अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
तप के बन्धन बाँधो, बाँधो
तप के बन्धन बाँधो, बाँधो!
मन के साधन साधो, साधो!
वस्तु तुम्हारी ध्यान रहे यह,
विषय विष बना ज्ञान रहे यह,
गेह देह है मान रहे यह,
ऐसे तन आराधो, साधो!
कठिन रज्जु, जड़ की, चेतन की,
वसुधा बँधी विजय-केतन की,
काम करो, न बात वेतन की,
ऐसे जुए न नाधो, साधो!
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