मैं तो अब स्वतंत्र हूँ, अगर चाहूँ तो तुम तीनों को इसी जगह खत्म करके रख दूँ, मगर नहीं, मैं नमक का खयाल करता हूँ ऐसा कदापि न करूँगा, हाँ, तुमसे बचने के लिए उद्योग जरूर करूँगा।

बिमला : कदाचित् ऐसा ही हो।

इतना कह बिमला ने कला की तरफ देखा।

गदाधरसिंह बिमला से बातें कर रहा था मगर उसे इस बात की खबर न थी कि कला क्या कर रही है अथवा क्या किया चाहती है।

कला ने अपने बगल से एक छोटा-सा बाँस का बना हुआ तमंचा निकाला और गदाधरसिंह (भूतनाथ) की तरफ उसका मुँह करके चलाया।

इस अद्भुत तमंचे में बेहोशी की बारूद भरी जाती थी और इसका तेज तथा जल्द बेहोश कर देने वाला धुआँ छूटने के साथ ही तेजी से कई बगहे तक फैलकर लोगों को बेहोश कर देता था, यहाँ पर फैलने के लिए विशेष जगह तो थी नहीं इसलिए उस धुएँ के गुबार ने गदाधरसिंह को चारों तरफ से घेर कर एक तरह का अन्धकार कर दिया।

‘‘गदाधरसिंह धुएँ के असर से बेहोश हो जायेगा’’ यह सोच कर बिमला, कला और इन्दुमति तीनों बहिनें भाग कर नीचे उतर जाने के लिए उठीं और नाक दबाये हुए सीढ़ी की तरफ बढ़ गईं।

गदाधरसिंह बेशक इस धुएँ के असर से बेहोश हो जाता मगर उसने पहिले ही से अपने बचाव का बन्दोबस्त कर लिया था अर्थात् ऐसी दवा खा ली थी कि कई घंटे तक उस पर बेहोशी का असर नहीं हो सकता था तथापि उस धुएँ ने एक दफे उसका सर घुमा दिया।

वे तीनों बहिनें वहाँ से भागीं तो सही मगर अफसोस, बिमला और इन्दु तो नीचे उतर गईं परन्तु कला को फुर्ती से गदाधरसिंह ने पकड़ कर कब्जे में कर लिया और यह हाल बिमला को नीचे उतर कर और कई कमरों में घूम-फिर कर छिप जाने के बाद मालूम हुआ जब चित्त स्थिर हो जाने पर उसने कला को अपने साथ न देखा।

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