अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
सत्य पाया जहाँ जग ने
सत्य पाया जहाँ जग ने, दान तेरा ही वहाँ है।
जहाँ भी पूजा चढ़ी है, मान तेरा ही वहाँ है।
जहाँ है शत पथ निरादर, देखकर जन जीव कादर,
कृत्य में अन्तनिर्हित अभिमान तेरा ही वहाँ है।
तूलि के रँग खुली कलियाँ, गूँजती षटपदावलियाँ,
महकती-गलियाँ, सुरभि का गान तेरा ही वहाँ है।
जिस प्रवर्षण भूमि उर्वर, जिस तपन मरु धूम्र-धूसर,
जिस पवन लहरा दिगन्तर, ज्ञान तेरा ही वहाँ है।
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