अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
मेरा फूल न कुम्हला पाये
मेरा फूल न कुम्हला पाये,
जल उलीचकर, मूल सींचकर
लौटे तुम तरु-तरु के साये।
तले मोर नाचे, डाली पर
चहके खग प्राणों से खुलकर,
नभ-चारण के स्वर मडलाये।
लौटी ग्राम-वधू पनघट से,
लगा चितेरा अपने पट से,
बँधी नाव हिलती है तट से,
कवि के अग्नि-प्राण उकताये।
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