अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
(जब) हाय समायी है
(जब) हाय समायी है,
कह, कौन बन आयी है?
बने को बिगाड़ा सौ माखों,
हाथ-हाथ बैठे हैं लाखों,
काम कभी सुधरा भी साखों,
बदली छायी है।
उठने वाले डग कुछ और हैं,
जैसे खाने वाले कौर हैं,
ऐसे वैसे ही सिरमौर हैं,
बुरी रसाई है।
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