अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
नाचो हे, रुद्रताल
नाचो हे, रुद्रताल;
आँचो जग ऋजु-अराल।
झर जीव जीर्ण-शीर्ण,
उद्भव हो नव-प्रकीर्ण,
करने को पुन: तीर्ण,
हों गहरे अन्तराल।
फिर नूतन तन लहरे,
मुकुल-गन्ध बन छहरे,
उर तरु-तरु का हहरे,
नव, मन सायं-सकाल।
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