अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
छेड़ दे तार तू पुनर्वार
छेड़ दे तार तू पुनर्वार
फिर हो अरण्य में चरणचार।
फिर घाटी-घाटी से बँधकर
वातुल घूमें झूमकर भँवर,
प्राणों की पावनता भरकर
खोले स्वर की सुन्दर विचार।
जङ्गम को जड़, जड़ को जङ्गम
कर दे, भर दे सम और विषम,
उठते गिरते स्वर के निरुपम
सरिगम तोड़ें दुर्दम चहार।
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