अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
काल स्रोत्र में मेरे प्रियजन
काल स्रोत्र में मेरे प्रियजन
बहे हुए पायें उत्तम तन।
उनकी सेवा शेष मानसिक,
आराधना ध्यान हो कायिक,
निर्मल हो धुलकर मन मायिक,
खुलें ज्ञान से दिव्य दो नयन।
देखूँ वे तुम हो प्रिय मेरे,
नि:स्व प्राण विचरें उस घेरे,
रहे साँस यह उसी सबेरे,
उस मानस से मिले मलिन मन।
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