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1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

छावनी में अजीब-सी उदासी छा गयी। वहां का नजारा खौफनाक था। अधजले मकानों की दीवारों पर धुओं की परत चढ़ गयी थी। टेबुल, कुर्सियां, दरवाजे, ध्वस्त होकर बिखरे पड़े थे। कुछ पेड़ धराशायी हुए थे। छावनी में मौत का सन्नाटा छाया था। यह दृश्य देखकर औरतें रोने लगीं। चार दिनों के बाद बैलगाड़ियों की व्यवस्था की गयी। छावनी की सभी औरतें, बच्चे गाड़ी पर सवार हुए। बैलगाड़ियों ने इलाहाबाद का रास्ता पकड़ा। कैंपबैल अपने आपसे कह रहा था, चलो अच्छा हुआ, मैं अब बेफिक्र होकर दुश्मनों का मुकाबला कर सकूंगा।’

तात्या टोपे की फौज में जयाजीराव सिंधिया के सिपाही सबसे बहादुर सिपाही थे। दिल्ली इलाहाबाद को जोड़ने वाले कालपी मार्ग पर तात्या की फौज ने अड्डा जमाया हुआ था। कैंपबेल ने रणनीति तैयार की। इस योजना के अनुसार उसकी फौज गंगा का नहर पार करके कालपी पहुंचेगी। वे वहां से पीछे हटकर सिंधिया के सिपाहियों के लौटने का मार्ग बंद कर देंगे।

कैंपबेल की फौज में पांच हजार सिपाही और छह सौ घुड़सवार थे। उससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उसके पास इंग्लैंड  से आयात की हुई नयी तकनीक की पैंतीस तोपें थीं। तात्या के पास सिपाहियों का बल ज्यादा था। लेकिन कैंपबेल की तुलना में उसके पास रसद सामग्री बहुत कम थी।कैंपबेल ने 6 दिसंबर को कानपुर पर हमला किया। शहर के बीच वाले भाग और गंगा की धार के दरम्यान बागी सिपाहियों पर तोप के गोले बरसने लगे। तात्या ने अपनी फौज नहर की दिशा में मोड़ दी। पॉल ने तोपों की दिशा तात्या की ओर की और पैदल सेना ने बागी सिपाहियों को घेर लिया। सिंधिया के सिपाही पीछे हटने पर मजबूर हुए। कैंपबेल ने इस सिपाहियों के पीछे मैंसफिल्ड को दौड़ाया। लेकिन नदी पार करने तक बागी सिपाही भाग निकले। मैंसफिल्ड के हाथ उनकी पंद्रह तोपें लग गयीं। बागी सिपाहियों का पीछा करना बहुत मुश्किल था।

कैंपबेल ने सोचा कि पूरी गंगा घाटी पर ही नियंत्रण रखना होगा। पीछा करने में काफी वक्त बरबाद हो सकता था। इस इलाके के फतेहगढ़ शहर पर बागी सिपाहियों ने कब्जा कर लिया था। कैंपबेल ने अपनी कुछ पलटनें फतेहगढ़ भेज दी। फतेहगढ़ का सामरिक महत्त्व तात्या टोपे ने जान लिया था। वहां पर तात्या ने बड़ी फौज तैनात कर दी।

6 दिसंबर से लेकर 6 जनवरी के बीच तात्या ने धीरज रखकर अंग्रेजों का सामना किया। तात्या टोपे के पास साधन-सामग्री की कमी थी। इस विषम परिस्थिति में तात्या ने जान की बाजी लगा दी। केवल आत्मबल के सहारे लड़ाई जीती नहीं जाती। इसके लिए बंदूकें, तोपें आदि सरीखे हथियारों की सहायता भी महत्त्वपूर्ण होती है।

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